बफा की बातें, और बेवफाई यारा
आज का दौर है, सब चलता है !
.....
मन, भावनाएं, स्वप्न, कल्पनाएँ, स्वर्ग, नर्क
चलो सबको मिलाकर, रचें एक नया जहां 'उदय' !
.....
जीभ, आँखें, शब्द, भेद, सत्य, असत्य
अनोखा कुछ नहीं, सच ! ये जीवनचक्र है !
.....
उफ़ ! कल पढ़ा, मतदान, सबसे बड़ा दान है 'उदय'
सोचता हूँ, देने वाला या उकसाने वाला, कौन है ज्ञानी !
.....
मंहगाई ! दोनों कठघरों से आवाज आई है 'उदय'
सरकारें ! तू चोर, तू चोर, चोर चोर मौसेरे भाई !
.....
जख्म हों या मोहब्बत हो 'उदय'
जाते जाते ! निशां छोड़ जाते हैं !
.....
कल तक ये जहां, गुमशुम सा था
तुम जो मुस्कुराए, खुशी आ गई !
.....
जब जिक्र हो स्वतंत्रता का 'उदय'
सच ! नौकर तो गुलाम ही होते हैं !
.....
क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ, खबर नहीं
कल तक गरीब था, नेता बना अमीर हो गया !
.....
क्या हुआ, छोडो भी अब, जाने भी दो
भूल हुई, हमसे हुई, जो तुम्हें अपना कहा !
.....
भीड़ बढ़ती गई, बढ़ते ही चली गई 'उदय'
हम चलते रहे, कारवां भी चलता ही रहा !
.....
अब उनका गुनाह क्या, जो खड़े हैं बाजार में
खरीददार कोई और है, बिकबाल कोई और !
.....
अब सोतों को, मत जगाओ 'उदय'
उफ़ ! घर लुटता है, तो लुट जाने दो !
...
मैं जब से डूबा हूँ, तेरी यादों के समुन्दर में यारा
कोई बताये भूल-भुलैय्या है, या जंतर-मंतर !
.....
'उदय' जाने, कौन बैठा है वहां, हिसाब-किताब की दुकां खोले
उफ़ ! कहीं ऐसा न हो, वहां भी शैतानों की हुकूमत हो !
.....
ऐसी चाहत किस काम की 'उदय'
जिसे चाहें,उसे मालूम ही न हो !
.....
तुम्हें चाहना, चाहते रहना, मेरी मोहब्बत है
गर कोई खुदगर्जी कहे, तो उस पर लानत है !
.....
दुष्ट कह लो, क्या करें मजबूर हैं
नेता सभी, सत्ता के नशे में चूर हैं !
.....
उफ़ ! क्या सितम है सर्द मौसम का 'उदय'
कुडियां सभी, बदन ढकने को हुई मजबूर हैं !
.....
चहूँ ओर है आलम मौकापरस्ती का
संजीदगी की बातें हजम नहीं होतीं !
.....
अब क्या करें, सरकार है चलानी तो पड़ेगी ही
कोई बताये, बिना घोटालों के चलती है क्या !
.....
ईमान, जिस्म, रंग, खुशबू, बाजार हो गए
कुछ बेचने वाले, तो कुछ खरीददार हो गए !
.....
कुछ बन गए अमीर, ईमान बेचकर
क्या हुआ जो हम गुमनाम हो गए !
.....
क्यों हम फ़िदा हुए, अंदाज पे तेरे
अब अपने वजूद को, ढूँढते हैं हम !
.....
खुशियों की चाह में, खिड़की तो खोल दी
अब कब तक रहें खड़े, तेरे इंतज़ार में !
.....
मन, आँखें, रात, हैं तेरे इंतज़ार में
अब शर्म न करो, घूंघट को डाल कर !
.....
सुबह, शाम, दिन, रात, इंतज़ार किया
अब क्या कहें, तेरा वादा, वादा ही रहा !
.....
तेरे वादे, सफ़र, और इंतज़ार मेरा
चलो कोई बात नहीं, इन्तेहा ही सही !
.....
हाँ खबर है हमको, कडा पहरा है तुझ पे
कम से कम आँखों से, सलाम कह देते !
.....
क्या गजब अंदाज-ए-मोहब्बत है 'उदय'
उफ़ ! चाहते भी रहे, और खामोश भी रहे !
आज का दौर है, सब चलता है !
.....
मन, भावनाएं, स्वप्न, कल्पनाएँ, स्वर्ग, नर्क
चलो सबको मिलाकर, रचें एक नया जहां 'उदय' !
.....
जीभ, आँखें, शब्द, भेद, सत्य, असत्य
अनोखा कुछ नहीं, सच ! ये जीवनचक्र है !
.....
उफ़ ! कल पढ़ा, मतदान, सबसे बड़ा दान है 'उदय'
सोचता हूँ, देने वाला या उकसाने वाला, कौन है ज्ञानी !
.....
मंहगाई ! दोनों कठघरों से आवाज आई है 'उदय'
सरकारें ! तू चोर, तू चोर, चोर चोर मौसेरे भाई !
.....
जख्म हों या मोहब्बत हो 'उदय'
जाते जाते ! निशां छोड़ जाते हैं !
.....
कल तक ये जहां, गुमशुम सा था
तुम जो मुस्कुराए, खुशी आ गई !
.....
जब जिक्र हो स्वतंत्रता का 'उदय'
सच ! नौकर तो गुलाम ही होते हैं !
.....
क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ, खबर नहीं
कल तक गरीब था, नेता बना अमीर हो गया !
.....
क्या हुआ, छोडो भी अब, जाने भी दो
भूल हुई, हमसे हुई, जो तुम्हें अपना कहा !
.....
भीड़ बढ़ती गई, बढ़ते ही चली गई 'उदय'
हम चलते रहे, कारवां भी चलता ही रहा !
.....
अब उनका गुनाह क्या, जो खड़े हैं बाजार में
खरीददार कोई और है, बिकबाल कोई और !
.....
अब सोतों को, मत जगाओ 'उदय'
उफ़ ! घर लुटता है, तो लुट जाने दो !
...
मैं जब से डूबा हूँ, तेरी यादों के समुन्दर में यारा
कोई बताये भूल-भुलैय्या है, या जंतर-मंतर !
.....
'उदय' जाने, कौन बैठा है वहां, हिसाब-किताब की दुकां खोले
उफ़ ! कहीं ऐसा न हो, वहां भी शैतानों की हुकूमत हो !
.....
ऐसी चाहत किस काम की 'उदय'
जिसे चाहें,उसे मालूम ही न हो !
.....
तुम्हें चाहना, चाहते रहना, मेरी मोहब्बत है
गर कोई खुदगर्जी कहे, तो उस पर लानत है !
.....
दुष्ट कह लो, क्या करें मजबूर हैं
नेता सभी, सत्ता के नशे में चूर हैं !
.....
उफ़ ! क्या सितम है सर्द मौसम का 'उदय'
कुडियां सभी, बदन ढकने को हुई मजबूर हैं !
.....
चहूँ ओर है आलम मौकापरस्ती का
संजीदगी की बातें हजम नहीं होतीं !
.....
अब क्या करें, सरकार है चलानी तो पड़ेगी ही
कोई बताये, बिना घोटालों के चलती है क्या !
.....
ईमान, जिस्म, रंग, खुशबू, बाजार हो गए
कुछ बेचने वाले, तो कुछ खरीददार हो गए !
.....
कुछ बन गए अमीर, ईमान बेचकर
क्या हुआ जो हम गुमनाम हो गए !
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क्यों हम फ़िदा हुए, अंदाज पे तेरे
अब अपने वजूद को, ढूँढते हैं हम !
.....
खुशियों की चाह में, खिड़की तो खोल दी
अब कब तक रहें खड़े, तेरे इंतज़ार में !
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मन, आँखें, रात, हैं तेरे इंतज़ार में
अब शर्म न करो, घूंघट को डाल कर !
.....
सुबह, शाम, दिन, रात, इंतज़ार किया
अब क्या कहें, तेरा वादा, वादा ही रहा !
.....
तेरे वादे, सफ़र, और इंतज़ार मेरा
चलो कोई बात नहीं, इन्तेहा ही सही !
.....
हाँ खबर है हमको, कडा पहरा है तुझ पे
कम से कम आँखों से, सलाम कह देते !
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क्या गजब अंदाज-ए-मोहब्बत है 'उदय'
उफ़ ! चाहते भी रहे, और खामोश भी रहे !
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