Friday, December 24, 2010

सच ! उससे ही मुझे जीवन मिलेगा !!

आज रात कुछ अजब सी ठण्ड
और मैं ठण्ड से ठिठुर रहा हूँ
सारी राह मैं तुम्हें हर पल याद
सचमुच याद करते चल रहा हूँ
सच ! उस रात के एक एक पल
मेरी आँखों में, याद से समा रहे हैं
उस ठिठुरती रात में कैसे तुमने
मुझे अपने आगोश में लिया था
और कैसे तुमने मेरे बदन के
अंग अंग को छू कर, चूम कर
अंगारे की तरह तपतपाया था
हाँ सचमुच याद है मुझे वो रात
आज की इस ठिठुरती रात से भी
वो रात कहीं अधिक ठंडी थी !
पर आज मैं डरते, ठिठुरते
सहमते बढ़ रहा हूँ, शायद तुम
तुमने मुझे माफ़ नहीं किया होगा
तुम अब तक नाराज बैठी होगी
गुस्ताखी ! सुबह जल्दबाजी में तुम्हें
चुम्बन दिए बगैर जो चला आया हूँ !

यह सफ़र, यह रास्ता और यह ठंड
कैसे भी, किसी भी तरह गुजर जाए
और तुम मेरी सुबह की गुस्ताखी
भूलते, माफ़ करते, हंसते हुए
दर पर राह निहारते मिल जाओ
यह उम्मीद भी सिर्फ इसलिए
कि तुम जानती हो, मैं सिर्फ
सिर्फ तुमसे अटूट प्यार करता हूँ
आज इस कडकडाती ठंड में
तुम ही मुझे नया जीवन दे सकती हो !
यह चंद मिनटों का बचा सफ़र
तो मैं जैसे-तैसे तय कर लूंगा
पर घर पहुँचने पर, जाने
तुम्हारे नाराजगी भरे पलों में
मुझ पर कैसी गुजरेगी, तुम्हारे
मर्म स्पर्श के बगैर एक एक पल
जाने कैसे मुझे जीवित रखेंगे
तुम्हारे मर्म स्पर्श, तन, मन, होंठ
मुझे जो सुकूं, तपन, राहत देंगें
सच ! उससे ही मुझे जीवन मिलेगा !!

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