'औरत' के श्रंगार को देखो
और उसके व्यवहार को देखो
मन में बसे प्यार को देखो
और अंदर दबे अंगार को देखो
देखो उसकी लज्जा को
और देखो उसकी शर्म-हया को
देखो उसकी करुणा को
और देखो समर्पण को
'औरत' के तुम रूप को देखो
और रचे श्रंगार को देखो
देखो उसकी शीतलता को
और देखो कोमलता को
मत पहुंचाओ ठेस उसे तुम
मत छेडो श्रंगार को
रहने दो ममता की मूरत
मत तोडो उसके दिल को
उसने घर में "दीप" जलाये
आंगन में हैं "फ़ूल" खिलाये
बजने दो हांथों में चूंडी
और पैरों में पायल
मत खींचो आंचल को उसके
मत करो निर्वस्त्र उसे तुम
रहने दो "लक्ष्मी की मूरत"
मत बनने दो "कालिका"
अगर बनी वो "कालिका"
फ़िर, फ़िर तुम क्या ........!
और उसके व्यवहार को देखो
मन में बसे प्यार को देखो
और अंदर दबे अंगार को देखो
देखो उसकी लज्जा को
और देखो उसकी शर्म-हया को
देखो उसकी करुणा को
और देखो समर्पण को
'औरत' के तुम रूप को देखो
और रचे श्रंगार को देखो
देखो उसकी शीतलता को
और देखो कोमलता को
मत पहुंचाओ ठेस उसे तुम
मत छेडो श्रंगार को
रहने दो ममता की मूरत
मत तोडो उसके दिल को
उसने घर में "दीप" जलाये
आंगन में हैं "फ़ूल" खिलाये
बजने दो हांथों में चूंडी
और पैरों में पायल
मत खींचो आंचल को उसके
मत करो निर्वस्त्र उसे तुम
रहने दो "लक्ष्मी की मूरत"
मत बनने दो "कालिका"
अगर बनी वो "कालिका"
फ़िर, फ़िर तुम क्या ........!
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