Wednesday, March 30, 2011

गौरैया !!

चिड़ियों की चह-चहाहट सुन
मन मेरा, चंचल हो जाता है
जब जब देखूं, मैं तुझको
मुझको चिड़ियों सी, तू लगती है
चूँ-चूँ करतीं चिड़ियाँ जैसे
वैसे ही, तेरी बातें भी, मुझको
मीठी-मीठी, चूँ-चूँ सी लगती हैं
कब तू आती, पास मेरे
और कब फुर्र-फुर्र उड़ जाती है
नाजुक, कोमल, भावन, प्यारी
सच ! तू मेरी गौरैया है !!
.....
सच ! जब जब देखा मैंने गौरैया को, तुम मुझको याद आईं
और जब जब देखा तुमको मैंने, तुम गौरैया सी मन को भाईँ !
.....

Tuesday, March 29, 2011

पथरीली राहें !!

मूंड खुजाते बैठ गया था
देख सफ़र की, पथरीली राहें
दरख़्त तले की शीतल छाया
लग रही थी, तपती मुझको
फिर चलना था , और
आगे बढ़ना था मुझको
राहें हों पथरीली, या तपती धरती हो
मेरी मंजल तक तो, चलना था मुझको
कुछ पल सहमा, सहम रहा था
देख सुलगती, पथरीली राहें
फिर हौसले को, मैंने
सोते, सोते से झंकझोर जगाया
पानी के छींटे, मारे माथे पर अपने
कदम उठाये, रखे धरा पर
पकड़ हौसला, और कदमों को
धीरे धीरे, था चल पडा मैं
पथरीली, तपती, सुलगती राहों पर
कदम, हौसले, धीरे धीरे
संग संग मेरे चल रहे थे
जीवन, और मेरी मंजिल की ओर !!

गुनगुने !!

बात बिगड़ते देख वो
मस्तमौला हो लिए
तैश सी बातें सुने जब
डगमग डगमग हो लिए
ना ठंडे, ना गरम
सम्‍बन्‍ध गुनगुने कर लिए !
कौन ठिठुरता ठण्ड में
या झुलसता धूप में
न इधर, न उधर
पकड़ी एक नई डगर

बीच के रस्ते सुहाने
जानकर और मानकर
नेता, अफसर, पत्रकार
गुनगुने, गुनगुने से हो लिए !!

मुफ़्त की चाय !!

अदभुत दुनिया के अदभुत लोग, अदभुत इसलिये कि क्रियाकलाप अदभुत ही हैं, एक सेठ जी जिनके कारनामें अचंभित कर देते हैं अब क्या कहें कभी-कभी सेठ टाईप के लोगों के साथ भी उठना-बैठना हो जाता है उनको मैने खाने-पीने के अवसर पर देखा, एक-दो बार तो सोचा कभी-कभार हो जाता है पर अनेकों बार के अनुभव पर पाया कि यह अचानक होने वाली क्रिया नही है वरन "सेठ बनने और बने रहने" का सुनियोजित "फ़ार्मूला" है ।

होता ये है कि जब सेठ जी को "मुफ़्त की चाय" मिली तो "शटशट-गटागट" पी गये और जब होटल में किसी के साथ चाय पीने-पिलाने का अवसर आया तो उनके चाय पीने की रफ़्तार ...... रफ़्तार तो बस देखते ही बनती है तात्पर्य ये है कि उनकी चाय तब तक खत्म नहीं होती जब तक साथ में बैठा आदमी जेब में हाथ डालकर रुपये निकाल कर चाय के पैसे देने न लग जाये ..... जैसे ही चाय के पैसे दिये सेठ जी की चाय खत्म .... वाह क्या "फ़ार्मूला" है।

एक बार तो हद ही हो गई हुआ ये कि सेठ जी के आग्रह पर एक दिन बस तिगड्डे पे खडे हो कर शर्बत (ठंडा पेय पदार्थ) पीने लगे ... सेठ जी का शर्बत पीने का अंदाज सचमुच अदभुत था चाय की तरह चुस्कियां मार-मार कर पीने लगे .... उनकी चुस्कियां देख कर मेरे मन में विचार बिजली की तरह कौंधा .... क्या गजब "लम्पट बाबू" है कभी मुफ़्त की चाय शटाशट पी जाता है तो आज शर्बत को चाय की तरह चुस्कियां मार-मार कर पी रहा है .... मुझसे भी रहा नहीं जाता कुछ-न-कुछ मुंह से निकल ही जाता है मैने भी झपाक से कह दिया ... क्या "स्टाईल" है हुजूर इतनी देर में तो दो-दो कप चाय पी लेते ... सेठ जी सुनकर मुस्कुरा दिये फ़िर थोडी ही देर में सहम से गये ... सचमुच यही अदभुत दुनिया के अदभुत लोग हैं।

Monday, March 28, 2011

मनी एंड मैनेजमेंट !!

एक राज्य ... चाय पार्टी के बहाने तीन राजनैतिक पार्टियों की मीटिंग ... भ्रष्टाचारी, भुखमंगी व भिखारी पार्टियों के मुखिया आपस में चर्चा करते हुए ... यार अपुन लोग कब तक इस तरह हाथ-पे-हाथ धरे बैठे रहेंगे ... कब तक राज्य में सरकारी नुमाइंदे शासन करते रहेंगे ... क्या इसलिए ही अपुन लोग चुनाव जीते हैं कि बाहर बैठकर तमाशा देखते रहें ... पूरे तीन महीने हो गए राष्ट्रपति शासन चलते हुए और हम लंगड़े-लूलों की तरह देख रहे हैं ... यार अगर यही हालत दो-तीन महीने और चलती रही तो हमारे तो खाने-पीने के लाले पड़ जायेंगे ... करो भईय्या कुछ करो, कुछ सोचो कहीं ऐसा न हो की भ्रष्टाचार की फाइलें खुलने लगें और हम एक - एक कर धीरे - धीरे जेल के मेहमान बन जाएँ ... भईय्या ये लोकतंत्र है और लोकतंत्र में हमें अर्थात जनता को ही शासन करने का मूल अधिकार है ...

... बात तो सभी सही हैं, अगर बहुमत नहीं है तो क्या हुआ फिर भी सत्ता पर अपना ही अधिकार है ... एक काम करो आपस में लड़ना - झगड़ना बंद करो और एक जुट होकर सत्ता हथियाने का कोई उपाय ढूंढो ... और हाँ आपस में फलां कुर्सी मेरी रहेगी, फलां उसकी रहेगी इस पचड़े में भी पड़ना ठीक न होगा, सत्ता में रहेंगे तो कुर्सी कोई भी हो माल तो मिलेगा ही ... हाँ हाँ बिलकुल सत्यवचन है लेकिन अपन तीनों मिलकर सरकार भी तो नहीं बना सकते, पांच सीटें कम पड़ रही हैं, और जिनके पास सीटें हैं वे हमारे घोर विरोधी हैं ... भ्रष्टाचारी पार्टी के प्रमुख ने कहा - एक काम करो पांच सीटों का जुगाड़ मैं करता हूँ पर एक शर्त है मुख्यमंत्री मैं रहूँगा तथा पांच सीटें जहां से जुगाड़ करूंगा उन्हें गृहमंत्री का पद देना पडेगा, बांकी सारे पद हम सब मिलकर बांट लेंगे, अगर हाँ है तो बोलो ... हाँ हाँ सब मंजूर है ... सब मंजूर है ...

... ( भ्रष्टाचार पार्टी के मुखिया जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं अपने घोर - महाघोर विरोधी पार्टी के मुखिया के पास पहुंचे ) देखो भईय्या अपुन लोग ठहरे नेता, और सत्ता से बाहर बैठना अपुन लोगों के हित में नहीं है, आखिर कब तक राज्य में राष्ट्रपति शासन चलता रहेगा, कब तक अपुन एक-दूसरे से खुन्नस पाले बैठे रहेंगे, तनिक सोचो इस खुन्नस से आपको या हमको क्या मिल रहा है, सब ठनठन गोपाल है, अगर ऐसा ही चलता रहा तो कहीं लेने-के-देने न पड़ जाएं, लगता है अपुन लोगों का जेल जाने का योग बन रहा है यदि जल्द सत्ता में न आये तो कहीं पुरानी फाइलें न खुल जाएं, सोचो ज़रा सोचो ... हाँ भाई जी कह तो सही रहे हो, पर हम कर भी क्या सकते हैं ... बहुत कुछ कर सकते हैं सत्ता बना सकते हैं ... कैसे, जल्द बताओ कैसे ? ... मिलकर सरकार बना लेते हैं ... जनता क्या सोचेगी ... क्या भईय्या आप भी मूर्खों के बारे में सोचने बैठ गए ...

... तो ठीक है जैसा बोले वैसा कर लेते हैं ... ये हुई न बात ... आपके पास पांच सीटें हैं इसलिए आपको गृहमंत्रालय वो भी बिना रोक-टोक के, ठीक है ... हाँ चल जाएगा और मुख्यमंत्री ... वो मैं रहूँगा, और बांकी सब को भी संभाल लूंगा, बस एक शर्त है, शर्त ये है कि कितनी भी अंदरूनी बिकट-से-बिकट परिस्थिति क्यों न बन जाए पर छ ( ०६ ) महीने के पहले सरकार गिरना नहीं चाहिए ... वो क्यों ? ... वो इसलिए, हम सब को आखिर प्रदेश में ही राजनीति करना है, चुनाव लड़ने हैं, जनता को देखना है, मनाना है, संभालना है, अंदरूनी कलह व सरकार गिर जाने से जो बदनामी होती है, जो छीछालेदर होती है वह हमें मुंह दिखाने का भी नहीं छोड़ती है, याद है पिछले समय की स्थिति ... हाँ हाँ बिलकुल सही कह रहे हो, चाहे जो भी हो जाए सरकार गिरने नहीं देंगे ...

... एक बात तो बताओ मुख्यमंत्री जी, मेरा मतलब होने वाले मुख्यमंत्री जी ... हाँ हाँ पूछिए गृहमंत्री जी ... इस बेमेल एवं न हजम होने वाले गठबंधन पर जनता तथा मीडिया को क्या जवाब देंगे ... मीडिया !!! ... आप, हम और मीडिया सब एक थाली के चट्टे-बट्टे हैं सब का एक ही "मंत्र" है "मनी एंड मैनेजमेंट" ... और रही बात जनता की, तो बस एक जवाब, हमारा प्रदेश विकास के क्षेत्र में देश के अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़ते जा रहा था जो हमसे देखा नहीं गया, इसलिए हमने अपने देश के मूलभूत सिद्धांत "अनेकता में एकता " को बुलंद करना उचित समझा तथा राज्य के विकास के लिए हम एक हुए हैं ..... क्या बोलते हो ... "अनेकता में एकता" जिन्दावाद ... जिन्दावाद - जिन्दावाद ... जिन्दावाद - जिन्दावाद !!!

Saturday, March 26, 2011

फ़रिश्ते !!

सच ! तुम फ़रिश्ते बन
उतर आते हो जहन में मेरे
कब, कैसे, समा जाते हो
मुझमें, खबर नहीं होती
तुम्हारा मुझमें समा जाना
अदभुत सा लगता है मुझे
तुम्हारा वेग, हौलापन
सरसराता हुआ समागम
कोई कुदरती पहल हो जैसे
तुम्हारा मुझमें डूब जाना
मेरे अन्दर, और अन्दर
डूबकर फिर हिलौरें मारना
भीतर ही भीतर, और भीतर
मेरे अंग अंग में समा जाना
सच ! कहाँ, कहाँ नहीं
माथे, आँखें, होंठ, कान, गले
होते हुए, धीरे धीरे , लहरों सा
वक्ष, यौन, जांघ, पिंडलियों, तलुओं
से होते हुए, नितम्ब, कमर, पीठ
अंग अंग में हिलौरें भरना
किसी करिश्मे से कम नहीं होता
हर क्षण तुम मुझे, फ़रिश्ते
सच ! फ़रिश्ते ही लगते हो !!

Friday, March 25, 2011

आलिंगन !!

जिन्दगी, एक एक पल
लंबा, बहुत लंबा सफ़र
दिन, जिन्दगी, सफ़र में
जब जब होती हूँ
मैं तुम्हारे आलिंगन में
सच ! कुछ देर को ही सही
पर जब तुम, तेज वेग से
समाते हो मुझमें
कुछ पल को मैं
सिहर सी जाती हूँ
पर जैसे ही तुम
पूरे समा जाते हो मुझमें
आनंदित हो, फूल सी
खिल, बिखर जाती हूँ
खुशबू सी महकने लगती हूँ
मैं, संग संग तुम्हारे !!

श्रेष्ठ समाजसेवी !!

प्रदेश में समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य के लिए "श्रेष्ठ समाजसेवी " पुरूस्कार का प्रस्ताव रखा गया, सर्वसम्मति से प्रस्ताव मंत्रिमंडल में पारित भी हो गया, एक समीति भी गठित कर दी गई ... अब वर्ष के "श्रेष्ठ समाजसेवी " के चयन को लेकर समीति की बैठक चल रही थी, अगले ही महीने राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर "श्रेष्ठ समाजसेवी " पुरूस्कार का वितरण किया जाना था ...

... बैठक में घमासान मचा हुआ था कि फला खिलाड़ी, फला साहित्यकार, फला समाजसेवी संस्था के प्रमुख, फला उधोगपति, फला कलाकार का कार्य इस वर्ष श्रेष्ठ व उल्लेखनीय रहा है ... पर किसी एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं बन पा रही थी दो-तीन दिनों से बैठक बेनतीजा चल रही थी किन्तु आज की बैठक में एक और नया नाम उछल कर सामने आ गया, अब नाम भी ऐसा कि कोई विरोध नहीं कर पा रहा था साथ ही साथ लाजिक भी सही था ...

... विरोध करे भी तो कोई कैसे करे, सबका दाना-पानी जो बंधा था उस नाम के साथ, नाम था प्रदेश के सबसे बड़े शराब ठेकेदार - बाटली सिंह का ... जिसको भी - जब भी, गाडी, घोड़ा, चन्दा, विज्ञापन बगैरह बगैरह की जरुरत पड़ती थी तो वहीं से पूरी होती थी इसलिए कोई विरोध भी नहीं कर पा रहा था ... नाम के साथ तर्क भी सही था कि वे "श्रेष्ठ समाजसेवी " क्यों हैं तर्क ये था कि आज की तारीख में वे ही सबसे बड़े समाजसेवी हैं क्योंकि वे शहर-शहर, गाँव-गाँव, गली-कूचे सभी जगह समाजसेवा में मस्त व व्यस्त रहते हैं, उन्हें एक-एक आदमी की जरुरत ... विदेशी, देशी, देहाती का ख्याल रहता है, और ये तो कुछ भी नहीं वे रात-दिन चौबीसों घंटे सेवा में तत्पर भी रहते हैं ...

... पूरे प्रदेश में कोई दूसरा नाम नहीं था जो उनसे ज्यादा समाज सेवा कर रहा हो, जायज था बाटली सिंह का नाम उछलना ... समीति के सारे सदस्य बाटली सिंह का नाम सुनकर मूकबधिर से हो गए थे बैठक का नतीजा फिर सिफर रहा ... समय गुजरता जा रहा था और धीरे धीरे बात मंत्रिमंडल तक पहुँच गई, दो दिन बाद ही पुरूस्कार का वितरण किया जाना था मंत्रिमंडल में भी बाटली सिंह का नाम सुनकर सन्नाटा-सा छा गया, पूरा मंत्रिमंडल प्रदेश के मुखिया सहित चिंतित ... चिंतित इसलिए कि तर्क सही थे पर किसी शराब ठेकेदार को पुरूस्कार देना बदनामी की बात थी, पर किसी हकदार को उसके हक़ से वंचित भी नहीं कर सकते थे ...

... यह बात बाटली सिंह के कानों तक भी पहुँच गई थी कि वह ही पुरूस्कार प्राप्त करने का असली हकदार है और उसके नाम के साथ छेड़छाड़ का प्रयास चल रहा है इसलिए वह भी पल पल की जानकारी पर नजर रखे हुआ था, वह यह भी भली-भाँती जानता था कि बिना तर्क के उसका नाम काटा नहीं जा सकता था क्योंकि चयन समीति के सदस्यों को भी उसने एक्टिव कर रखा था ... लगभग तय सा ही था बाटली सिंह का नाम "श्रेष्ठ समाजसेवी " पुरूस्कार के लिए ...

... प्रदेश के मुखिया के माथे पर चिंता की लकीरें देख पी.ए.ने कहा - साहब आप इस मुद्दे पर आपके कवि मित्र से सलाह क्यों नहीं ले लेते ... अरे हाँ सही कहा, गाडी भेजकर बुलवाओ उन्हें, नहीं नहीं, गाडी लगवाओ हम खुद ही चलते हैं उनके पास ... मेल-मुलाक़ात, चर्चा-परिचर्चा के बाद कविवर मित्र के सलाह अनुसार ... मंत्रिमंडल व चयन समीति के सदस्यों की बैठक दो घंटे के बाद आयोजित की गई जिसमे कवि महोदय प्रदेश के मुखिया के प्रतिनीधि बतौर शामिल हुए ...

... सभी तर्क-वितर्क सुनने के बाद कवि महोदय ने प्रश्न खडा किया कि ये बताओ - क्या बाटली सिंह कानूनीरूप से रात-दिन चौबीसों घंटे बिना प्रशासनिक मौन स्वीकृति के समाज सेवा, जिसे आप लोग समाजसेवा समझ रहे हो, धड़ल्ले से कर सकता है ? ... चारों तरफ से एक ही उत्तर ... नहीं ... नहीं ... नहीं ... ... अब भला जो काम प्रशासनिक मौन स्वीकृति पर चल रहा है उस काम का श्रेय बाटली सिंह को कैसे दिया जा सकता है ? ... जी बिलकुल नहीं दिया जा सकता ... लेकिन इतनी बड़ी समाजसेवा का काम, वो भी रात-दिन, चौबीसों घंटे, गाँव-गाँव, शहर-शहर, गली-मोहल्ले, चप्पे-चप्पे पे चल रहा है क्यों न इस समाज सेवा के लिए ही किसी को पुरुस्कृत किया जाए ... चारों ओर से आवाज निकली पर किसे ??? ... अब इसमें सोचने वाली क्या बात है इतने बड़े काम का श्रेय नि:संदेह प्रदेश के मुखिया को मिलना चाहिए !!!

Wednesday, March 16, 2011

गुरुमंत्र ..... कुत्ता बना आदर्श !!

एक केन्द्र सेवा का अधिकारी सुबह सुबह मेरे घर पर विराजमान हुये उन्हें देखकर मैं हैरान हुआ व सोच में पढ गया कि ये महाशय यहां कैसे व किस कारण से पधारे हैं, चाय-पानी के दौरान मैंने पूछा कैसे आना हुआ, जवाब मिला गुरु जी मैं नया नया नौकरी में आया हूं मेरी प्रथम पोस्टिंग है आपके शहर में, मेरे पिता जी आपके बहुत बडे फ़ैन हैं आपकी लिखी हुई ऎसी कोई लाईन नहीं होगी जो उन्होंने पढी न हो।

जब मैं घर से निकला यहां ज्वाईनिंग के लिये तब पिता जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा - बेटा वहां पहुंच कर सबसे पहले आप से मिल लेना तथा नौकरी में सफ़लता का गुरुमंत्र ले लेना, सो आपके पास आया हूं गुरुमंत्र लेने ... अरे मैं कोई पंडित-वंडित नहीं हूं ... हां पता है आप एक जाने-माने लेखक हैं ... फ़िर मैं कैसे मंत्र दे सकता हूं ... मेरे पिता जी ने जब आपके पास भेजा है मतलब वो यह जानते व विश्वास रखते हैं कि आपसे ज्यादा अच्छा मुझे कोई दूसरा गुरुमंत्र नहीं दे सकता।

मैं चाहता हूं कि आप मुझे ऎसा मंत्र दें जिसे पाकर मैं सफ़लता ही सफ़लता प्राप्त कर सकूं ... चलो ठीक है तो सुनो ... देखो सामने जो मेरा कुत्ता बंधा है उसे गौर से देखो और आज से तुम कुत्ते को अपना आदर्श मान लो ... उसके पांच महत्वपूर्ण गुण अर्थात मंत्र तुम्हें बताता हूं गौर से सुनो ... पहला - तलुवा चाटना अर्थात पैर चटना ... दूसरा - दुम दबाना ... तीसरा - दुम हिलाना ... चौथा - गुर्राना अर्थात भौंकना ... पांचवा - काट लेना ...।

... हर समय कुत्ते को अपने जहन में रखना तथा ये सोचना कि सामने जो व्यक्ति आया है ... उसके पैर चाटना हितकर होगा ... या उसके सामने दुम दबाना हितकर होगा ... या उसके सामने दुम हिलाना हितकर होगा ... या उसे गुर्राना-भौंकना हितकर होगा ... या फ़िर सीधा उसे काट लेना हितकर होगा ... जो तत्कालीन हालात में उचित लगे वैसा-वैसा करते जाना ... सफ़ल हो जाओगे अर्थात सफ़लता तुम्हारे कदमों को चूमेगी ... मेरी बातें अर्थात मंत्र तुम्हें जरा अट्पटा जरुर लग रहा होगा पर आज के युग में सफ़लता का यही मूल मंत्र है।

महाशय आशीर्वाद लेकर चले गये ... सोमवार टू सोमवार हर हफ़्ते आते और आशीर्वाद लेकर चले जाते ... सब मौजा-ही-मौजा ... लगभग तीन साल कैसे गुजरे पता ही नहीं चला ... फ़िर अचानक चिंतित मुद्रा में नजर आये ... मैंने पूछा क्या हुआ ? ... कुछ नहीं गुरुजी सब ठीक चल रहा था एक छोटी सी गल्ती हो गई है मैंने एक ऎसे आदमी को काट खाया है जो सी.एम.साहब का पुराना खास आदमी है और सालों से उनके तलवे चाट रहा है और मुझे तो अभी जुम्मा-जुम्मा ही हुआ है ...

... खैर कोई बात नहीं जिसको काटा है वह मरा तो नहीं ... नहीं लेकिन बहुत पावरफ़ुल है ... एक काम करो जो हो गया उसे मिटा तो नहीं सकते पर सुधार जरुर सकते हो, किसी माध्यम से जाओ उसके पास और तीसरा गुण अर्थात मंत्र - दुम हिलाना का पालन कर लो सब ठीक हो जायेगा ... लेकिन सिर्फ़ तीसरे मंत्र का ही पालन करना ... ठीक है गुरुजी ...

... पन्द्रह दिन बाद ... गुरुजी आपके आशीर्वाद से सब ठीक हो गया मेरा प्रमोशन हो गया है और राजधानी में सी.एम.साहब ने मेरी पोस्टिंग कर दी है कह रहे थे तुम यहीं आकर काम करो ... आपके गुरुमंत्र ने मेरा जीवन ही सुधार दिया है मैं कहां-से-कहां पहुंच गया हूं जिसकी कल्पना करना भी असंभव था ... धन्य हैं मेरे पिता जी और उनकी दूरदर्शिता ... और धन्य हैं आप ... प्रणाम गुरुदेव ... प्रणाम !

चमचागिरी !!

एक दिन अचानक कप्तान साहब गुस्से-गुस्से में सरप्राईस चेक हेतु एक थाने में गुस गये और "सरप्राईस चेकिंग" करने लगे, थानेदार भौंचक्का रह गया ... सोचने लगा आज तो नौकरी गई ... फ़ाईल-पे-फ़ाईल ... पेंडिग-पे-पेंडिग ... शिकायत-पे-शिकायत ... कप्तान साहब भडकने लगे ... किसने तुझे थानेदार बना दिया ... क्या हाल कर रक्खा है थाने का ... कुछ काम नहीं करता है .... स्टेनो को आदेश देते हुये इसका सस्पेंशन आर्डर कल सुबह ११ बजे मेरी टेबल पर होना चाहिये ... गुस्से में उठने लगे ... तभी थानेदार ने सीधे पैर पकड लिये ... माफ़ करो हुजूर आपका बच्चा हूं ... आईंदा से ऎसी गल्ती नहीं होगी ... पैर छोड ही नहीं रहा था ...तब कप्तान साहब गुस्से में दूसरे पैर से एक लात उसके पिछवाडे में जडते हुये चिल्लाये छोडो पैर को ... थानेदार उचट के गिर पडा ... थानेदार संभल कर खडा हुआ ... कप्तान साहब जाने लगे और गाडी में बैठ गये ... थानेदार ने सल्यूट मार कर विदा किया ...

... थानेदार वापस आकर अपने चैंबर में सिर पकड कर बैठ गया सोचने लगा आज तो नौकरी गई कल सुबह सस्पेंड हो जाऊंगा ... सारे स्टाफ़ को सामने बुला कर भडकने लगा तुम लोग कुछ काम-काज करते नहीं हो, तुम्हारी बजह से आज मेरी बैंड बज गई और कल सुबह सस्पेंड होना भी तय है ... मुंह लगा एक मुंशी बोला साहब - कल सुबह सीधे कप्तान साहब के बंगले पर पहुंच जाओ, पैर पकड लेना साहब और मैमसाहब दोनों के, कुछ दुखडा-सुखडा सुना देना ... थानेदार रात भर करवट बदल-बदल कर उपाय सोचने लगा ... उपाय भी मिल गया ...

... दूसरे दिन सुबह साढे-नौ बजे कप्तान साहब के बंगले पर ... साहब के पैर पडे, मैमसाहब के पैर पडे और मिठाई का डिब्बा भेंट करने लगा ... कप्तान साहब गुस्से में ... क्या है, क्यों आया है ... हुजूर माई-बाप आपका आशिर्वाद लेने आया हूं ... पिछले चार-पांच साल से कमर दर्द से परेशान था अच्छे-से-अच्छे डाक्टर को दिखाया ठीक ही नहीं हो रही थी ... कल आपने जो लात मारी, उससे तो "चमत्कार" ही हो गया हुजूर कमर का दर्द रफ़ू-चक्कर हो गया ... आपने मुझे नया जीवन दिया है ... अब मैं सारा जीवन आपकी सेवा में गुजारना चाहता हूं ... चल - चल बहुत हो गया, इस बार तो तुझे माफ़ कर देता हूं ... जा अच्छे से काम करना ... जी माई-बाप !!!

... भैय्या ये घिसटना क्या होता है !!

दो भाई .. एक थानेदार ... दूसरा लेखक ... थानेदार भाई ने फ़ोन लगाया ... हां बोल अनुज ... भईया प्रणाम ... खुश रह ... भैय्या ये घिसटना क्या होता है ... अरे यार तू भी कमाल करता है ... अरे जिसका कोई नही होता वह अपना जीवन ऎसे ही .. धीरे धीरे .. भगवान भरोसे घिसट-घिसट कर काटता है ...दूसरे शब्दों में कहूं तो ... जिसके समर्थक न हों, कोई पंदौली देने वाला न हो, जिसका कोई सालिड बेकग्राउंड न हो, जिसे जी-हजूरी न आती हो, जो चमचागिरी नहीं जानता हो, जो भईया-दादा न हो, जो अकड के चलता हो, बगैरह बगैरह .... अक्सर ऎसे लोग अपना जीवन घसिटते-घसिटते ही काटते हैं ....

... हां भईया समझ गया .... भईया मैं आपकी चमचागिरी तो करता हूं, आप मुझे पंदौली देते रहना, कम से कम मेरा जीवन तो ठीक-ठाक कट जायेगा ... फ़िर पकाने बैठ गया,ये बता तुझे कभी लगा कि मैने तेरा भला नहीं किया ... नई भईया... आपके पैर पकड-पकड कर तो मैं यहां तक पहुंचा हूं ... आपके एहसान तो शायद मैं सात जन्मों मे भी न उतार पांऊ ... अगर आप न होते तो, न जाने मैं कहां पडा होता ... चल ठीक है, अब ज्यादा भावुक मत हो ... बता क्यों फ़ोन लगाया ...

... क्या बोलूं भईया ... नये नये थानेदार आये हैं ... लगता है अब नौकरी करना मुश्किल हो जायेगा ... क्यों, क्या हो गया ... ये नये नये लडके कंधे पर दो-दो स्टार लगाकर भी मंत्रीयों व नेताओं के पैर ऎसे उछल कर पकडते हैं जैसे मेंढक अचानक कूदकर पैर पर चढ जाता है ... भईया भईया कहते आगे-पीछे घूमते रहते हैं जैसे उनकी पार्टी के युवा कार्यकर्ता हों ... इन लोगों ने धीरे धीरे पुराने लोगों को भसकाना शुरु कर दिया है ... लगता है अब मेरा भी नंबर लगने वाला है ... चल ठीक है, समय बदल गया है, पर इतना भी नहीं कि इमानदार लोगों को मौका नही मिलेगा ...

... पर लगता है कुछ बदलाव तो आ रहा है ... कल की ही बात है ... अपने शास्त्री जी (मंत्री) ने याद किया था तो शाम को चला गया था ... कुछ पर्सनल था इसलिये एकांत में लान (बगीचा/गार्डन) में आधे घंटे चर्चा चली ... उनके बंगले पर भीड थी, कुछ आते ही जा रहे थे ... चर्चा के पश्चात शास्त्री जी ने हाथ जोडकर गले लगकर विदा किया ... बाहर निकलते निकलते उनके खास सिपहसलारों ने मेरे पैर छूकर आशीर्वाद लिया ... ठीक उसी समय लपक कर दो पुलिस अधिकारी भी आ गये और पैर छूकर आशीर्वाद लेने लगे, दोनों के कंधों पर तीन-तीन स्टार चमक रहे थे, आशीर्वाद दे कर मैं तो चला आया ...

... मुझे लगा, दूर-दराज के रिश्तेदार होंगें, शायद मैं ही नहीं पहचान पा रहा हूं ... अरे नई भईया, वे कोई रिश्तेदार-विश्तेदार नहीं हैं ... कहीं दूर दूर तक मेरे अलावा कोई दूसरा पुलिस वाला आपके पहचान में भी नही है ... बात दर-असल ये है कि उन्होंने आपको और मंत्री जी को गुप्त चर्चा करते हुए देख लिया था, वे समझ गये कि आप "दम-खम" रखते हो, तब ही तो मंत्री जी ने आपसे गुप्त चर्चा की है, इसलिये मौके का फ़ायदा उठाते हुए, दोनों ने आपका आशीर्वाद ले लिया .... भईया अब ये बताओ, उन दोनों में से कोई एक कल सुबह सुबह आपकी चौखट पे आकर, पैर छूकर आशीर्वाद मांगने लगे, तो क्या आप आशीर्वाद नहीं दोगे !!

... अरे तू फ़िर गलत मतलब निकालने बैठ गया ... नई भईया, मैं कोई गलत मतलब नहीं निकाल रहा हूं, बिलकुल ऎसा ही हो रहा है... पूरे विभाग में ... इसलिये ही तो कह रहा हूं कि अब नौकरी करना मुश्किल लग रहा है ... आप तो जानते हो पूरे बीस साल काट दिये विभाग में, आज तक किसी मंत्री-अधिकारी के पैर नहीं छुए ... अब आप मुझे ये बताओ, यदि कल उन दोनों में से एक और मैं ... किसी अधिकारी या मंत्री से मिलते हैं ... वो लपक के पैर छू ले ... और मैं सल्यूट मार के खडा रहूं ... तब क्या मेरा भला संभव है !!!

Tuesday, March 15, 2011

भ्रष्टाचाररूपी दानव !!

भ्रष्टाचार .... भ्रष्टाचार ....भ्रष्टाचार की गूंज "इंद्रदेव" के कानों में समय-बेसमय गूंज रही थी, इस गूंज ने इंद्रदेव को परेशान कर रखा था वो चिंतित थे कि प्रथ्वीलोक पर ये "भ्रष्टाचार" नाम की कौन सी समस्या आ गयी है जिससे लोग इतने परेशान,व्याकुल व भयभीत हो गये हैं न तो कोई चैन से सो रहा है और न ही कोई चैन से जाग रहा है ....बिलकुल त्राहीमाम-त्राहीमाम की स्थिति है .... नारायण - नारायण कहते हुए "नारद जी" प्रगट हो गये ...... "इंद्रदेव" की चिंता का कारण जानने के बाद "नारद जी" बोले मैं प्रथ्वीलोक पर जाकर इस "भ्रष्टाचाररूपी दानव" की जानकारी लेकर आता हूं।

........ नारदजी भेष बदलकर प्रथ्वीलोक पर ..... सबसे पहले भ्रष्टतम भ्रष्ट बाबू के पास ... बाबू बोला "बाबा जी" हम क्या करें हमारी मजबूरी है साहब के घर दाल,चावल,सब्जी,कपडे-लत्ते सब कुछ पहुंचाना पडता है और-तो-और कामवाली बाई का महिना का पैसा भी हम ही देते हैं साहब-मेमसाब का खर्च, कोई मेहमान आ गया उसका भी खर्च .... अब अगर हम इमानदारी से काम करने लगें तो कितने दिन काम चलेगा ..... हम नहीं करेंगे तो कोई दूसरा करने लगेगा फ़िर हमारे बाल-बच्चे भूखे मर जायेंगे।

....... फ़िर नारदजी पहुंचे "साहब" के पास ...... साहब गिडगिडाने लगा अब क्या बताऊं "बाबा जी" नौकरी लग ही नहीं रही थी ... परीक्षा पास ही नहीं कर पाता था "रिश्वत" दिया तब नौकरी लगी .... चापलूसी की सीमा पार की तब जाके यहां "पोस्टिंग" हो पाई है अब बिना पैसे लिये काम कैसे कर सकता हूं, हर महिने "बडे साहब" और "मंत्री जी" को भी तो पैसे पहुंचाने पडते हैं ..... अगर ईमानदारी दिखाऊंगा तो बर्बाद हो जाऊंगा "भीख मांग-मांग कर गुजारा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा"।

...... अब नारदजी के सामने "बडे साहब" ....... बडे साहब ने "बाबा जी" के सामने स्वागत में काजू, किश्मिस, बादाम, मिठाई और जूस रखते हुये अपना दुखडा सुनाना शुरु किया, अब क्या कहूं "बाबा जी" आप से तो कोई बात छिपी नहीं है आप तो अंतरयामी हो .... मेरे पास सुबह से शाम तक नेताओं, जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों, अफ़सरों, बगैरह-बगैरह का आना-जाना लगा रहता है हर किसी का कोई-न-कोई दुखडा रहता है उसका समाधान करना ... और उनके स्वागत-सतकार में भी हजारों-लाखों रुपये खर्च हो ही जाते हैं ..... ऊपर बालों और नीचे बालों सबको कुछ-न-कुछ देना ही पडता है कोई नगद ले लेता है तो कोई स्वागत-सतकार करवा लेता है .... अगर इतना नहीं करूंगा तो "मंत्री जी" नाराज हो जायेंगे अगर "मंत्री जी" नाराज हुये तो मुझे इस "मलाईदार कुर्सी" से हाथ धोना पड सकता है ।

...... अब नारदजी सीधे "मंत्री जी" के समक्ष ..... मंत्री जी सीधे "बाबा जी" के चरणों में ... स्वागत-पे-स्वागत ... फ़िर धीरे से बोलना शुरु ... अब क्या कहूं "बाबा जी" मंत्री बना हूं करोडों-अरबों रुपये इकट्ठा नहीं करूंगा तो लोग क्या कहेंगे ... बच्चों को विदेश मे पढाना, विदेश घूमना-फ़िरना, विदेश मे आलीशान कोठी खरीदना, विदेशी बैंकों मे रुपये जमा करना और विदेश मे ही कोई कारोबार शुरु करना ये सब "शान" की बात हो गई है ..... फ़िर मंत्री बनने के पहले न जाने कितने पापड बेले हैं आगे बढने की होड में मुख्यमंत्री जी के "जूते" भी उठाये हैं ... समय-समय पर "मुख्यमंत्री जी" को "रुपयों से भरा सूटकेश" भी देना पडता है अब भला ईमानदारी का चलन है ही कहां!!!

...... अब नारदजी के समक्ष "मुख्यमंत्री जी" ..... अब क्या बताऊं "बाबा जी" मुझे तो नींद भी नहीं आती, रोज "लाखों-करोडों" रुपये आ जाते हैं.... कहां रखूं ... परेशान हो गया हूं ... बाबा जी बोले - पुत्र तू प्रदेश का मुखिया है भ्रष्टाचार रोक सकता है ... भ्रष्टाचार बंद हो जायेगा तो तुझे नींद भी आने लगेगी ... मुख्यमंत्री जी "बाबा जी" के चरणों में गिर पडे और बोले ये मेरे बस का काम नहीं है बाबा जी ... मैं तो गला फ़ाड-फ़ाड के चिल्लाता हूं पर मेरे प्रदेश की भोली-भाली "जनता" सुनती ही नहीं है ... "जनता" अगर रिश्वत देना बंद कर दे तो भ्रष्टाचार अपने आप बंद हो जायेगा .... पर मैं तो बोल-बोल कर थक गया हूं।

...... अब नारद जी का माथा "ठनक" गया ... सारे लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और प्रदेश का सबसे बडा भ्रष्टाचारी "खुद मुख्यमंत्री" अपने प्रदेश की "जनता" को ही भ्रष्टाचार के लिये दोषी ठहरा रहा है .... अब भला ये गरीब, मजदूर, किसान दो वक्त की "रोटी" के लिये जी-तोड मेहनत करते हैं ये भला भ्रष्टाचार के लिये दोषी कैसे हो सकते हैं !!!!!!

.... चलते-चलते नारद जी "जनता" से भी रुबरु हुये ..... गरीब, मजदूर, किसान रोते-रोते "बाबा जी" से बोलने लगे ... किसी भी दफ़्तर में जाते हैं कोई हमारा काम ही नहीं करता ... कोई सुनता ही नहीं है ... चक्कर लगाते-लगाते थक जाते हैं .... फ़िर अंत में जिसकी जैसी मांग होती है उस मांग के अनुरुप "बर्तन-भाडे" बेचकर या किसी सेठ-साहूकार से "कर्जा" लेकर रुपये इकट्ठा कर के दे देते हैं तो काम हो जाता है .... अब इससे ज्यादा क्या कहें "मरता क्या न करता" ...... ....... नारद जी भी "इंद्रलोक" की ओर रवाना हुये ..... मन में सोचते-सोचते कि बहुत भयानक है ये "भ्रष्टाचाररूपी दानव" ........ !!!

रास्ते !!

आज फ़िर रास्ते 
दो-राहे से लगते हैं
इधर या उधर
तय करना कठिन
कदम उठें
तो किस ओर
ये उलझनें हैं मन में
हार भी सकता हूं
जीत भी सकता हूं
क्या सचमुच
यही जिंदगी है !!

इम्तिहां !!

पता नहीं क्यूं जिंदगी
हर पल इम्तिहां लेती है
कभी अपने तो कभी गैर
झकझोर देते हैं जज्वातों को
मन की उमंगे-तरंगें
लहरों की तरह
कभी इधर तो कभी उधर
न जाने क्यूं कदम मेरे
साथ चलने में ठिठक जाते हैं !!

ख़्वाब !!

कुछ ख़्वाब थे मुट्ठी में
रेत के कणों की तरह
शनै: शनै: कब बिखरे
सफ़र में एहसास न हुआ
बस, कुछ बचा है
तो एक ख़्वाब जहन में
क्या जहन में बसा ख़्वाब
ले जायेगा मंजिल तक
अब वो पल हैं सामने
जो मुझे झकझोर रहे हैं
कह रहे हैं रख हौसला
चलता चल, बढता चल
एक नई मंजिल की ओर
जहन में बसा ख़्वाब
भी तो आखिर ख़्वाब है !!

Sunday, March 6, 2011

कुछ भूल गए, कुछ याद रहे !!

( ... प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा दिनांक - २७-२८ फरवरी को बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में आयोजित कार्यक्रम "फिर फिर नागार्जुन" के सन्दर्भ में ...  )
... 
कुछ छोटे बहुत बड़े,
तो
कुछ बड़े बेहद सहज दिखे !
...
विजय बहादुर सिंह,
जाने क्यों आँखों में बस गए !
...
किसी से नहीं मिला,
पर बहुतों से मुलाक़ात हो गई !
...
एक शक्सियत से,
मिलते मिलते, ठहर गया !
...
बड़े बड़े मिजाज के लोग,
छोटी छोटी यादें बिखेर गए !
...
प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के लिए,
एक मील का पत्थर !
...
विश्वरंजन, कहीं कुछ,
नाम के अनुरूप नजर आए !
...
मैं क्या था, क्यों था, कहाँ तक था पहुंचा,
चर्चा
जारी रखें !
...
देख-सुन कर, मैंने भी,
जाने क्या क्या सीख लिया !
...
फिर फिर नागार्जुन,
एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
...
संस्मरण : बाबा नागार्जुन,
कुछ भूल गए, कुछ याद रहे !!
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( ... आयोजन को देखने-सुनने के बाद ... जाने क्यों ... ये पंक्तियाँ मेरे जहन में बिजली सी कौंध पडीं ... जिन्हें प्रस्तुत करने से यहाँ खुद को नहीं रोक पा रहा हूँ .... इसलिए प्रस्तुत हैं ... इन पंक्तियों में छिपे भावों पर फिर कभी प्रकाश डालने का प्रयास अवश्य करूंगा ....... !! )
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लिखना, बहुत कुछ, बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ
पर जब, जेब में हांथ डालता हूँ, निकाल नहीं पाता !!
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