आज ऊंची-ऊंची दीवारों पे
रौशनी खूब जग-मगाई है 'उदय'
कम से कम तुम तो
उन घरों, उन आँगनों में
दीपक बन के जल जाओ
जहां, शाम से नहीं -
सदियों से अंधेरा ही अंधेरा है !!
रौशनी खूब जग-मगाई है 'उदय'
कम से कम तुम तो
उन घरों, उन आँगनों में
दीपक बन के जल जाओ
जहां, शाम से नहीं -
सदियों से अंधेरा ही अंधेरा है !!
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