Saturday, November 19, 2011

बेचैनी

कुछ अजब
कुछ गजब
सन्नाटा सा था
चंद रातें
कभी सोतीं
कभी जागतीं
खुली आँखों से कभी
कभी मूंदकर आँखें
मैं देखता सा था !
क्या था
क्यों था
कुछ तो था
जिसने मुझे
बेचैन किया था !
थी अजब सी
कुछ बेचैनी
क्या थी
क्यों थी
यह सवाल बन
मेरे जहन में
घूमता सा था
चंद रातें
बेचैनी, सवाल
और मैं !!

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

...बहुत खूब!

Anonymous said...

बेहद खुबसूरत ! क्या बात