Thursday, February 10, 2011

हार-जीत !

हर पल, पाने की चाह
कुछ पल के लिये अच्छी है
समर्पण की भावना
सदा के लिये अच्छी है

जरा सोचो
हमने क्या खोया - क्या पाया
और जरा सोचो
तुमने क्या पाया - क्या खोया

जिंदगी की राहों में
जीत कर भी हारते हैं कभी
कभी हार कर भी जीत जाते हैं

भावना हार-जीत की नहीं
समर्पण की देखो
जीतने वाले को
और हारने वाले को देखो
खुशी को देखो
और अंदर छिपी मायूसी को देखो

फ़िर जरा सोचो
कौन जीता - कौन हारा
कौन हारा - कौन जीता

मत हो उदास जीत कर भी तू
संतोष कर देख कर मुझको
हारा नही हूं, हारा नही हूं ।

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