जी हाँ, राहुल गांधी का यह विवादास्पद कथन ठीक उस समय आना जब अयोध्या स्थित रामजन्म भूमि - बाबरी मस्जिद विवाद पर इलाहावाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसला आने के फलस्वरूप कुछेक राजनैतिक दल फैसले के पक्ष अथवा विपक्ष में अपने अपने कथन जारी कर वोट की राजनीति कर रहे थे, जबकि होना तो यह चाहिए था कि किसी भी राजनैतिक पार्टी को अयोध्या फैसले पर रोटी सेंकने का प्रयास न करते हुए शान्ति व सौहार्द्र बनाए रखने को तबज्जो देना चाहिए था जो परिलक्षित नहीं हुआ ! यहाँ विचारणीय बात यह है कि अयोध्या जैसे संवेदनशील मुद्दे पर पहले ही बहुत राजनैतिक पैंतरेवाजी हो चुकी थी जो अब नहीं होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा न होते हुए लोगों ने पुन: इस मुद्दे को भुनाने की कसर नहीं छोडी। यह स्पष्ट तौर पर झलक रहा था कि अयोध्या मुद्दे के फैसले से कांग्रेस पार्टी को न तो कोई राजनैतिक लाभ था और न ही हानि, लेकिन दूसरे दलों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कुछ न कुछ लाभ जरुर था, इस राजनैतिक लाभ-हानि के द्रष्ट्रीकोण से ही राहुल गांधी के स्टेटमेंट को आंका जा सकता है। हुआ दरअसल यह कि जब जातिगत व धर्मगत राजनीति अर्थात वोट की नीति की बात हो तथा कुछेक राजनैतिक दल मुद्दे को भुनाने की कोशिश करें तब कांग्रेस कैसे चुप रह सकती है, और चुप रहना राजनैतिक द्रष्ट्रीकोण से लाजिमी भी नहीं है !
अब हम राहुल गांधी के स्टेटमेंट में छिपे रहस्यात्मक भाव पर चर्चा करते हैं, अपने देश में हिन्दू हों या मुस्लिम हों दोनों ही भावनात्मक व व्यवहारिक रूप से दो हिस्सों में बंटे हुए हैं कुछ मंदिर-मस्जिद, जाति-धर्म की राजनीति के पक्षधर हैं तो कुछ घोर विरोधी भी हैं, ठीक यह स्थिति हिन्दू व मुस्लिम वर्ग में आरएसएस व् सिमी को लेकर भी है ! मेरा व्यक्तिगत तौर पर ऐसा मानना है कि हिन्दू वर्ग में ही कुछेक कट्टरपंथ विचारधारा के समर्थक हैं तो कुछ विरोधी भी हैं ठीक उसी प्रकार मुस्लिम वर्ग में भी समर्थन व विरोध की स्थिति है, कहने का तात्पर्य यह है कि मुस्लिम वर्ग में ही कुछेक सिमी का समर्थन करते हैं तो कुछ विरोध भी करते हैं, ठीक इसी तरह हिन्दू वर्ग में भी आरएसएस का समर्थन व विरोध दोनों है ! राजनैतिक द्रष्ट्रीकोण से महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हिन्दू वर्ग व मुस्लिम वर्ग में साफ्ट कार्नर रखने वाला वह हिस्सा जिसे जातिगत व धर्मगत वोट की राजनीति से कुछ लेना-देना नहीं है, न तो वह किसी के समर्थन में है और न ही किसी के विरोध में है, अब सवाल यह है कि इस वर्ग अर्थात हिस्से को कौन व् कैसे भावनात्मक व रहस्यात्मक ढंग से अपनी ओर खींचे !! यह वह वर्ग अर्थात हिस्सा है जिसे मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुस्लिम युक्त कट्टर राजनीति से कोई लेना-देना न होकर शान्ति व सौहार्द्र से लेना-देना है, इस वर्ग को देश में एक ऐसी राजनैतिक पार्टी की जरुरत है जो अमन-चैन व शान्ति-सौहार्द्र की पक्षधर हो ! कहीं ऐसा तो नहीं राहुल गांधी के इस स्टेटमेंट में यही रहस्यात्मक भाव छिपा हुआ है तथा इस स्टेटमेंट के माध्यम से इस वर्ग विशेष का समर्थन जुटाने का भरपूर प्रयास किया है !!
( नोट :- यह लेख दिनांक - १० अक्टूबर २०१० को लेखबद्ध किया गया था जो विलम्ब से यहाँ प्रस्तुत है ! )
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