दशहरा पर्व के दिन शाम होते होते सारे शहर में हल्ला हो गया कि - रावण ने जलने से मना कर दिया है ... चहूँ ओर, संशय का विकट वातावरण निर्मित हो गया ... यह खबर आग की तरह आज रावण का दहन करने वाले राम अर्थात शहर के सबसे दबंग नेता जी तक भी पहुँच गई ... अब चूंकि नेता जी एक पावरफुल मंत्री थे इसलिए सारा प्रशासनिक अमला और उनके चेले-चपाटे खबर की पुष्टि करने के लिए दौड़ पड़े ... कुछ ही देर में खबर की पुष्टि करने वालों की मंत्री जी के बंगले पर भीड़ लग गई ! जब सारे पुष्टिकर्ता आ गए तब मंत्री ने स्वयं सभी से चर्चा की - चर्चा पर असल मसला सामने आया कि - शाम चार बजे रावण निर्माण का फिनिशिंग काम चल रहा था तब अचानक एक आवाज गूंजने लगी, आवाज सुनकर बनाने वाले कारीगर डरने लगे, तब अचानक रावण रूपी एक विशाल आकृति प्रगट हुई और कहने लगी कि - "आज मुझे कोई राम प्रवृति का इंसान ही जलाएगा, यदि ऐंसा नहीं हुआ तो जो मुझे जलाएगा उसे चौबीस घंटे के अन्दर मैं जलाकर राख कर दूंगा" ... सुनते ही मंत्री जी चिंतित हो गए, मीटिंग हाल में सन्नाटा-सा छा गया !
कुछ देर बाद मंत्री जी सहमे सहमे से बोले - अब क्या किया जाए ? ... कुछेक जुझारू प्रवृति के लोग बोल पड़े ... कुछ नहीं होता सर ... आप डरिए मत ... यह सब फिजूल बकवास जैसा है ... और फिर आप भी तो साक्षात भगवान राम ही हैं ... हाँ सर आप भगवान राम से कम नहीं हैं ... मंत्री जी को ये सारे सुझाव मरवाने वाले सुझाव लग रहे थे, कुछ देर गमगीनी माहौल के बाद मंत्री जी ने मीटिंग हाल से सभी को बाहर निकालते हुए अपने चहेते एक अधिकारी व अपने एक ख़ास आदमी से गुप्त रूप से बोले - आप दोनों त्वरंत जाओ, और रावण से हाँथ जोड़कर प्रार्थना करो कि - इसका कोई हल वे स्वयं बताएं कि - मंत्री जी आपका दहन करना चाहते हैं यह उनकी मजबूरी है इसलिए आप ही कोई उपाय सुझाएँ, क्या किया जाए जिससे आप नाराज न हों और आपकी नाराजगी का असर हमें मंत्री जी को खो कर न उठाना पड़े, सीधा-सीधा प्रार्थना में बता देना कि मंत्री जी राम प्रवृति के नहीं है, कहीं कोई संशय न रहे ... जी सर ... !
लगभग आधे घंटे बाद दोनों महाशय रावण से प्रार्थना-अर्चना कर वापस आकर मंत्री जी से बोले - सर, मसला बेहद गंभीर है, रावण की आत्मा साक्षात प्रगट हो रही है, सर्वप्रथम तो माननीय रावण साहब भड़क गए और कहने लगे कि - तुम लोगों ने ये क्या मजाक बना कर रखा हुआ है, क्या तुम्हें इतने बड़े शहर में कोई राम जैसे स्वभाव का इंसान नहीं मिलता जो तुम शहर के सबसे दुष्ट व पापी इंसान से मेरा सालों से दहन करवा रहे हो, बहुत हो गया, अब मुझसे बर्दास्त नहीं होगा, जाओ चले जाओ ... तब हम दोनों उनके चरणों में गिर पड़े और अपनी मजबूरी व्यक्त किये, तब कहीं जाकर वे तनिक शांत होकर बोले - अच्छा ये बात है, ठीक है जाकर अपने मंत्री को बोल दो कि - मुझ पर तीर चलाने के पहले हाँथ जोड़कर मुझसे प्रार्थना करे और अपनी मजबूरी बताने के बाद ही तीर चलाये, नहीं तो ... और हाँ, आप लोगों ने ये जो ढोंग बना कर रक्खा है कि सबसे बड़ा पापी व दुष्ट इंसान मुझे हर साल मार कर नाम कमा रहा है वह जल्द बंद कर दो अन्यथा ... यह सब देखते देखते अब मुझे क्रोध आने लगा है, कहीं ऐंसा न हो किसी दिन, जो मेरा दहन करने आ रहा है उसका ही मैं दहन कर दूं !
... बातें सुनते ही मंत्री जी सन्न हो गए और पुन: सन्नाटा छा गया, कुछ देर बाद लम्बी गहरी सांस लेते हुए मंत्री जी बोले - चलो ठीक है, जान में जान आई, इस बार तो छुटकारा मिल गया, अगली बार का अगली बार देखेंगे ... दोनों बोल पड़े - सर, मामला बेहद संगीन होते जा रहा है, कोई न कोई हल निकालना पडेगा " रावण दहन" का, कहीं ऐंसा न हो कि लेने-के-देने पड़ जाएं ... ठीक है, चिंता जायज है, बाद में मुख्यमंत्री जी से बात करेंगे ! ... ठीक शाम सात बजे निर्धारित समयानुसार मंत्री जी ने रावण मैदान पहुँच कर मंच से, दूर से ही रावण से क्षमा प्रार्थना करने के बाद तीर चलाया ... चारों ओर ... फटाकों की गूँज ... शोर-गुल ... आतिशबाजी ... जय श्रीराम ... जय श्रीराम ... के नारे गूंजने लेगे ... मैदान में सभी लोग एक-दूसरे से गले लगे ... चारों ओर ... बधाई ... बधाई ... जय श्रीराम ... जय श्रीराम ... नारों व खुशियों के बीच "रावण दहन" का कार्यक्रम संपन्न हुआ ... इन सब के बीच मंत्री जी सन्न थे, और उपस्थित जनता प्रसन्न थी, और रावण तनिक खिन्न था ... जय श्रीराम !!
कुछ देर बाद मंत्री जी सहमे सहमे से बोले - अब क्या किया जाए ? ... कुछेक जुझारू प्रवृति के लोग बोल पड़े ... कुछ नहीं होता सर ... आप डरिए मत ... यह सब फिजूल बकवास जैसा है ... और फिर आप भी तो साक्षात भगवान राम ही हैं ... हाँ सर आप भगवान राम से कम नहीं हैं ... मंत्री जी को ये सारे सुझाव मरवाने वाले सुझाव लग रहे थे, कुछ देर गमगीनी माहौल के बाद मंत्री जी ने मीटिंग हाल से सभी को बाहर निकालते हुए अपने चहेते एक अधिकारी व अपने एक ख़ास आदमी से गुप्त रूप से बोले - आप दोनों त्वरंत जाओ, और रावण से हाँथ जोड़कर प्रार्थना करो कि - इसका कोई हल वे स्वयं बताएं कि - मंत्री जी आपका दहन करना चाहते हैं यह उनकी मजबूरी है इसलिए आप ही कोई उपाय सुझाएँ, क्या किया जाए जिससे आप नाराज न हों और आपकी नाराजगी का असर हमें मंत्री जी को खो कर न उठाना पड़े, सीधा-सीधा प्रार्थना में बता देना कि मंत्री जी राम प्रवृति के नहीं है, कहीं कोई संशय न रहे ... जी सर ... !
लगभग आधे घंटे बाद दोनों महाशय रावण से प्रार्थना-अर्चना कर वापस आकर मंत्री जी से बोले - सर, मसला बेहद गंभीर है, रावण की आत्मा साक्षात प्रगट हो रही है, सर्वप्रथम तो माननीय रावण साहब भड़क गए और कहने लगे कि - तुम लोगों ने ये क्या मजाक बना कर रखा हुआ है, क्या तुम्हें इतने बड़े शहर में कोई राम जैसे स्वभाव का इंसान नहीं मिलता जो तुम शहर के सबसे दुष्ट व पापी इंसान से मेरा सालों से दहन करवा रहे हो, बहुत हो गया, अब मुझसे बर्दास्त नहीं होगा, जाओ चले जाओ ... तब हम दोनों उनके चरणों में गिर पड़े और अपनी मजबूरी व्यक्त किये, तब कहीं जाकर वे तनिक शांत होकर बोले - अच्छा ये बात है, ठीक है जाकर अपने मंत्री को बोल दो कि - मुझ पर तीर चलाने के पहले हाँथ जोड़कर मुझसे प्रार्थना करे और अपनी मजबूरी बताने के बाद ही तीर चलाये, नहीं तो ... और हाँ, आप लोगों ने ये जो ढोंग बना कर रक्खा है कि सबसे बड़ा पापी व दुष्ट इंसान मुझे हर साल मार कर नाम कमा रहा है वह जल्द बंद कर दो अन्यथा ... यह सब देखते देखते अब मुझे क्रोध आने लगा है, कहीं ऐंसा न हो किसी दिन, जो मेरा दहन करने आ रहा है उसका ही मैं दहन कर दूं !
... बातें सुनते ही मंत्री जी सन्न हो गए और पुन: सन्नाटा छा गया, कुछ देर बाद लम्बी गहरी सांस लेते हुए मंत्री जी बोले - चलो ठीक है, जान में जान आई, इस बार तो छुटकारा मिल गया, अगली बार का अगली बार देखेंगे ... दोनों बोल पड़े - सर, मामला बेहद संगीन होते जा रहा है, कोई न कोई हल निकालना पडेगा " रावण दहन" का, कहीं ऐंसा न हो कि लेने-के-देने पड़ जाएं ... ठीक है, चिंता जायज है, बाद में मुख्यमंत्री जी से बात करेंगे ! ... ठीक शाम सात बजे निर्धारित समयानुसार मंत्री जी ने रावण मैदान पहुँच कर मंच से, दूर से ही रावण से क्षमा प्रार्थना करने के बाद तीर चलाया ... चारों ओर ... फटाकों की गूँज ... शोर-गुल ... आतिशबाजी ... जय श्रीराम ... जय श्रीराम ... के नारे गूंजने लेगे ... मैदान में सभी लोग एक-दूसरे से गले लगे ... चारों ओर ... बधाई ... बधाई ... जय श्रीराम ... जय श्रीराम ... नारों व खुशियों के बीच "रावण दहन" का कार्यक्रम संपन्न हुआ ... इन सब के बीच मंत्री जी सन्न थे, और उपस्थित जनता प्रसन्न थी, और रावण तनिक खिन्न था ... जय श्रीराम !!
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