Friday, September 16, 2011

मंहगाई, सरकार, जनसंसद ... जय हो !

मंहगाई, उफ़ ! जानलेवा मंहगाई
अभी अभी, कुछ देर पहले
मैं सोच रहा था, सोच रहा हूँ
सच ! सोचने के लिए मजबूर हूँ !!
कि -
यदि, इसी तरह
पेट्रोल, डीजल, तेल, गैस, सब्जी, दूध के दाम बढ़ते रहे
तब
जनता, जनमानस, जनसंसद
क्या करेगी, क्या कर पायेगी ...
शायद ! कुछ भी नहीं, कुछ कर भी नहीं सकती !!

क्यों, क्योंकि
जनता, आदि हो गई है, उसे आदत पड़ गई है
कुछ नहीं करने की, कुछ नहीं कर पाने की !
क्यों, क्योंकि, कुछ कर भी नहीं सकती, वो इसलिए
कि -
उसके पास कुछ करने लिए कोई 'पावर' ही नहीं है
चुनाव ! जी नहीं, बहुत दूर की बात है, तत्कालीन तौर पर
जनता, जनमानस, जनसंसद
असहाय है, और असहाय रहेगी, लेकिन कब तक
तब तक, जब तक
इन विकट, विकराल, परिस्थितियों से लड़ने के लिए
कोई संवैधानिक अधिकार नहीं होगा !

अब सोचने वाली बात तो ये है
कि -
ये अधिकार कैसे आयेगा, कहाँ से आयेगा
जिससे की इन परिस्थितियों से निपटा जा सके
नहीं तो, हर बार की तरह, इस बार भी -
और इस बार की तरह, अगली बार भी, इसी तरह
दाम बढ़ते रहेंगे, कीमतें बढ़ती रहेंगी, मंहगाई बढ़ती रहेगी !
और जनता, जनमानस, जनसंसद
हाँथ पे हाँथ धरे, चीख-चिल्ला कर, बोल-बतिया कर
अपनी खीज उतारते रहेगी
पर, ऐसा कब तक चलेगा, कब तक चलते रहेगा
यह सोचनीय, विचारणीय पहलु है ...
मंहगाई, सरकार, जनसंसद ... जय हो !!

2 comments:

Patali-The-Village said...

बहुत गहन अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

दिगम्बर नासवा said...

जनता को आदत हो गयी है भूलने की ... वोट के समय इन बातों को जनता भूल जाती है ...