Wednesday, November 2, 2011

... खुद ही पूंछ लो उनसे !

किवाड़ पे डोंट डिस्टर्व की तख्ती
और अन्दर डिस्टर्व ही डिस्टर्व है कोई !
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वक्त के सांथ भी जब वो, खुद को बदलना चाहे
मुमकिन है वो वक्त को बदलने की चाह रखता है !
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सरकार ने मंहगाई बढ़ा-बढ़ा के, खूब पाठ पढ़ाया है
बच्चे-बच्चे को, आटे-दाल का भाव समझ आया है !
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एक अर्से से हम खुदी को आजमा रहे थे
जिंदगी का सबब जान के, हम खुद ही हैरां हुए हैं !
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क्यूं दिल की लगी, दिल्लगी हुई
'खुदा' जाने है, या तू !!
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जी चाहे, जितना चाहे, तुम चीखते रहो
लो, हम बैठ गए, और मौन हुए हैं !
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लो, होते होते, ये क्या गजब हो गया
अपुन आज से किसी और का हो गया !
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ठीक ही कहते हो 'उदय', पुरुस्कारों के भी पांव होते हैं
सच ! वे खुद--खुद, किसी किसी के दर पे होते हैं !
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बहुत मुश्किल भी नहीं हैं, बहुत आसां भी नहीं हैं
चाहतें, ख्वाहिशें, मंजिलें, बहुत दूर भी नहीं हैं !!
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कल तक तो थी डायन, आज भष्मासुर हुई है
सुनते हैं, मंहगाई सरकार की लुगाई हुई है !! 
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कौन कहता है कि तुम आ के छू लो मुझको
सच ! मैं पारस नहीं हूँ, ये मैं जानता हूँ !!
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सच ! फना होने का, गर कोई सलीखा होता
इतना तो तय था कि, कोई न आशिक होता !
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जितनी मर्जी तुम्हारी, आजमा लो मुझको
सच ! मैं हीरा हूँ, जी चाहे तराशो मुझको !
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तुम फना होने की तहजीब सिखा दो मुझको
जी तो चाहे है कि आज फना हो जाऊँ !!
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कहते-सुनते रहे हैं कि क्या बात है
गर बात होती, तो कुछ बात होती !
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न तो कल ही था, और न ही आज हूँ उनका
सच ! गर चाहो तो, खुद ही पूंछ लो उनसे !!
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गर चाहूँ भी तो कैसे खुद को साबित कर दूं
सच ! लोग कहते हैं कि बहुत छोटा हूँ मैं !!
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लोग कहते हैं कि नज़रों का धोखा है सनम
कैसे मान लें, जब तक उनसे न पूंछ लें हम !
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गर चाहें तो उन्हें खुद ही तराश लें हम
पर बिना पूछें ये खता कैसे कर लें हम !
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जी न चाहे, तब भी तू मुझसे मुहब्बत कर ले
सच ! बिना बोले ही, तुझपे मैं फना हो जाऊं !

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