Wednesday, September 14, 2011

हिंद की शान है हिन्दी ...

सच ! कहीं ऐसा न हो, स्वर्ण मूर्तियाँ सहेज ली जाएँ
और पत्थर की मूर्तियाँ शोध के लिए छोड़ दी जाएँ !
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आज उनके क़त्ल का इल्जाम, हम पे लग गया यारो
सच ! जिनसे बच-बुचा कर हम खुद जीते रहे थे !
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जिनके वादों से मौत का ये मुकाम है आया
न तो वो, और न ही उनका पैगाम है आया !
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सच ! किसी को खूब, बहुत खूब भाने लगे हैं हम
सुना है कुर्बानी के बकरे नजर आने लगे हैं हम !
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आज हमने एक फरेबी से हाँथ मिला लिया है
उफ़ ! करते भी क्या, कोई चारा नहीं था !!
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सबा होकर, फना होकर, मुहब्बत में हम 'खुदा' हो गए
कल तक थे सभी के, आज खुद से भी जुदा हो गए !
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उफ़ ! आज हमने उन्हें ही सलाम ठोक दिया
जो शिखर पे पहुंचते ही गूंगे-बहरे हुए थे !
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कोई बे-वजह हमसे मुंह फेर के बैठा था
हमें प्यार था तो, पर किसी और से था !
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खौफ में इस कदर कदम डगमगाए हुए हैं
मुझे दफ्न कर के भी दोस्त घवराए हुए हैं !
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न मुहब्बत का सुरूर, न माशूक की बेरहमी थी जेहन में
'उदय' जाने, बिना आशिक हुए, हम कैसे शायर हो गए ! 
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हिंद की शान है हिन्दी, मेरा अभिमान है हिन्दी
देश हो, विदेश हो, हमारा स्वाभिमान है हिन्दी !
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अभी अंजान है दुनिया, मेरी आँखों की फितरत से
सच ! जिसे चाहे, मैं जब चाहूँ, उसे मैं लूट लेता हूँ !
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कब तक करते शर्म, अब गर्व कर रहे हैं
भ्रष्ट-घोटालेबाज देश में राज कर रहे हैं !
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कब्र में लटके हैं पैर, फिर भी शेर हैं
खुद हो रहे शिकार, फिर भी शेर हैं !
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मामी, काकी, भुआ, मासी, अब ये बातें बहुत पुरानी हुई हैं
सच ! आज नारी, कदम संग कदम, कंधे संग कंधा हुई हैं !
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परदे की आड़ से, मुझे देख मुस्कुरा रहा था कोई
उफ़ ! दो कदम के फासले से, डर रहा था कोई !!
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जंग मुश्किल नहीं, तो आसां भी नहीं है 'उदय'
कदम कदम पे भ्रष्टाचारियों की पैंतरेबाजी है !
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हमें तो चेहरे चेहरे में अनेक चेहरे दिख रहे हैं
उफ़ ! यकीं हो तो किस पे, न हो तो किस पे !
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पुराने दौर में सच और झूठ में भ्रम हो जाता था
उफ़ ! आज तो कोई मुगालते में नहीं दिखता !!
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'हिन्दी' है जो आज भी, हमें 'दुल्हन' लगे है
कभी आँगन, कभी 'मंदिर' की मूरत लगे है !

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