Wednesday, October 12, 2011

... गलियों में पास-फ़ैल हो रहे थे !

आज मेरा यार मेरे पास से, एक अजनबी सा गुजर गया
बस खता इतनी थी कि कल, चंद रुपये उधार के जो मांगे थे ।
...
वह सड़क पर बे-वजह सन्नाटे में खडा था
मौत का साया उसे छोड़ कब का उड़ चला था ।
...
न जाने क्यूं, मैं आज जख्म पुराने कुरेदने बैठा हूँ
जिन्हें खुद हांथों से दफ़न कर आया हूँ, उन्हें फिर क्यूं यादों में समेटने बैठा हूँ।
... 
न तेरे आने पर खुशी थी, न जाने पर गम होगा
होगा जरुर कुछ, जब तक तेरा-मेरा साथ होगा ।
...
बेटा सामने कमरे में बैठ, दोस्तों संग पैक-पे-पैक लड़ा रहा है
अन्दर कमरे में बाप, खाट पे पडा दबा के लिए तड़फडा रहा है ।
...
वह रकीब बन, पत्थर हाथ में लेके मुझे ढूँढता रहा
सामने जब आया तो, पत्थर को घंटों चूमता रहा ।
... 
साकी जिस दिन से मैं, तेरे मैकदे को सलाम करके आया हूँ
'उदय' जानता है, भोर का सूरज एक अरसे बाद देख पाया हूँ ।
...
क्यों छोटे मियाँ, सन्नाटे में क्यों बैठे हो
क्या आज फिर किसी हसीना ने, मुस्कुरा कर देखा है ।
... 
रात में निकला नहीं था, सर्द की ठंडक के डर से
अब हुआ मजबूर हूँ, धूप में भी चल रहा हूँ !
...
जिन्हें हम भूलने बैठे, वो अक्सर याद आते हैं
जो हमको याद करते हैं, उन्हें हम भूल जाते हैं !
...
फलक से तोड़कर, मैं सितारे तुमको दे देता
पर मुझको है खबर, तुम उन्हें नीलाम कर देते !
...
चलो मिलकर बदल दें, नफरतों को चाहतों में
हमारे न सही, किसी-न-किसी के काम आयेंगी !
... 
तू चाहे या न चाहे, कोई बात नहीं
हम तो चाहेंगे तुझे, रात में रौशनी बनाकर !
... 
जहां उजाले-ही-उजाले हैं, वहां 'दीप' बन टिमटिमाने से बेहतर है
चलो चलें, कहीं अंधेरों में, रौशनी बन आँगन आँगन जगमगा जाएं !
....
रौशनी, रंग, तरंग, उमंग, खुशी, उत्साह, दिलों में बसते हैं
श्रीगणेश, कुबेर, लक्ष्मी, मिलन, समर्पण हमारी दीवाली है !
... 
शायद उन्हें मेरा, मुझे उनका इंतज़ार था
और देखते देखते, इंतज़ार की इन्तेहा हो गई।
...
कब सुबह से शाम हुई, यह सोचता रहा
ऐसा क्या था उसमें, जो मैं उसे देखता रहा ।
...
हर आँखों में तू बसता है, हर दिल में सजदा होता है
बस तेरी रहमत हो जाए, हर धड़कन जन्नत हो जाए।
... 
कल तक जो दोस्त बन जीत के सपने दिखा रहे थे
आज वही जंग-ए-मैदान में सामने नजर आ रहे थे !
...
कल जो नेता मंहगाई पर लंबा-चौड़ा भाषण दे रहा था
आज वह मंहगाई बढाने के लिए व्यापारियों से गुटर-गूं कर रहा था ! 
... 
वो कभी छत, तो कभी बालकनी में बैठ बैठ के इम्तिहां ले रहे थे
और हम बे-वजह ही जूनून-ए-मोहब्बत में उनकी गलियों में पास-फ़ैल हो रहे थे !

No comments: