Wednesday, October 26, 2011

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ...

हर दीप बने जब दीवाली
हर आँगन में हो दीवाली
दीप दीप से
जगमग जगमग जगमगाए
गाँव-गाँव, शहर-शहर
हिन्दोस्तां में दीवाली !

तेरे मन में, मेरे मन में
खुशियों की हो दीवाली
सूना न हो अब कोई दिल
और न हो अब खामोशी
'उदय' तू भी बन जा दीप मेरे संग
जग में कर दें रौशनी !

गाँव-गाँव, शहर-शहर
हिन्दोस्तां में हो दीवाली
 
जगमग जगमग जगमगाए
तेरी-मेरी दीवाली !!

दीवाली ... और सूना आँगन !

मेरा आँगन सूना है
और हर आँगन में खुशियाँ हैं
'सांई' जाने
कब तक मुझको
खुद ही
दीपक बन के जलना है !!

सूना आँगन लेकर मुझको
कब तक आगे बढ़ना है
अंधियारों से
कब तक मुझको
दीपक बन के लड़ना है !!

वो दिन कब आयेगा 'सांई'
जब खुद तुमको ही
इस सूने आँगन में
बन दीवाली -
जगमग जगमग होना है !!

( सांई = शिर्डी वाले सांई बाबा )

Tuesday, October 25, 2011

दीवाली ... क्या बेच के, क्या खरीद लें ?

पूरे गाँव में दीवाली का शोर था
हर इंसान कुछ कुछ खरीद रहा था
किसी ने नए नए कपडे खरीदे
किसी ने सोने-चांदी के जेवर खरीदे
किसी ने ज़मीन खरीदी
किसी ने मकान खरीदा
किसी ने साइकल, तो किसी ने कार खरीदी
बहुतों ने बहुत कुछ खरीदा
जी ने जो-जो चाहा वो-वो खरीदा
वहीं पर तीन आम इंसान भी खड़े थे -
एक किसान
एक मजदूर
एक नौकर
तीनों गुमसुम गुमसुम से सोच रहे थे
कि -
दीवाली का बाजार लगा है
बच्चों के लिए
कुछ कुछ तो खरीद ही लेते हैं
तीनों ने -
एक-दूसरे का मुंह देखते हुए पूंछा -
बताओ, क्या बेच के, क्या खरीद लें ???

अंधेरा ही अंधेरा

आज ऊंची-ऊंची दीवारों पे
रौशनी खूब जग-मगाई है 'उदय'
कम से कम तुम तो
उन घरों, उन आँगनों में
दीपक बन के जल जाओ
जहां, शाम से नहीं -
सदियों से अंधेरा ही अंधेरा है !!

दूध का धुला

वो दूध का धुला है
ये हमने सुना है
इसमें सच्चाई कितनी है
ये अलग बात है
पर पूरे गाँव में चर्चा है
कि -
वह दूध का धुला है !

बहुत पहले -
उस पर
तीन बलात्कार
एक ह्त्या
पांच जानलेवा हमले, और
पचीसों छेड़-छाड़ के आरोप लगे थे !

पर कल ही
उसके सरपंची पिता ने
पूरे गाँव में
एक सभा का आयोजन कर
सात गाँवों के -
गाय के दूध को इकट्ठा कर
उसे
सार्वजनिक रूप से
पंचायत के चबूतरे पर
दूध से नहलाया-धुलाया है !

हाँ, हम कह सकते हैं
कि -
जो हमने सुना है
वह गलत नहीं है
वह सचमुच दूध का धुला है
और तो और
यह फरमान भी जारी हुआ है
कि -
आज से उसकी पूजा होगी
क्यों, क्योंकि ...
सच ! वह दूध का धुला है !!

कौन हूँ मैं ?

ये न पूंछो कि -
कौन हूँ मैं ?
चलते चलते, धीरे धीरे
निकल आया हूँ
तुमसे, बहुत दूर हूँ मैं !

ये तो खबर नहीं
कि -
कहाँ तक पहुंचा हूँ
पर, तय है
मंजिल के करीब हूँ मैं !

चले आओ, तुम भी
आँख मूंदकर
बेहिचक पीछे पीछे
मंजिल नहीं -
पर रस्ता जरुर हूँ मैं !!

कुंवारे

कल रात
तसलीमा रस्ते में मिल गई
हॉट, सेक्सी, अर्द्धनग्न
मगर अफसोस -
अब क्या कहें !
मैंने कहा -
मैडम, कहाँ जा रही हैं ?
जवाब -
जन्नत की सैर हो रही है
इकहत्तर हो चुके हैं
बस
बहत्तरवे की तलाश है
काश ! तुम भी कुंवारे होते !!

आज नया क्या लिख रहे हो ?

कब तक दिलासा दूं
खुद को
कि -
कुछ लिख रहा हूँ
कब तक !

रोज वही चेहरे, वही लोग
होते हैं सामने मेरे
खामोश रहकर भी कुछ न कुछ -
कहते हैं मुझसे, पूंछते हैं मुझसे
कि -
आज नया क्या लिख रहे हो ?

ऐंसे कब तक चलेगा
कब तक
चलते रहेगा
कब तक यूं ही -
कुछ छोटा-मोटा लिखते रहूँगा
कलम को -
पकड़ कर, यूं ही बैठे रहूँगा !

जी चाहता है, मेरा
कि -
कुछ ऐंसा लिखूं -
जैसा पहले कभी लिखा नहीं गया !
जैसा पहले कभी सोचा नहीं गया !
जैसा पहले कभी पढ़ा नहीं गया !

सच ! हाँ
कुछ ऐंसा ही लिखने का -
सोचता हूँ
कुछ ऐंसा ही लिखने की ओर -
बढ़ना चाहता हूँ
कलम मेरी
उस ओर ही है, जिस ओर ...
पहले कभी, कोई पहुंचा नहीं है !!

मैं एक पाठक हूँ

किसी भी लेखन को -
पढ़ते समय
मैं नहीं देखता
कि -
लेखक
बड़ा है, या छोटा है !
गर देख लूं
तो शायद मैं लेखन को,
दाद -
सच्चे मन से
सच्चे दिल से
एक पाठक के नजरिये से
शायद ! न दे पाऊँ !!

क्यों, क्योंकि -
उस समय मेरे जेहन में
लेखन नहीं, लेखक होगा
वो छोटा, या बड़ा होगा
और जब मैं
यह देख लूं कि -
लेखक बड़ा है, तो निसंदेह
मेरी अभिव्यक्ति
लेखन के दायरे से ऊपर होगी
और यह देख लूं कि -
लेखक छोटा है
तो शायद
मैं नजर-अंदाज भी कर जाऊं
लेखन को !

इसलिए -
इन दुर्भावनाओं से
खुद को दूर रखता हूँ
किसी भी
लेखन को पढ़ते समय
दाद देते समय
यह कतई नहीं देखता
कि -
लेखन से भी कोई -
ऊपर है, ऊपर हो सकता है
फिर भले चाहे
वो, कोई भी, क्यूं न हो !
क्यों, क्योंकि -
मैं एक पाठक हूँ !!

चर्चाओं में लेखक

मैं जानता हूँ, महसूस करता हूँ
कि -
आज
जो लेखक सुर्ख़ियों में हैं
उतने प्रभावी लेखक नहीं हैं
और जो लेखक, प्रभावी हैं
हमारा दुर्भाग्य है
कि -
वो आज
चर्चा में, सुर्ख़ियों में नहीं हैं !!

आज - कल

मैं कौन हूँ, मत पूछो
कुछ भी नहीं हूँ
सच ! अभी तक तो कुछ भी नहीं हूँ
कल क्या होऊंगा -
ये मुझे
कम से कम, आज तो मालुम नहीं है !
कौन जानता है -
कल को
किसने देखा है -
कल को
किसको है खबर -
कल की
शायद ! किसी को भी नहीं !!
क्यों, क्योंकि -
हम
आज में ज़िंदा हैं
कल की सम्भावनाओं के सांथ
देखते हैं
कल क्या होगा
या कुछ होगा भी नहीं !!

हे राम ! सत्य-अहिंसा !!

वह सत्य-अहिंसा के पथ पर था
बातें कड़वी, और व्यवहार में सादगी थी
वो जो भी कहता
बहुत कडुवा लगता था
सत्य -
आज किसे मीठा लग सकता है !

चुभता है
काटता-सा है
झंकझोरता-सा है
सुन-सुन के
कानों में जलन सी होने लगती है
लगता है, जैसे किसी ने
कानों में कोई जहरीला कीड़ा घुसेड दिया है
जो रगड़ रगड़ के -
जला रहा है कानों को !

एक दिन उसके तीखे व्यंग्यी शब्द -
सुनते सुनते
रहा नहीं गया, सहा नहीं गया
और उठकर
जड़ दिया एक तमाचा उसके गाल पे
चटाक ! वह खामोश देखता रहा !!

फिर धीरे से बोला -
बोला क्या, उसने दूसरा गाल आगे करते हुए कहा -
लो, एक चांटा और मार दो, इस गाल पे
सुनकर मैं सन्न रह गया
लगे ऐसे, जैसे उसने मुझ पर
बम फेंक दिया हो
और मैं
क्षित-विक्षित होकर, ज़मीन पे पडा, तड़फ रहा हूँ
हे राम !
सत्य-अहिंसा !!
ये कैसी मुसीबत है
जो चुभती भी है, और फूटती भी है !!

उफ़ ! ये प्रियंका !!

मैं यह कविता सोते सोते लिख रहा हूँ
आधे घंटे से बिस्तर पे करवटें बदल रहा हूँ
आँखों में नींद आने जैसी होती है
तब ही प्रियंका मेरी आँखों में उतर जाती है
मैंने क्या बिगाड़ा है उसका, कुछ भी तो नहीं
फिर भी पता नहीं क्यूं वो मुझे सोने नहीं देती है
कहती है तुम -
मुझे देखते क्यों नहीं हो
मुझे दिलो जां से चाहते क्यों नहीं हो
क्यों तुम मुझे सांथ घुमाते-फिराते नहीं हो
अब क्या कहूं, मैं तो चाहता हूँ
पर, वो दिन में मिलती कहाँ है, और रात को भी
बस तब आती है, जब मैं सो रहा होता हूँ
आती भी है तो आ जाए, मैंने मना कब किया है
आकर चुप-चाप मेरे बाजू में सो जाए
जो करना है कर ले, पर मुझे सोने दे, पर मानती नहीं है
कहती है, तुम कैसे सो सकते हो, मुझे सुलाए बगैर
मैं उससे तंग आ गया हूँ
एक तो सोने नहीं देती
और जब सो जाता हूँ तो, फिर जगने नहीं देती
सो जाती है मुझसे लिपटकर, सिमटकर
फिर न खुद उठती है, और न मुझे उठने देती है
अब बताओ, क्या करूँ, क्या न करूँ
उफ़ ! ये प्रियंका !!

कमाल है ! जय जयकार है !!

चलो आज कुछ नया किया जाए
क्यों किसी -
नेता
अभिनेता
अफसर
समाजसेवी
पर एकाद चप्पल उछाली जाए !

क्या होगा
ज्यादा से ज्यादा
मौके पर
या मौके से थाने जाते जाते
या थाने पर
दो-चार लात-घूंसे ही तो खाने पड़ सकते हैं
और दो-चार घंटों के बाद
रहमदिली के कारण
थाने से भी छूट जाना है !

पर इस बीच इतना तो तय है
कि -
अपुन का नाम फोटो
टेलीविजन -
समाचार पत्रों में छा जाना है
इंटरव्यू भी होंगे, और
दो,चार,: दिनों तक सुर्खियाँ भी बनी रहेंगी !

और जब जब ऐंसी घटनाएँ होंगी
तब तब भी अपुन की चर्चा होते रहेगी
मतलब
एक बार, एक साहसी कदम उठाकर
आजीवन चर्चाओं और सुर्ख़ियों में बने रहना है
और तो और माफी भी मिल जाना है
बस, उछालो जूते-चप्पल ...
कमाल है ! जय जयकार है !!

रंग

कभी बदरंग से थे -
जीवन
ख्याल
विचार
भावनाएं
सब बदरंग से थे
पर अब
रंग
मुझे छूने लगे हैं
मुझे भाने लगे हैं
मेरी आँखों में बसने लगे हैं !

अब मन
रंगों को देख-देख के -
मचलने लगा है
ललचाने लगा है
मेरे -
विचार
ख्याल
इरादे
भावनाएं
रंग में डूबने लगे हैं
रंग से होने लगे हैं !

सच ! तुम्हारे -
विचारों ने
प्रेम ने
मुस्कान ने
समर्पण ने
स्पर्श ने
आलिंगन ने
मुझे रंगीन कर दिया है !!

सॉरी

कुछ ख़त पड़े थे
दराज में
किसी दिन मैंने खुद उन्हें
सहेज सहेज के रखे थे
किसी की याद में ...
जब जी चाहता
जब मन करता
दराज से निकाल-निकाल के -
पढ़ लेता था
छू लेता था
टटोल लेता था
याद कर लेता था किसी को
खो जाता था किसी में !

उनमे बचपन की लुका-छिपी
और जवानी की -
गर्म साँसों का मिश्रण था
कुछ भय था
कुछ चाह थी
कुछ प्यार का अनोखापन था
मिलने की -
और बिछड़ने की यादें भरी थीं उनमें
आज, न चाहकर भी -
सारे ख़त दराज से निकाल कर
सामने रख के जला दिए
राख को फूंक मार के उड़ा दिया !

शायद ! अब कोई -
याद नहीं आयेगा मुझे
क्या करूंगा अब, याद कर के उसे
जब वो
रहा ही नहीं
आज मालुम हुआ कि -
उसने दुनिया छोड़ दी है
परसों ही -
मुक्तिधाम में उसे मुक्ति दे दी गई !
सुनकर -
आँखें डब-डबा गईं मेरी
जाते-जाते उसने
संदेशा भी भेजा है -
दिल से, मुझे, सॉरी कहा है !!

इतनी रात

रात ने जगा दिया
काश ! कुछ देर और
अपनी बाहों में
समेटे हुए
रखे रहती, हमें सोने देती ...
किसी छोटे-मोटे ख़्वाब में
मुझे, उलझाए
रहती
कुछ देर और, घंटे-दो घंटे
उफ़ ! अब क्या करें
इतनी रात ...
किसे याद करें
कौन होगा जो जाग रहा होगा
या
किसे सोते से जगाएं
या फिर
खुद जागते रहें
किसी के जागने के इंतज़ार में ...
कहीं ऐंसा तो नहीं
ये रात
कुछ कह रही है
जगा कर, नींद से उठाकर
मुझे, कुछ इशारे कर रही है
कुछ न कुछ
तो जरुर है, या होगा
जो रात ने मुझे जगाया है
उठाया है ...
एक मित्र की तरह
एक प्रेमिका की तरह
एक नई दुल्हन की तरह
इतनी रात ... !!

चलो चलें, कहीं दूर चलें

चलो चलें, कहीं दूर चलें
दूर गगन के पार चलें
तुम चलो, हम चलें
एक नया संसार गढ़ें
जहां प्यार के फूल खिलें
खुशियों के जहां ढोल बजें
तुम चलो, हम चलें
मीत बनें, हम गीत बनें
चलो चलें, कहीं दूर चलें
दूर गगन के पार चलें !!

संपादक ... उफ़ ! क्या खूब डाकिये हैं !!

एक दिन एक राष्ट्रीय साहित्यिक गोष्ठी के दौरान, दो महाशय सूटेड-बूटेड आपस में चर्चा कर रहे थे, दोनों की बातों से स्पष्ट था कि - दोनों किसी मशहूर साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं के संपादक हैं ... वहीं पर एक बाबा जी भी बैठे हुए थे जो उन दोनों की बातें बहुत गंभीरता पूर्वक सुन रहे थे ... दोनों महाशयों की बातें सुनते सुनते बाबा जी अचानक बीच में कूद पड़े, कूदते ही बाबा जी ने कहा - बुद्धिमान महाशयो, इस साहित्यिक गोष्ठी में शामिल होकर मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है यदि आप बुरा न मानें तो मैं आपसे कुछ जानना चाहता हूँ ... हाँ, पूछिए क्या बात है ... आपकी बातें सुनकर ऐंसा प्रतीत होता है कि आप दोनों सालों से संपादन का काम कर रहे हैं, और शायद आप पत्र-पत्रिकाओं के मालिक भी हैं ... हाँ, बिलकुल सही पहचाना ... अच्छा, आप ये बताइये - पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार, कविता, कहानी, हास्य-व्यंग्य, आलोचना, समालोचना, संस्मरण, बगैरह-बगैरह, सब खुद-ब-खुद आपके चैंबर में पहुँच जाते होंगे, वो भी बिना किसी मेहनत के ? ... हाँ, सच कहा आपने, सब लोग लिख लिख के भेज देते हैं, उनमें से ही हम लोग काँट-छाँट कर ... बहुत बढ़िया, बहुत बढ़िया, बिलकुल ऐंसा ही मेरा भी अनुमान था, क्या कभी ऐंसा हुआ जो आपने - किसी श्रेष्ठ, प्रभावी व प्रसंशनीय लेखन को स्वत: तलाशा हो ? ... शायद नहीं, इतनी फुर्सत ही नहीं होती, और तलाश करने की जरुरत भी क्या है जब सारी श्रेष्ठ सामग्री स्वत: ही अपने पास पहुँच जाती है ... हाँ, सच कहा आपने, तो इसका मतलब मैं यह समझ लूं कि - आप लोग सिर्फ एक डाकिये हो, जो आई हुई चिट्ठियों को छाप-छाप कर संपादक कहला रहे हैं ? ... सुनते ही दोनों तिलमिला गए, कुछ कहते-सुनते, पर बाबा जी से उलझना उचित न समझ कर, दोनों वहां से उठकर चले गए ... बाबा जी खुद ही, खुद से बड़-बड़ाते हुए - लो भई, ये आज-कल के संपादक हैं जो इंटरनेटी फास्ट युग में भी - जहां एक से बढ़कर एक नए नए प्रभावशाली लेखक आ गए हैं वहां भी चैंबर में अपने भाई-भतीजों, चेलों-चपाटों की चिट्ठियों के भरोसे बैठे हैं ... संपादक ... उफ़ ! क्या खूब डाकिये हैं !!

Wednesday, October 19, 2011

मर गई, या मार दी गई !

महीनों से परेशान थी
माँ से मिली, तब दुःख बताया
पिता से अपनी पीड़ा बताई
सहेलियों को तो -
दर्द भरी सच्ची कहानियां
सुनने की आदत सी पड़ गई थी
कौन नहीं जानता
किसे नहीं सुनाया उसने
आस-पड़ोस में भी चर्चा होती थी
सिर्फ उसकी !
एक दो बार तो बात थाने तक भी
जा पहुँची थी
पर किसी ने उसके
दुःख
दर्द
पीड़ा
पर गंभीरता नहीं दिखाई
समझना नहीं चाहा
जानना नहीं चाहा
सुलझाना नहीं चाहा
आज
सब के सब खुद को कोस रहे हैं
पुलिस पंचनामा कर रही है -
लाश का !
जांच की जायेगी
वह मर गई, या मार दी गई !!

... मीठे लग रहे हैं !

बहुत हुए, जग में अंधियारे, कब तक इसको-उसको देखें
चलो बनें हम खुद ही दीपक, दीपक बन के जलना सीखें !
...
उधर कच्ची, तो इधर पक्की मुहब्बत है
फर्क है तो, सोलह और छब्बीस का है !!
...
फेसबुकिया दोस्ती को सलाम है 'उदय'
वो भले न हों, पर हम तो कायल हुए हैं !
...
आज चाँद भी आसमां से दो घड़ी को इठलाएगा
तेरी खूबसूरती को देख, मंद मंद मुस्कुराएगा !!
...
सच ! आदत सी पड़ गई है, जी हुजूरी की 'उदय'
लोग, दर-ओ-दीवार को भी, ठोक देते हैं सलाम !
...
लगता है दोस्त मेरे, मरने की दुआ कर रहे हैं
तब ही तो बात बात पे, मेरी कसम खा रहे हैं !
...
कुसूर अपना था जो दिल दे बैठे थे
उन्होंने माँगा कब था !!
...
एक अर्से से, जिसे हम मुहब्बत माने बैठे थे
आज तजुर्वा हो गया, मुहब्बत क्या बला है !
...
किसी न किसी का तो भ्रम टूटना ही था
चलो अपना सही, समय पर टूट गया !!
...
जी चाहे है क्यूं न पुरुस्कारों की दुकां खोली जाए
सच ! दुनिया है बहुत छोटी, खरीददार बहुत हैं !!
...
मुहब्बत का नशा, बहुत भयानक हुआ है
परसों से चढ़ा है, अभी तक उतरा नहीं है !
...
सच ! कुछ मीठा, तो कुछ तीखा हो जाए
चलो, आज मुहब्बत को आजमाया जाए !
...
'खुदा' जानता है, हम चाहते हैं उसको
अब तुम, इसमें हिसाब-किताब की बातें न करो !
...
हमें ही मोहब्बत हुई थी, इसमें उसका क्या कुसूर
सच ! वो तो सिर्फ, देखते रही थी हमको !!
...
पता नहीं, आज वो क्यूं खामोश है 'उदय'
कल तक तो वो, बहुत बातें करती रही थी !
....
क्या खूब चढ़ा है, मुहब्बत का नशा हम पर
जिधर देखो उधर वो ही वो नजर आ रहे हैं !
...
कुछ घंटे पहले ही तो, वो हमसे मिले थे
जाते जाते, मुझे अपना बना गए !!
...
मैं याद कर के पाठ, वहां नहीं जाऊंगा
जो मन में आयेगा, वही बोल आऊँगा !
...
तुम कहते रहो, हम सुन रहे हैं
लवों के बोल, मीठे लग रहे हैं !
...
अब रंज दिलों में रख के क्या मिलना है 'उदय'
हम तो कब के, शहर उनका छोड़ चले आए हैं !

बहुत बूढा तो है लेकिन ...

कभी भूखा, कभी प्यासा, समर में आगे बढ़ता है
कभी खामोश रहता है, कभी चिंघाड़ पड़ता है !

सफ़र छोटा या लंबा हो, कभी परवाह नहीं करता
दिलों में आरजू रखकर, कदम मजबूत रखता है !

नहीं रुकता, नहीं थमता, नहीं हटता, वो पीछे है
अदब से बात करता है, गजब की शान रखता है !

तेरी, मेरी, इसकी, उसकी, वो बातें नहीं करता
वतन की आन, मान, शान, पे कुर्बान होता है !

नहीं डरता फिसलने से, संभल के पैर रखता है
बहुत बूढा तो है लेकिन, जवानी जोश रखता है !!

... कुछ भी तो नहीं हूँ !

मेरा कद उतना ऊंचा हो, कि तुझे गले लगा सकूं
वरना ! आसमानी ऊँचाई का, मैं करूंगा क्या !!
...
सटका हुआ दिमाग है, कुछ तो कहना चाहता है
रंज कर भी लें मगर, आसमान छूना चाहता है !
...
सोचने में हर्ज क्या है, जब देश में जनतंत्र है
जब नहीं होगा, तब कुछ और सोचेंगे हम !!
...
दिया, लिया, दिया, दिया, लिया, दिया, दिया
उधार, उधार, उधार, उधार, उधार, उधार !!!
...
जब से, मुल्क में चोरों की बादशाहत हुई है
सच ! सुनते हैं अंधेरों से रौशनी गुम हुई है !
...
अगर होता तो, मैं 'खुदा' होता
नहीं हूँ तो, कुछ भी तो नहीं हूँ !
...
जाने कब, अब ये सिलसिला थम पायेगा
हर हांथों में हैं मशालें, इंकलाब तो आयेगा !
...
मुश्किल घड़ी में, आज हमें खुदी को आजमाना है
कहीं ऐंसा हो, पाक इबादत में खलल पड़ जाए !
...
ये हमारी उस्तादी की तौहीन होगी 'उदय'
गर किसी और की शान में कसीदे पढ़ दें !
...
बड़ी मुश्किल से कल खुद को घाटे से बचाया था
आज फिर एक दोस्त व्यापारी बन के आया है !
...
'रब' जाने, कौन, किस पर, कब फ़िदा हो जाए
मिट्टी के खिलौने भी, किसी के काम आते हैं !
...
पता नहीं आज कौन भूखा रहा, नाम मेरे
न वो जता पाए, और न हम समझ पाए !
...
सच ! हमने तो, कुछ कहा ही नहीं था उनसे
'रब' जाने, अब खामोशी का सबब क्या होगा !
...
आज की रात, समंदर सी चल रही है 'उदय'
कहीं ठहरी, तो कहीं बहुत हल-चल है !
...
सच ! अगर वो कह भी देते कि बहुत जल्दी है
ऐंसा मुमकिन तो नहीं था कि हम पकड़ लेते !
...
सच ! मुझे उनके कद की खबर तो नहीं है 'उदय'
पर इतना तो तय है कि कोई मेरे कद का नहीं है !
...
कह देते, ठहर जाओ कुछ घड़ी को तुम
क्यूं न, दो चार कदम और चल लें हम !
...
न रंज, न गम, न इबादत की बातें हों
मौत का कारवां है, सिर्फ मेरी बातें हों !
...
मर्जी थी उनकी, गुड नाईट कह दिया
कम से कम, जवाब तो सुनते जाते !!
...
हर एक जिंदगी की अपनी अपनी कहानी है
किसी की मीठी, किसी की कड़वी ज़ुबानी है !

Monday, October 17, 2011

कठिन राहें

रास्ते आसां होते हैं
किन्तु, सफ़र मुश्किल होता है
मंजिलें तय होती हैं
पर, फासले तय नहीं होते
यूं ही, बगैर -
मेहनत, लगन, तप
कोई, किसी मुकाम पे
पहुंचा नहीं करते !
हौसले, जज्बे
जब चलते हैं
रुकते हैं, बढ़ते हैं, बढ़ते चलते हैं
होती हैं, मिलती हैं
कठिन राहें सफ़र में
थकते हैं, ठहरते हैं, सहमते हैं
टूटते टूटते, बिखरने से संभलते हैं
चलते हैं, चले चलते हैं
कदम दर कदम
मंजिल की ओर ...
तब, कहीं जाकर, हम पहुंचते हैं
धीरे धीरे, शनै: शनै:
मंजिल पर, मुकाम पर, शिखर पर !!

जीवन छुक-छुक गाड़ी है

जीवन छुक-छुक गाड़ी हैबहुत दूर स्टेशन है !
ग्रीन लाईट है बढ़ने दोधीरे धीरे चलने दो !

हवा के झौंके आने दो
गीत-भजन भी होने दो !

छुक-छुक बातें चलने दो
छुक-छुक यादें बनने दो !

छुक-छुक करते आए थे
छुक-छुक करते बढ़ने दो !

बहुत दूर स्टेशन है
ग्रीन लाईट है बढ़ने दो !

जीवन छुक-छुक गाड़ी है
धीरे धीरे चलने दो !!

औरत ...

मैं, न सोचता हूँ, और न ही मानता हूँ
कि -
औरत से भी अधिक ख़ूबसूरत, है कोई और
कैसे मान लूं
जब, मुझे, उससे जियादा ख़ूबसूरत
कोई और, लगता ही नहीं है
शायद ! प्रकृति ...
प्रकृति की सुनहरी वादियाँ -
जंगल
पहाड़
घाटियाँ
नदियाँ
झरने
वर्फ
फूल
खुशबू
ऊंची-नीची हंसी वादियाँ
सब कुछ, सारा जहां
औरत के बाद, या औरत के सांथ ही
ख़ूबसूरत नजर आता है
बगैर औरत के, शायद, ये सब भी
सूने-सूने लगें
फूल भी, खुशबू भी, वादियाँ भी
शायद ! ये सब, औरत के इर्द-गिर्द ही हैं
पर
औरत से जियादा
ख़ूबसूरत, आकर्षक, चुम्बकीय नहीं हैं !!

Saturday, October 15, 2011

खैर, जैसी तुम्हारी मर्जी !

कल एक आशिक ने -
अपनी माशूक से कह दिया
हमें तुमसे मोहब्बत हो गई है
खट से उन्होंने कहा -
तो आज से समझ लें -
तुम पर हमारी बादशाहत हुई है !

जी हुजूर, हम तो बहुत पहले से ही
तुम्हें लाल पान की रानी
और खुद को -
काले पान का गुलाम समझते हैं
और तब ही से तुम पर
अपनी जान निछावर करते हैं !

हम तुम्हारी गुलामी के कायल हुए हैं
क्यों कुछ सैर-सपाटा कर लिया जाए
आओ, बन जाओ घोड़े
और हमें अपनी पीठ पे बैठने दिया जाए !

मल्लिका साहिबा -
हमारा मकसद ये वाली गुलामी से नहीं
वरन दिलों वाली गुलामी से है !

अच्छा, ये बात है, तो
इंतज़ार करिए, करते रहिये
अभी आप कतार में, बहुत पीछे चल रहे हैं
नंबर आयेगा, तब देखेंगे
करना तो तुम्हें, तब भी -
यही गुलामी होगी
बस समय समय की बात है
आज तुम्हें जवानी में
मौक़ा मिल रहा है -
हो सकता है तब तक बुढापा जाए
खैर, जैसी तुम्हारी मर्जी !

मल्लिका की बातें सुनते सुनते
माथे पे पसीना गया
बातें ख़त्म होने के पहले ही
वह खुद--खुद घोड़ा बन गया !!

निर्जला उपवास

धर्मपत्नियों ने
आज
सुबह से उपवास रखा है
वे अपने अपने पति को -
देखे बगैर
पूजे बगैर
वृत नहीं तोड़ेंगी !
क्यों, क्योंकि -
आज करवा चौथ है !
आज
वे अपने अपने पतियों की -
लम्बी उम्र के लिए
दुआएं
प्रार्थनाएं
सुबह से कर रही हैं
आज
उनकी प्रार्थनाएं
सुनी जाएंगी, सुन ली जाएंगी
क्यों, क्योंकि -
आज करवा चौथ है !
आज सुबह से
उनका निर्जला उपवास है !!

सच ! करवा चौथ है !!

कितने
अजीब संस्कार हैं
लोग भी
जिन्होंने
संस्कार बनाए !

कभी नहीं सोचा
कि -
जो इंसान
सुबह-शाम, रोज-रोज
शैतां होता है
अपनी औरत के लिए !

कभी मारता
कभी कचोटता
कभी निचोड़ता है
उसकी मर्जी
जो आए, करता है !

फिर भी
आज
वह शैतां
देवताओं की तरह
उसी औरत के हांथों
पूजा जाएगा
क्यों, क्योंकि
आज
करवा-चौथ है !

संस्कारों ने
उसे
देवता बनाया है
आज
उसकी लम्बी उम्र के लिए
दुआएं होंगी
प्रार्थनाएं होंगी
निर्जला उपवास रखे जाएंगे
उसे देखे बगैर
उसे पूजे बगैर
उपवास नहीं टूटेंगे !
आज
सच ! करवा चौथ है !!

नवयौवन कविता

कविता क्या है ?
इस मुद्दे पे विवाद छिड़ गया
साहित्यिक मंच बनते बनते अखाड़ा-सा बन गया
बहुतों ने -
छंद
मात्राएँ
अलंकार
उपमाएं
रूपक
बिम्ब
भाव रूपी
तरह तरह के हथियार उठा लिए
और आपस में ही मारपीट को उतारू हो लिए
यह सब देख कर मैं सन्न रह गया
दर्शक दीर्घा से उठकर
न चाहते हुए भी, मंच पे पहुँच गया
मैंने कहा -
शांत हो जाओ महानुभावो
क्यूं बेवजह 'कविता' के लिए लड़-झगड़ रहे हो
'कविता' क्या है, सुनो मैं बताता हूँ
'कविता' नवयौवना से कम नहीं होती है
जो हर किसी को देखते ही, खुद-ब-खुद भा जाती है
फिर भले चाहे -
नवयौवना का रंग, रूप, नाक, नक्स, चाहे जैसा हो
वो तो देखते ही देखते मन में उतर जाती है
क्या अब भी कोई संशय है
या और भी विस्तार से समझाऊँ
किसी भी 'कविता' का कोई
रंग-रूप, नाक-नक्स, जात-पात, छंद-अलंकार
नहीं होता !
होता है तो बस, नवयौवन और चिर यौवन होता है !!

... जी चाहे है, मुहब्बत कर लें !

उफ़ ! अच्छी बात है, दोपहर होते होते, हम जाग रहे हैं
फिर भले चाहे, जो मन में आए, आंकलन लगा रहे हैं !
...
सच ! आज हम एक हुनर को देख के दंग रह गए
कमाल है, जूते उठाते उठाते लोग, मंत्री बन गए !
...
चेलागिरी अपने आप में एक हुनर है 'उदय'
सच ! चेला, खुद-ब-खुद छैला हो जाता है !
...
अपुन ने बहुतों को, चेलों का चेला बनते देखा है
बिना सिर-पैर की बातों पे, उनको हंसते देखा है !
...
किसी ने मुस्कुरा के, हमें अपना बना लिया है 'उदय'
अब क्या करें, उसे कुछ कहें, या इंतज़ार करें !!
...
 
किसी ने लाख छिपानी चाही थी, चाहत अपनी
उसकी आँखों ने मगर चुगली कर दी !

...
सच ! शब्द पैने हों या न हों, मोटे होने चाहिए
लिखने वाले की शकल पहचानी होनी चाहिए !
...
सच ! कल रात तक वो हमारे थे
सुबह सुबह होते हम उनके हो गए !
...
हर किसी को हक़ मिला है जोर आजमाईश का
कोई भ्रष्टाचार के सामने, तो कोई पीछे खडा है !
...
जिन्दगी में कहीं कोई बंदिशें नहीं थी
मौत ने रहम की गुंजाईश नहीं छोडी !
...
लड़ते लड़ते लड़ जायेंगे, मरने से नहीं घवराएंगे
आज नहीं तो कल, देश की सीरत बदल जायेंगे !
...

पंदौली दे दे, ले ले के, साहित्यिक मंडली बनाई है
तमगों के समय, आपस में ही पीठ थप-थपाई है !
...
किसी की मुस्कुराहट, भा गई है हमें
सच ! जी चाहे है, मुहब्बत कर लें !!
...
हम अपने उस्ताद को सलाम करते हैं 'उदय'
उस्तादी ने चेला बन कर जीना सिखाया है !
...
सच
! बदलने को तो, रोज बदल रहा है ज़माना
उनका
क्या, जो खुद, खुद को बदलते नहीं है !!
...
इन्टरनेटी दौर में भी लोग छिप के बैठे हैं
'खुदा' जाने, क्यूं पर्दे से बाहर नहीं आते !
...
 
जो जीते रहे, सदा सदा से खुद के लिए
कैंसे मान लें, वो निकले हैं हमारे लिए !
...
 
जीते जी दौलत समेटने में उलझे हुए थे
एक चुटकी बजी, मौत ने सुलझा दिया !
...
 
जो व्यवस्था बदलने का दम भर रहे हैं
वो खुद को बदलने से, क्यूं डर रहे हैं !!
 
...
हमने कसम खा के पानी पी रक्खा है 'उदय'
दाद देंगे तो उसको, जिसके हम पैर छूते हैं !

Thursday, October 13, 2011

एक इनामी कविता

जी चाहता है, आज मैं भी कवि बन जाऊं
कौन-सी बड़ी बात है, सिंपल, बहुत सिंपल है
करना क्या है, कुछ भी तो नहीं
बस -
मछलियों को समुद्र से आसमान में जम्प कराना है
कुत्तों को रोटी के लिए रस्सी पे दौडाना है
परिंदों को चुनाव लड़ते दिखाना है
उल्लुओं के सिर पे ईनाम की घोषणा करना है
बन्दर को लुटेरा और -
बिल्ली को चोर साबित करना है
किसी बूढ़े को खांसते, तड़फते, बिलखते दिखाना है
बच्चों को सिर पे बोझा ढ़ोते तो -
महिलाओं को आपस में बाल खींच-खींच के लड़ते दिखाना है
और ज्यादा कुछ हुआ तो -
पुलिस को डकैती डालते और नेता को खजाना चुराते दिखाना है
इससे भी अगर काम नहीं बना तो
बन्दर की खी-खी-खी
चूहों की किट-किट,
बिल्ली की म्याऊँ-म्याऊँ
कुत्ते की भौं-भौं
शेर की गुर्र-गुर्र,
कौए की कांव-कांव, इन सब को मिला-जुला कर
एक आर्ट टाईप की फिल्म बना कर आस्कर जितवा देना है
ये सब कौन-से बड़े, चमत्कारी, तिलस्मी कारनामे हैं
समेट-समेटा कर एक नई आधुनिक टाईप की कविता रच देना है
बुराई ही क्या है, आखिर इन मिर्च-मसालों में, कुछ भी तो नहीं
आखिर -
बिना तड़के के साग अच्छी कहाँ लगती है
बिना हरी मिर्च के टमाटर की चटनी भी बेस्वाद ही तो लगती है
बिना लहसुन के छौंके वाली दाल फीकी ही तो लगती है
इसी टाईप का कुछ न कुछ तो करना ही पडेगा
नहीं तो एक इनामी कविता कैसे बन पायेगी
और जब इनामी नहीं बन पाई तो
कविता लिखने से क्या फ़ायदा है
और जब कोई फ़ायदा नहीं तो, काहे को टाईम खोटी
काहे की कविता और काहे का कवि
बोलो सिया बलराम चन्द्र की जय, जय जय हनुमान की जय !!

उफ़ ! ये गरीबी रेखा !!

एक लम्बी यात्रा के बाद सुबह सुबह ट्रेन से उतर कर स्टेशन से बाहर निकल कर एक रिक्शेवाले से बोला - मंदिर चौक का कितना लेगा ... वह बोला - साहब, ४०/- रुपया ... मैंने कहा - वाह, कुछ कम से काम नहीं चलेगा ... वह बोला - बिलकुल नहीं चल पायेगा साहब ... मैंने कहा - सुबह सुबह बहस का मूड नहीं है, सही सही बता, कितना लेगा, मैं कोई नया आदमी नहीं हूँ, अक्सर आते-जाते रहता हूँ, अभी एक सप्ताह पहले ही ३०/- रुपये देकर वहां से स्टेशन तक आया था, और वह भी रिक्शावाला हंसी-खुशी छोड़कर गया था, और तू है कि सातवें आसमान पे बैठ के बात कर रहा है, सही सही बोल या फिर किसी और से बात करूं ... साहब आपको जिस से बात करना है कर लो, पर मैं तो ४०/- रुपये से कम नहीं लूंगा ... मैंने कहा - ठीक है, जैसी तेरी मर्जी ( दो कदम आगे बढ़कर दूसरे रिक्शावाले से ) ... क्यों भाई कितना लेगा मंदिर चौक का ... साहब ४०/- रुपया ... सुनकर मैं सोचने लगा कि - क्या बात है अचानक रेट कैसे बढ़ गया है, फिर दोनों को बुलाकर पूंछा कि - क्या बात है अचानक रेट कैसे बढ़ गया ? ... वे बोले, साहब, हम लोग दिनभर में चार-पांच चक्कर लगा कर बड़ी मुश्किल से सवा-सौ, डेढ़-सौ रुपये कमाते हैं, उससे भी दो लोगों का ठीक-ठाक ढंग से खाना-पीना नहीं हो पाता है, फिर सरकार कैंसे २८/- रु. ३२/- रु. में दिनभर के खाने का हिसाब-किताब लगा रही है, हमें तो लगता है कि हम गरीबों को पूरी तरह निपटाने की योजना बना रही है, इसलिए ही हम लोगों ने भविष्य में आने वाले खतरों से बचने के हिसाब से, सब जगह के दस-दस रुपये दाम बढ़ा दिए हैं, अब आप ही बताओ साहब जी, ये कौन-सी "गरीबी रेखा" है जो आज की बढ़ती जानलेवा मंहगाई के दौर में भी ३२/- रुपये की सीमा पार नहीं कर पा रही है ... मैंने कहा - चलो, ले चलो ... उफ़ ! ये गरीबी रेखा !!

छुक-छुक

छुक-छुक, छुक-छुक
जीवन है !
छुक-छुक, छुक-छुक
गाड़ी है !
छुक-छुक, छुक-छुक
चलना है !
छुक-छुक, छुक-छुक
बढ़ना है !
छुक-छुक, छुक-छुक
चलो चलें !
छुक-छुक, छुक-छुक
बढे चलें !
छुक-छुक, छुक-छुक
आए थे !
छुक-छुक, छुक-छुक
जाना है !!

उफ़ ! बड़े साहब का ब्लडप्रेशर !!

जिला मुख्यालय ... बड़े साहब की मंथली मीटिंग का दिन -
जिले के समस्त अधिकारी सुबह .०० बजे समय पर मीटिंग कक्ष में हाजिर हो गए किन्तु देखते देखते घड़ी की सुई खिसकने लगी, देखते देखते पौने-दस बज गए, साहब नहीं आए ... समय के पक्के बड़े साहब के मीटिंग कक्ष में नहीं आने से माहौल सन्नाटे मय हो गया, सुगबुगाहट होने लगी, क्या बात है, क्या हो गया, क्यों नहीं रहे हैं साहब, तरह तरह के सवाल मन में उठने लगे, सारे अधिकारी बड़े साहब के पीए के सामने, क्या हो गया भाई, क्या बात है, साहब क्यों नहीं रहे हैं !

पीए ने कहा - बॉस, आज तो सभी संभल के रहो, साहब का मूड ठीक नहीं है, कहीं ऐंसा हो साहब आते ही भड़क पड़ें, और आप लोगों में से दो-चार विकेट गिर जाएं, आई मीन सस्पेंड हो जाएं ... अरे, क्या बात है भाई जी, साहब का मूड क्यों गरम है ... अब क्या बताएं, सुबह-सुबह .०० बजे राजधानी मुख्यालय से मंत्री महोदय का फोन आया था, पहले तो खूब भड़कते रहे, फिर धीरे से एक लाख की कोई बेगारी टिका दिए हैं, अब जानते तो हो आप सब लोग, जहां रुपये-पैसों की बात आती है वहां साहब का बीपी हाई हो जाता है, और बीपी हाई होने का मतलब तो आप सभी समझते ही हैं इसलिए मैंने साहब से निवेदन किया है कि आप बंगले पर ही रहिये, आराम कीजिये जब आराम जैसा महसूस हो तब आ जाना, तब तक मैं स्टेटमेंट बगैरह ... आखिर मुझे आप लोगों की चिंता भी तो सता रही थी !

अच्छा, बहुत अच्छा किया, अब क्या किया जाए ... करना क्या है, जो कुछ करना है वह आप लोगों को मिलकर करना है, लाख रुपये कौन-सी बड़ी रकम है, सब लोग जेब में हाँथ डालकर पांच-पांच निकालोगे तो काम बन जाएगा, आखिर साहब तो आप के ही हैं, एक लिफ़ाफ़े में डालकर जाऊंगा और साहब को खट से मना कर ले आऊँगा, आप सब जानते तो हो ही कि साहब की बीपी कैसे नार्मल होती है ... पीए का बोलना था और दो से तीन मिनट के अन्दर ही रुपये इकट्ठे हो गए ... पीए गया, साहब आए, और डेढ़ से दो घंटे में शांतिपूर्वक मीटिंग संपन्न ... मीटिंग के बाद सभी अधिकारी आपस में चर्चा करते हुए - यार, मीटिंग के दिन कोई कोई साहब का ब्लडप्रेशर जरुर बढ़ा देता है और अपुन लोग ब्लडप्रेशर की भेंट चढ़ जाते हैं... उफ़ ! बड़े साहब का ब्लडप्रेशर !!

अद्भुत लड़कियाँ

कल रात -
तुम गुलाबी पंखुड़ी सी
लाल लिबास में लिपटी हुई थीं
सिर से पांव तक
लाल, लाल, लाल
लाल चुनरी
लाल गाल
लाल होंठ
लाल ब्लाउज
लाल मेंहदी से रचे हाँथ
लाल घाघरा
लाल मेंहदी से सजे पांव !
नजर मेरी
बार बार ठहर-सी जा रही थी
तुम पर
तुम, कहीं ज्यादा ख़ूबसूरत
और हसीन थीं
अद्भुत ...
शादी की रात
लड़कियाँ
दुल्हन के लिबास में
सच ! अद्भुत होती हैं !!

Wednesday, October 12, 2011

... बहुत शान है, स्वीस बैंक में खाता है !

खुशनसीबी है, कोई खुद को खुदा समझ बैठा
उफ़ ! लाचारी है हमारी, जो उसे हम पूज लेते हैं !
...
चलो, जल्दी करो, निकल लो, भ्रष्टों का शहर है
कहीं ऐसा हो, लुट जाएँ, और यहीं भटकते फिरें !
...
शर्मसार होने का अपना अलग लुत्फ़ है 'उदय'
उफ़ ! लोग हंस हंस कर मजे ले रहे हैं !
...
क्या करें, याद रख के भी, कोई सुनता कहाँ है
उफ़ ! कहने को तो सरकार हैं, पर असर कहाँ है !
...
कोई तो है जिसे देख के जी लेते हैं
वफ़ा, बेवफा, से कोई वास्ता नहीं !
...
आँखें, दिल, दिमाग, सिहर गए
सच ! कहानी, प्रेम कहानी जैसी थी !
...
सुबह, शाम, दिन, रात, चलते-चले-चलते हैं
उफ़ ! चलते चलते जिन्दगी ठहर जाती है !

तुझे
चाह कर कुर्वान कर दिया था सब कुछ
उफ़ ! जीत की चाह थी, तो कह दिया होता !
...
कर अफसोस, जिन्दगी क्यूं नहीं संवरी
सच ! अभी भी वक्त है, क्यूं संवारा जाए !
...
पत्थरों को तकदीर से तोड़ रहे हैं
कोई गम नहीं, शान से जी रहे हैं !
...
बुरी नजर से कौन बचाए, अब वतन के पाक दामन को
उफ़ ! किसी से सुना है, नापाक लोगों की हुकूमत है !
...
जमीर बेच दिया, कोई गम नहीं
बहुत शान है, स्वीस बैंक में खाता है !
...
चलो आज आजमा के देख लिया जाए
सच ! दोस्ती अच्छी है, या दुश्मनी !
...
काश ! दोस्ती को जुर्म मान लिया गया होता
कम से कम किसी पे, एतवार तो हुआ होता !
...
अभी ज्यादा, कुछ बिगड़ा नहीं है
अगर चाहें, लोकतंत्र बचा लें हम !
...
चलो चलते रहें, बढ़ते रहें, मोहब्बत का सफ़र है
जन्नत सा लगे है, ये हरियाली और ये रास्ता है !
...
किसी को हो गया है गुमां चमकती सूरत पर
काश ! सीरत में, मिश्री घुली होती !
...
सच ! किसी को नजर नहीं आईं खूबियाँ, और प्यार मेरा
किसी और की बदसलूकियों पे, मैं बेवजह बदनाम होता रहा !
...
गरीब हैं तो क्या, ईश्वर ने बांटी है बादशाहत हमको
सच ! समय-वे-समय अमीरों को, चाय पिलाते रहे हैं !
...
वाह वाह ! खुदा खैर तुम नींद से जागे तो
क्या सुबह, क्या शाम, ख़्वाबों में रहते हो !
...
अफसोस ! तुम मिलकर भी मिले
उफ़ ! अब समझे, ये दिल टूटा क्यों है !
...
कालाबाजारी, भ्रष्टाचारी, घोटालेबाजी, जय हो
उफ़ ! सच बोलने वालों को सजा दे दो, देश थर्रा जाए !
...
ये माना देश दुकां है उनकी, क्या खूब व्यापारी हैं
सच ! मान, ईमान, स्वाभीमान, परचून हुए हैं !
...
नई संस्कृति, नई रश्में, सिर-आंखों पे हैं हुक्मरानों की
सच ! देश को बेच बेच के, विदेश में जमीं खरीद रहे हैं !

अगर चाहो तो, किराए पर ले लो !

खुदा, सनम, उलफत, राहें, जिन्दगी
सच ! चलो मिलबांट के बसर कर लें !
...
शब्द, इच्छा, प्रेम, दस्तक, दहलीज
सच ! चलो आजमा लें !
...
फरेब उतना नहीं अंधेरों में
शायद हो जितना, सुबह के उजालों में !
...
गुंजाइशों की जगह बरकरार रखना यारो
आशिकी में तकरार और सुलह, आम बात है !
...
दफ्न कर के भी, सुकूं मिला शायद
अब भी बैठे हैं, कब्र पे इठलाते हुए !
...
तुम सही, तुम्हारी बेवफाई के निशां, बहुत काम आए
सच ! हम वफ़ा भूल गए, फिर कोई बेवफा निकला !
...
सच ! तुम होती हो, रात गुजर जाती है
तुम्हारी याद में जलना खुशगवार नहीं !
...
रात, चिराग, दिल, यादें, इंतज़ार में हैं
सच ! शायद कोई वादा भूल गया है !
...
अब हमने भी, दुश्मनी के गुर सीख लिए हैं
चलो अच्छा हुआ, चहूँ ओर सन्नाटा है !
...
गर चाहो मेरे फुर्सत के पलों में, सुस्ता लो ज़रा
सच ! सफ़र लंबा है, मुझे चलते जाना है !
...
सब कुछ लुटाया था मैंने तुझ पर, शायद अंधा था
उफ़ ! भूत इश्क का उतर गया, अब सड़क पर हूँ !
...
क्या अदब, क्या शान-शौकत है, मगर अफसोस
सच ! दौलत को ही सब कुछ समझते हैं !
...
खंजर फेंक दो, गले लग जाओ यारो
माँ तड़फती है, टपकता लहू देख कर !
...
उफ़ ! कब तक सहें धमकियां, कल गिराते हैं तो आज गिरा दें सरकार
क्या फर्क पड़ना है, स्वीस बैंक में जमा कालाधन कौनसा मेरा अपना है !
...
अब क्या करें, शीला, मुन्नी, हमें भाने लगीं हैं
अब तो दिल धड़कता है, बस उन्हीं के नाम से !
...
हिन्दू-मुस्लिम मिले, जज्बे मोहब्बत के खिलने लगे
उफ़ ! शैतानों की बस्ती है, 'खुदा' बुरी नजर से बचाए !
...
सलाह पर, ज़रा लचके थे, गधा लपक के मचक गया
उफ़ ! अब शान से कहता है, चल मेरे घोड़े, टम्मक टू !
...
जमीर बेच के, शान--शौकत से ज़िंदा हैं बहुत
सच ! खुश हैं, बहुत दौलत समेट के रख ली है !
...
अंगडाईयों को हसरतें समझना गुस्ताखी होगी 'उदय'
सच ! सुना है वो, अंगडाई शौक से लेते हैं !
...
विशेष सूचना - यहाँ इज्जत बेची नहीं जाती
सच ! अगर चाहो तो, किराए पर ले लो !!

... उसे देशभक्त न पुकारा जाए !

गुलामी के दिनों में जो सिहर जाते थे 'उदय'
उफ़ ! वो आज खुद को आजमा रहे हैं !
...
दर, दीवार, घर, दुकां, गली, मोहल्ला
ये हिन्दोस्तां है, यहाँ सब मजहबी हुए हैं !
...
सियासत, राजनीति, कूटनीति, हैं बिसात शतरंजी
अपनी जीत के खातिर, खुदी के मोहरे पीट देते हैं !
...
काश तेरी दुआओं में पल दो पल को हम भी होते
दो चार घड़ी सुख-चैन के, हम भी जी लिए होते !
...
पता नहीं इस ख़त में किसका पैगाम आया है
शायद किसी भूले को, मुझसे कोई काम आया है !
...
कल डूबते डूबते, डगमगाती नइय्या, संभल गई
सच ! शायद माँ की दुआओं का असर है !
...
कोई सुबह से चिल्ला रहा था, मैं हमनवा हूँ
देख चिलचिलाती धूप, जा पेड़ नीचे बैठा था !
...
सुन लोकतंत्र की बातें मन मीठा हुआ था
सच ! बसर कर के देखा, कडुवा लगा है !
...
चलो थकान दूर हुई, इत्मिनान से बैठें 'उदय'
सच ! सालों का कर्ज था, आज उतर गया !
...
कोई इधर, तो कोई उधर की कह रहा है 'उदय'
उफ़ ! लगता है, सब मिले हुए हैं !
...
बा-अदब बेचैनी टूट गई
सच ! जब तेरा पैगाम आया !
...
उसकी दुआओं से, मैं सिहर गया 'उदय'
सच ! ऐसा लगा, कोई तुझे मांग रहा है !
...
नेतागिरी कारोवार हुई है 'उदय'
नफ़ा-ही-नफ़ा, हर मोड़ पे चर्चा है !
...
होंठ, अमृत, आँखें, झील, गेसु, आसमां
क्या करें, कोई समझाये हमें !
...
मर गया, कोई बात नहीं, अफसोस मनाया जाए
भ्रष्ट था, भ्रष्टाचारी था, उसे देशभक्त पुकारा जाए !
...
शाम से, लालकिला तो संवर जाएगा यारो
चलो किसी झोपडी में, दीपक जलाया जाए !
...
क्यों नज़रों को आजमा के देख लिया जाए
शायद ! ठहर जाएँ नजरें, हो जाए मोहब्बत !
...
क्या खूबसूरती है, ज़रा ठहर, देख लूं तो चलूँ
जन्नत सा सुकूं है आँखों में, देख लूं तो चलूँ !
...
चलो अच्छे-बुरे के जज्बे को आजमा लें
कोई तो होगा, जो तसल्ली देगा !
...
क्यों लोग मस्त हैं, पत्थर तराश कर मूर्ती बनाने में 'उदय'
चलो आज किसी बच्चे को तराश कर, 'खुदा' बनाया जाए !

... कहीं सरकार न गिर जाए !

कर लो प्रेम, शादी, अपने पेशे से, अफसोस नहीं
उफ़ ! लोगों ने गुनाहों को अपना पेशा बना डाला !
...
चलो कोई तो खुश है इन सरकारी झांकियों से 'उदय'
उफ़ ! न जाने कब, आपकी, हमारी बारी आयेगी !
...
क्या खुशनसीबी थी, किसी ने मरा कहा, राम मिल गए
उफ़ ! राम नाम जप के भ्रष्ट, न मरते हैं, न जीने देते हैं !
...
झूठ कहते हैं लोग, शराब गम हल्का कर देती है
सच ! हमने देखा है, बहुतों को नशे में रोते हुए !
...
प्यार के नाम से जीते हैं, मर जाते हैं
रायशुमारी ! क्यों न आजमा लें पहले !
...
एक पल में कैसे उन्हें बेवफा कह दें 'उदय'
सच ! हमने देखी है वफ़ा की इन्तेहा उनमें !
...
न जमीं, न मकां को अपना समझो
कोई कह रहा था शैतानों का शहर है !
...
सुकूं की चाह ने, दीवाना बना दिया
सच ! बेचैन हैं, जब से मोहब्बत हुई है !
...
क्या करें मजबूर हुए हैं, न्याय की चौखट पे सरेआम हुए हैं
गर न उठाते खंजर, 'उदय' जाने, आबरू कब तक रौंधी जाती !
...
अटकते, भटकते, लटकते, झटकते, उलझते, सुलझते
हम चले जा रहे थे, खुदा खैर जो तुम हम से टकरा गए !
...
हमको था यकीं, है आलम दोस्ती का !
सच ! भ्रम टूट गया, सब दुश्मन निकले !
...
शब्दों का सफ़र, सच ! जिन्दगी का सफ़र है
आओ बैठकर, कुछ बातें कर लें !
...
समय दर समय, लोग चेहरा बदल बदल के मिलते हैं 'उदय'
कल सड़क पे एक लाश पडी थी, अभी मालूम हुआ दोस्त था !
...
मंहगाई ! क्या करें, मजबूर हैं, समय नहीं है
सच ! सारे समय, स्वीस बैंक का कोड याद आता है !
...
अफसोस नहीं, बीच मझधार में छोड़ गया
खुशनसीबी है, कम से कम ज़िंदा छोड़ गया !
...
पता नहीं किसकी दुआओं ने ज़िंदा रखा है
'उदय' जाने, कल तो मौत भी शर्मिन्दा थी !
...
किनारे, नदी, प्यास, दरिया, तस्वीर, आईना
कब से बैठा हूँ, तिरे आँगन में गुनहगार की तरह !
...
गाँव, शहर, शहादत, दहशत, तिजारत, शरारत
सच ! जीना दुश्वार हुआ, कातिलों का जूनून देखो !
...
चलो अच्छा हुआ जो गिरगिट सा हुनर सीख लिया
अब रंग के साथ साथ, चेहरे भी बदल लेते हैं !
...
गरीबों की बस्ती में, अब दीवाली मनती कहाँ है 'उदय'
वहां आज, जरुर कोई बम फटा होगा !
...
अफसोस नहीं, जो तुमने मुझे गुनहगार मान लिया
अब तो जब भी चाहेंगे, सरे राह तुम से मिल लेंगे !
...
गरीबों की बस्तियों में, चूल्हे नहीं जला करते 'उदय'
किसी ने सच ही कहा है, वहां सिलेंडर कैसे फटा होगा !
...
गजल, गीत, भजन, का दौर है 'उदय'
चलो कोई बात नहीं, कुछ अपनी कह लेते हैं !
...
कल खुश था, उसका तलवार का घाव जो भर गया था
सच ! आज दुखी है, अपनो की दी हुई गालियाँ जहन में हैं !
...
सच ! स्वीस बैंक, काला धन, सब अपने लोगों का है 'उदय'
क्या करें, कुछ समझ नहीं आता, कहीं सरकार न गिर जाए !!

प्रेम से नहीं, दरिंदों को लातों से कुचला जाए !

मुफलिसी, दुश्मनी, गम, अंधेरे, सताते रहते हैं
जब भी मिलते हैं, अकड़ के मिलते हैं, जैसे कर्जदार हूँ मैं !
...
बेवफाई के दौर में, वफादार कहाँ मिलते हैं 'उदय'
एक आस थी, टूट गई, जब आज वो बेवफा निकले !
...
जुनून--मोहब्बत, जाने क्या गुल खिला दे
टूटे जब दिल, खुद को हिला दे, ज़माना हिला दे !
...
कहो तो लिख दें बेवफाई पे 'उदय'
सुना है उन्हें वफ़ा रास आती नहीं है !
...
अब तो हमारी दुकां मोबाइल पर ही चलती है 'उदय'
कोई टाईम टेबल नहीं है, जब जिसकी जैसी मर्जी !
...
अब किसी पे हमें ऐतबार रहा
सच ! तन्हाई में ही गुजर करते हैं !
...
आज के दौर में, तरफदार कहाँ मिलते हैं
वक्त मिलता है तो, खुद पे फना हो लेते हैं !
...
वादों
की बस्ती, आंसुओं के सैलाब में डूब गई
दिल, दिमाग, जहन से, तेरी हस्ती उजड़ गई !
...
घर में खोल ली है आफिस हमने
अब टेंशन घटाएं तो घटाएं कैसे !
...
उतार-चढ़ाव, आयेंगे, जाते जायेंगे 'उदय'
ये इरादे हैं मेरे, जो ठहरे हैं, ठहरेंगे !
...
चलो कोई तो खुश है, इल्जाम लगा कर 'उदय'
बदनाम करने के मंसूबों ने, सुर्ख़ियों में लाया है हमें !
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उफ़ ! परवान चढ़ गए, कुर्वान हो लिए, फना हो गए
काश मौसम का मिजाज देख के, दीपक जलाए होते !
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थक के बैठे हैं, वक्त कैसे गुजारा जाए
सच ! आओ किसी बच्चे को तराशा जाए !
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कब तक हम होंगे खुश, देख दूजे की हस्ती-मस्ती
चलो कुछ करें, खुदी को मस्तमौला बनाया जाए !
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मेरी हस्ती मिटा के, कोई खुश बहुत हुआ होगा
मरा नहीं हूँ, वतन परस्तों के जहन में ज़िंदा रहूँगा !
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धूप, छाँव, खुशी, गम, तुम, हम
भुला बिसरी बातें, चलो हमदम बनें !
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जज्बातों को कब तक समझाएं हम 'उदय'
प्रेम से नहीं, दरिंदों को लातों से कुचला जाए !
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रहनुमाओं की आँखें देखो, अंदाज निराले हैं
बदलता दौर है, शैतानों को पहचानें कैसे !
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क्या खूब बरसी है इनायत देखो
हाथ कहीं, आँख कहीं ठहरी है !
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शब्द अनमोल हैं, भाव हम समझाएं कैसे
सीधी सी लकीर है, चलना सिखाएं कैसे !
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मोड़, फिर मोड़, जिन्दगी गुजर जायेगी
सच ! चलो हमदम बनें, राहें सरल कर लें !
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माँ, पैर, प्रेयसी, चुंबन, नया दौर है
उफ़ ! कुछ भूल गए, कुछ सीख लिया !
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डाक्टर बीमार हुआ, क्या हुआ
भ्रष्ट कीड़े ने काटा है, टीका तलाशा जाए !

... मौत भी इम्तिहां ले रही है !

खटमल, काक्रोच, मच्छर, दीमक, मकडी, बिच्छू
हिस्से-बंटवारे में लगे हैं, लोकतंत्र असहाय हुआ है !
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छत चूह रही है, गरीब भीग रहे हैं
अमीरों ने बरसांती की दुकां खोली है !
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दीमक, फफूंद, जाले, बढ़ रहे हैं 'उदय'
लोकतंत्र रूपी कोठी, घूरा हुई जा रही है !
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उफ़ ! गजब मुफलिसी, और अजब फांकापरस्ती थी
सच ! कोई अपना, और कोई बेगाना था 'उदय' !
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आज का दौर है, बहुतों के हांथों में मशालें हैं 'उदय'
भी चाहेंगे, फिर भी किसी हाथ से जल जायेंगे !
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सरकारी मंसूबे अमीरों की कालीन पे बिखरे पड़े हैं
कोई बात नहीं, गरीब मरता है तो मर जाने दो !
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बहता दरिया हूँ, मत रोको मुझको
जब भी चाहोगे, मुझको छू लोगे !
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बेईमानों की बस्ती में, जज्बे और जज्बातों की दुकां खुल गई
मगर अफसोस, सुबह से शाम तक, कोई खरीददार नहीं आया !
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किसानों ने खून-पसीना सींच-सींच उगाई है फसल
क्या करें, सरकार और व्यापारियों में एका हो गया !
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फर्क इतना ही है, इंसा पत्थर हुए 'उदय'
जज्बात मरने को तो, कब के मर चुके हैं !
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जब उत्साह, जज्बातों के टूट के झरने लगें
गिरते कणों को सहेज, उत्साह बढाया जाए !
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सात फेरे और सात कश्में, कोई सहेज के बैठा है 'उदय'
उफ़ ! निभाने वाले, सात समुन्दर पार जा के बैठे हैं !
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तेरे आंसू, मेरे आँगन में ज़िंदा हैं आज भी
तू सही, अब उन्हें ही देख, जी रहा हूँ मैं !
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आलू, टमाटर, प्याज की दुकां शोरूम हो गईं
उफ़ ! मोल-भाव नहीं , कीमती लेबल लगे हैं !
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 हमदर्दी की बातें, मौकापरस्ती का आलम है
जिधर देखो उधर, फरेब ही फरेब है 'उदय' !
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जिन्दगी, ठिकाने, दीपक, उजाले, जमीं, आसमां
सच ! गिले-शिकवे भुलाकर, चलो मिलकर संवारें !
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उफ़ ! मुहब्बत झूठी निकल गई
सच ! चाँद गवाह बना देखता रहा !
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किसे अपना, किसे बेगाना समझें 'उदय'
राजनीति है, कहाँ ईमान नजर आता है !
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काश आईना मेरा, मुझसा हो जाता
रक्त से सना मेरा, चेहरा छिपा जाता !
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गरीबी, मंहगाई, भूख, अब जीने नहीं देती
उफ़ ! क्या करें, मौत भी इम्तिहां ले रही है !
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आज आईने में देखा, खुद मेरा चेहरा बदला हुआ था 'उदय'
फिर पड़ोस, गाँव, शहर, विदेशी चेहरों पे यकीं कैसे करते !
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खुशियाँ बार बार मुझे निहार रही थीं
और मैं सहमा सा उन्हें देख रहा था !
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ताउम्र वह खर्चे के समय, एक एक सिक्के को रोता रहा
सुबह लाश उठाई, बिस्तर पे नोटों की चादर बिछी थी !
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पद और पैसे के लिए ईमान बेच रहे हैं
खुदगर्जी का आलम, सरेआम हो गया !
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कुछ कहते फिर रहे, फ़रिश्ते खुद को 'उदय'
हम जानते हैं, कल तक वो ईमान बेचते थे !
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क्या खूब, खुबसूरती समेटी गई है
सच ! तस्वीर, ख़ूबसूरत हो गई है !
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तेरी जुल्फों में जो उलझा हूँ
सच ! वक्त, ठहर सा गया है !
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तिरे आगोश में, सिमट गया हूँ मैं
ढूँढता हूँ खुद को, कहीं खो गया हूँ मैं !
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प्यार, मोहब्बत, जज्बे, जंग हो गए
सच ! चलो किसी को जीत लें हम !
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बाजार बहुत मंहगा हुआ है
चलो वहां कुछ देर घूम आएं !

... चिल्लाती भी तो चिल्लाती कैसे !

पॉलिसी, प्रीमियम, इंश्योरेंश, सब कुछ करा लिया
फिर क्लैम के लिए, मेरे सीने पे नस्तर चला दिया !
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छोड़ दिया कोई गम नहीं, अपना बनाया तो सही
तोड़ते फिरते हैं दिलों को, उन्हें कोई अफसोस नहीं !
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चलो फिर आज रेत का एक घरौंदा बना लें
कुछ देर ही सही, हम खुशियों को जगह दें !
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दे दे कर सलामी, खुश हो रहे हैं लोग
सच ! गुलामी में भी, ठाठ छन रही है !
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सच !मिट्टी, रेत के घरौंदे हम बनाते रहे
और उन्हें बारिश की बूंदों से बचाते रहे !
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तेरी
दुआओं ने सलामत रक्खा है मुझको
सच ! एक एक अदा का, कर्जदार हूँ मैं !
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चलो आज की सब इत्मिनान से सलाम कर लें
सफ़र में हमें, हर रोज दो-चार पहर मिलना है !
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सच ! हम तो उसी दिन हो गए थे फना
जिस रोज तुमने हमें देख मुस्काया था !
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तेरी आँखों ने कहा, कुछ चाव से
सोचे बिना ही हम तेरे संग हो लिए !
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ठीक
है, जाओ, पर याद रखना 'उदय'
घर में कोई, टकटकी लगाए बैठा है !
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प्रेम
, विश्वास, समर्पण, खुशियों की बुनियाद हैं 'उदय'
सच ! जिसको भी छेड़ोगे, मायूसी ही हाथ आयेगी !
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चाहत, कशिश, लम्हें और हम
चलो
कहीं बैठ के बातें कर लें !
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जब तक हमने पत्थर उछाले नहीं थे 'उदय'
कैसे कह देते आसमां में सुराख हमने किये थे !
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सितम सहते रहे, खामोश रहे
कुछ कहा, गुनाह कर लिया !
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जमीं से आसमां तक, था धुंध अन्धेरा
खुशनसीबी हमारी, तुम चाँद बन के आए !
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खुशबू बिखर गई, गिरी पंखुड़ियों के संग
जब तक गुलाब था, क्या ढूँढते थे हम !
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सारी
रात हम दर पे, बैठे बैठे जागते रहे
और क्या करते, तेरी नींद का ख्याल था !
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जब से मिले हो तुम, खुशियाँ ही मिल गईं
तिनके तिनके समेट, हमने घौंसले बना लिए !
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आज जो खुद को निकम्मा कह रहे हैं 'उदय'
सच ! हम जानते हैं वो बहुत समझदार हैं !
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शुक्र है मिरे रक्त ने, कुछ असर तो दिखाया
चलते चलते राह में, अजनबी को हंसाया !
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पलकें सिहर गईं थीं, तिरे इंतज़ार में
जब आना नहीं था, फिर वादा ही क्यूं किया !
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कैंसे मिले थे तुम, और कैंसे बिछड़ गए
अब यादें समेट के, चला जा रहा हूँ मैं !
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वक्त ने क्यों, हमें इतना बदल दिया
शैतां लग रहे हैं, खुद आईने में हम !
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गूंगों के हाथ में सत्ता की डोर है
अंधों की मौज है, बहरों की मौज है !
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चले आना अब, दबे पाँव तुम 'उदय'
नींद सी आने लगी है, इंतज़ार में !
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आबरू हो रही थी तार तार, सब कान सटाए बैठे थे
गूंगी थी, उफ़ ! चिल्लाती भी तो चिल्लाती कैसे !

... वहां भी शैतानों की हुकूमत हो !

बफा की बातें, और बेवफाई यारा
आज का दौर है, सब चलता है !
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मन, भावनाएं, स्वप्न, कल्पनाएँ, स्वर्ग, नर्क
चलो सबको मिलाकर, रचें एक नया जहां 'उदय' !
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जीभ, आँखें, शब्द, भेद, सत्य, असत्य
अनोखा कुछ नहीं, सच ! ये जीवनचक्र है !
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उफ़ ! कल पढ़ा, मतदान, सबसे बड़ा दान है 'उदय'
सोचता हूँ, देने वाला या उकसाने वाला, कौन है ज्ञानी !
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मंहगाई ! दोनों कठघरों से आवाज आई है 'उदय'
सरकारें ! तू चोर, तू चोर, चोर चोर मौसेरे भाई !
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जख्म हों या मोहब्बत हो 'उदय'
जाते जाते ! निशां छोड़ जाते हैं !
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कल तक ये जहां, गुमशुम सा था
तुम जो मुस्कुराए, खुशी गई !
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जब जिक्र हो स्वतंत्रता का 'उदय'
सच ! नौकर तो गुलाम ही होते हैं !
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क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ, खबर नहीं
कल तक गरीब था, नेता बना अमीर हो गया !
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क्या हुआ, छोडो भी अब, जाने भी दो
भूल हुई, हमसे हुई, जो तुम्हें अपना कहा !
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भीड़ बढ़ती गई, बढ़ते ही चली गई 'उदय'
हम चलते रहे, कारवां भी चलता ही रहा !
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अब उनका गुनाह क्या, जो खड़े हैं बाजार में
खरीददार कोई और है, बिकबाल कोई और !
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अब सोतों को, मत जगाओ 'उदय'
उफ़ ! घर लुटता है, तो लुट जाने दो !
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मैं जब से डूबा हूँ, तेरी यादों के समुन्दर में यारा
कोई बताये भूल-भुलैय्या है, या जंतर-मंतर !
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'उदय' जाने, कौन बैठा है वहां, हिसाब-किताब की दुकां खोले
उफ़ ! कहीं ऐसा हो, वहां भी शैतानों की हुकूमत हो !
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ऐसी चाहत किस काम की 'उदय'
जिसे चाहें,उसे मालूम ही हो !
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तुम्हें चाहना, चाहते रहना, मेरी मोहब्बत है
गर कोई खुदगर्जी कहे, तो उस पर लानत है !
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दुष्ट कह लो, क्या करें मजबूर हैं
नेता सभी, सत्ता के नशे में चूर हैं !
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उफ़ ! क्या सितम है सर्द मौसम का 'उदय'
कुडियां सभी, बदन ढकने को हुई मजबूर हैं !
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चहूँ ओर है आलम मौकापरस्ती का
संजीदगी की बातें हजम नहीं होतीं !
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अब क्या करें, सरकार है चलानी तो पड़ेगी ही
कोई बताये, बिना घोटालों के चलती है क्या !
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ईमान, जिस्म, रंग, खुशबू, बाजार हो गए
कुछ बेचने वाले, तो कुछ खरीददार हो गए !
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कुछ बन गए अमीर, ईमान बेचकर
क्या हुआ जो हम गुमनाम हो गए !
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क्यों हम फ़िदा हुए, अंदाज पे तेरे
अब अपने वजूद को, ढूँढते हैं हम !
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खुशियों की चाह में, खिड़की तो खोल दी
अब कब तक रहें खड़े, तेरे इंतज़ार में !
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मन, आँखें, रात, हैं तेरे इंतज़ार में
अब शर्म करो, घूंघट को डाल कर !
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सुबह, शाम, दिन, रात, इंतज़ार किया
अब क्या कहें, तेरा वादा, वादा ही रहा !
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तेरे वादे, सफ़र, और इंतज़ार मेरा
चलो कोई बात नहीं, इन्तेहा ही सही !
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हाँ खबर है हमको, कडा पहरा है तुझ पे
कम से कम आँखों से, सलाम कह देते !
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क्या गजब अंदाज--मोहब्बत है 'उदय'
उफ़ ! चाहते भी रहे, और खामोश भी रहे !