इकबाल जिसकी उम्र महज १९ साल थी जो साफ़ दिल का नेक व ईमानदार बालक था किन्तु आज उसके मन में बार बार यह सवाल गूँज रहा था कि कल 'ईद' के दिन उसे अपनी छोटी बहन 'खुशी' को 'ईदी' के रूप में एक बेहद ख़ूबसूरत 'परी ड्रेस' तोहफे में देना है और उसने ड्रेस भी पसंद कर रखी थी जिसकी कीमत ७५ रुपये थी, वह जब भी दुकान के पास से गुजरता तो ड्रेस को देखकर रुक-सा जाता था, ऐसा नहीं था कि वह अपने अम्मी-अब्बू को कह कर उनसे वह ड्रेस नहीं खरीदवा सकता था, खरीदवा सकता था किन्तु वह ऐसा करना नहीं चाहता था वरन वह अपनी मेहनत से कमाए रुपयों से ही 'परी ड्रेस' खरीद कर अपनी बहन 'खुशी' को 'ईद' पर तोहफे के रूप में देना चाहता था !
इसलिए ही वह स्वयं पिछले ४-५ हफ़्तों से प्रत्येक रविवार के दिन सुबह जल्दी उठकर अपने बगीचे से 'गुलाब' के सारे फूल तोड़कर उन्हें बेचने 'सांई दरबार' जाकर उन्हें बेच-बेच कर रुपये इकट्ठे कर रहा था इस तरह उसने धीरे-धीरे ६५ रुपये इकट्ठे कर लिए थे उसके पास महज १० रुपये कम थे ! संयोग से कल रविवार के दिन ही 'ईद' आ गई थी, इसी कारण उसे सारी रात बेचैनी थी कि किसी भी तरह जल्दी उठकर 'सांई दरबार' जाकर फूल बेच कर 'परी ड्रेस' खरीद कर 'ईद का पर्व' अम्मी, अब्बू व 'खुशी' के सांथ हंसी-खुशी मना सके, इसी बेचैनी के सांथ उसने सारी रात बिस्तर पर करवट बदल-बदल कर गुजारी और जैसे ही सुबह के चार बजे वह उठ कर जल्दी जल्दी तैयार होकर बगीचे में पहुंचा तथा उसने सारे 'गुलाब' के फूल तोड़ लिए, अब इसे संयोग कहें या दुर्भाग्य कि - आज बगीचे में उसे महज चार फूल ही मिले, इसे दुर्भाग्य इसलिए कह सकते हैं कि - वह दो-दो रुपयों में एक एक फूल बेचा करता था, इस तरह उसे चारों फूल बेच कर मात्र आठ रुपये ही मिलने वाले थे जो ड्रेस की कीमत से दो रुपये कम हो रहे थे !
इस कश-म-कश की स्थिति में वह 'सांई राम' का ध्यान करते हुए 'सांई दरबार' पंहुच कर द्वार के पास सड़क किनारे खड़े होकर फूल बेचने लगा, अभी दो फूल ही बिके थे कि उसकी नजर सड़क की दूसरी तरफ पडी, एक व्यक्ति का कार में बैठते बैठते पर्श जमीं पर गिर गया, इकबाल दौड़ कर जैसे ही वहां पहुंचा कार निकल चुकी थी उसने पर्श हाँथ में उठाकर देखा उसमें एक एक हजार व पांच पांच सौ के ढेर सारे नोट रखे थे तथा पर्श में ही उसे एक टेलीफोन नंबर लिखा हुआ मिल गया, इकबाल कुछ देर वहीं खड़े होकर सोच-विचार में डूब गया उसकी चिंता टेलीफोन करने पर दो रुपये खर्च करने को लेकर हो रही थी क्योंकि वैसे ही सारे फूल बेचने के बाद भी दो रुपये कम पड़ने वाले थे किन्तु सोच-विचार में ज्यादा न उलझते हुए उसने 'सांई राम' का नाम लेकर दो रुपये खर्च करते हुए टेलीफोन लगाया तथा सामने वाले व्यक्ति को उसके पर्श के गिरने व उसे मिल जाने की खबर देकर वह उस व्यक्ति का इंतज़ार करते हुए पुन: फूल बेचने खडा हो गया !
लग-भग ५-७ मिनट बाद ही कार उसके पास आकर रुकी और वह सज्जन निकले जिनका पर्श गिरा था इकबाल ने उनके आने पर ही पर्श उन्हें सौंप दिया, पर्श में सब कुछ सही सलामत देख कर वह सज्जन अत्यंत ही प्रसन्न हुए तथा इकबाल की नेक-नीयत से बेहद ही प्रभावित हुए, बातचीत में इकबाल के बारे में उन्हें सारी जानकारी मिल गई तथा वह समझ गए की इकबाल 'खुदा' का एक नेक बंदा है उसे किसी भी तरह के रुपयों का इनाम देकर दुखित करना उचित नहीं होगा इसलिए उन्होंने १० रुपये का नोट देकर दोनों फूल खरीदते हुए अनुरोध किया कि वह इसका प्रतिरोध न करे, कुछ देर चुप रहते हुए इकबाल ने 'सांई महिमा' समझ प्रतिरोध नहीं किया !
इकबाल हंसते-मुस्कुराते 'सांई' का शुक्रिया अदा करते हुए अपनी पसंद की 'परी ड्रेस' खरीद कर घर पहुंचा और परिवार के सांथ 'ईद' की खुशियों में शामिल हो गया, अपनी बहन को ड्रेस भेंट कर अम्मी-अब्बू की दुआएं लेकर खुशियाँ मना ही रहा था कि उन्हीं सज्जन को जिनका पर्श गिर गया था उन्हें अपने घर पर देख वह आश्चर्य चकित हुआ इकबाल के अम्मी-अब्बू उस सज्जन के सेवा-सत्कार में लग गए गए तो वह और भी ज्यादा अचंभित हुआ, हुआ दर-असल यह था कि वह सज्जन कोई और नहीं वरन बम्बई फिल्म इंडस्ट्री के जाने-मानें निर्माता-निर्देशक थे जो इकबाल की नेक-नीयत से अत्यंत ही प्रभावित होकर उसे अपनी आगामी फिल्म में बतौर हीरो साइन करते हुए नगद एक लाख रुपये की राशि भेंट कर 'ईद' की मुबारकबाद देकर चले गए, इकबाल के घर में 'ईद' की खुशियों का ठिकाना न रहा इकबाल व परिवार ने 'ईद का पर्व' बेहद हर्ष-व-उल्लास के सांथ मनाया, इकबाल की नेक-नीयत व मेहनत ने उसे ४-५ सालों में ही एक सफल कलाकार के रूप में स्थापित कर दिया !!
इसलिए ही वह स्वयं पिछले ४-५ हफ़्तों से प्रत्येक रविवार के दिन सुबह जल्दी उठकर अपने बगीचे से 'गुलाब' के सारे फूल तोड़कर उन्हें बेचने 'सांई दरबार' जाकर उन्हें बेच-बेच कर रुपये इकट्ठे कर रहा था इस तरह उसने धीरे-धीरे ६५ रुपये इकट्ठे कर लिए थे उसके पास महज १० रुपये कम थे ! संयोग से कल रविवार के दिन ही 'ईद' आ गई थी, इसी कारण उसे सारी रात बेचैनी थी कि किसी भी तरह जल्दी उठकर 'सांई दरबार' जाकर फूल बेच कर 'परी ड्रेस' खरीद कर 'ईद का पर्व' अम्मी, अब्बू व 'खुशी' के सांथ हंसी-खुशी मना सके, इसी बेचैनी के सांथ उसने सारी रात बिस्तर पर करवट बदल-बदल कर गुजारी और जैसे ही सुबह के चार बजे वह उठ कर जल्दी जल्दी तैयार होकर बगीचे में पहुंचा तथा उसने सारे 'गुलाब' के फूल तोड़ लिए, अब इसे संयोग कहें या दुर्भाग्य कि - आज बगीचे में उसे महज चार फूल ही मिले, इसे दुर्भाग्य इसलिए कह सकते हैं कि - वह दो-दो रुपयों में एक एक फूल बेचा करता था, इस तरह उसे चारों फूल बेच कर मात्र आठ रुपये ही मिलने वाले थे जो ड्रेस की कीमत से दो रुपये कम हो रहे थे !
इस कश-म-कश की स्थिति में वह 'सांई राम' का ध्यान करते हुए 'सांई दरबार' पंहुच कर द्वार के पास सड़क किनारे खड़े होकर फूल बेचने लगा, अभी दो फूल ही बिके थे कि उसकी नजर सड़क की दूसरी तरफ पडी, एक व्यक्ति का कार में बैठते बैठते पर्श जमीं पर गिर गया, इकबाल दौड़ कर जैसे ही वहां पहुंचा कार निकल चुकी थी उसने पर्श हाँथ में उठाकर देखा उसमें एक एक हजार व पांच पांच सौ के ढेर सारे नोट रखे थे तथा पर्श में ही उसे एक टेलीफोन नंबर लिखा हुआ मिल गया, इकबाल कुछ देर वहीं खड़े होकर सोच-विचार में डूब गया उसकी चिंता टेलीफोन करने पर दो रुपये खर्च करने को लेकर हो रही थी क्योंकि वैसे ही सारे फूल बेचने के बाद भी दो रुपये कम पड़ने वाले थे किन्तु सोच-विचार में ज्यादा न उलझते हुए उसने 'सांई राम' का नाम लेकर दो रुपये खर्च करते हुए टेलीफोन लगाया तथा सामने वाले व्यक्ति को उसके पर्श के गिरने व उसे मिल जाने की खबर देकर वह उस व्यक्ति का इंतज़ार करते हुए पुन: फूल बेचने खडा हो गया !
लग-भग ५-७ मिनट बाद ही कार उसके पास आकर रुकी और वह सज्जन निकले जिनका पर्श गिरा था इकबाल ने उनके आने पर ही पर्श उन्हें सौंप दिया, पर्श में सब कुछ सही सलामत देख कर वह सज्जन अत्यंत ही प्रसन्न हुए तथा इकबाल की नेक-नीयत से बेहद ही प्रभावित हुए, बातचीत में इकबाल के बारे में उन्हें सारी जानकारी मिल गई तथा वह समझ गए की इकबाल 'खुदा' का एक नेक बंदा है उसे किसी भी तरह के रुपयों का इनाम देकर दुखित करना उचित नहीं होगा इसलिए उन्होंने १० रुपये का नोट देकर दोनों फूल खरीदते हुए अनुरोध किया कि वह इसका प्रतिरोध न करे, कुछ देर चुप रहते हुए इकबाल ने 'सांई महिमा' समझ प्रतिरोध नहीं किया !
इकबाल हंसते-मुस्कुराते 'सांई' का शुक्रिया अदा करते हुए अपनी पसंद की 'परी ड्रेस' खरीद कर घर पहुंचा और परिवार के सांथ 'ईद' की खुशियों में शामिल हो गया, अपनी बहन को ड्रेस भेंट कर अम्मी-अब्बू की दुआएं लेकर खुशियाँ मना ही रहा था कि उन्हीं सज्जन को जिनका पर्श गिर गया था उन्हें अपने घर पर देख वह आश्चर्य चकित हुआ इकबाल के अम्मी-अब्बू उस सज्जन के सेवा-सत्कार में लग गए गए तो वह और भी ज्यादा अचंभित हुआ, हुआ दर-असल यह था कि वह सज्जन कोई और नहीं वरन बम्बई फिल्म इंडस्ट्री के जाने-मानें निर्माता-निर्देशक थे जो इकबाल की नेक-नीयत से अत्यंत ही प्रभावित होकर उसे अपनी आगामी फिल्म में बतौर हीरो साइन करते हुए नगद एक लाख रुपये की राशि भेंट कर 'ईद' की मुबारकबाद देकर चले गए, इकबाल के घर में 'ईद' की खुशियों का ठिकाना न रहा इकबाल व परिवार ने 'ईद का पर्व' बेहद हर्ष-व-उल्लास के सांथ मनाया, इकबाल की नेक-नीयत व मेहनत ने उसे ४-५ सालों में ही एक सफल कलाकार के रूप में स्थापित कर दिया !!
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