Thursday, October 13, 2011

एक इनामी कविता

जी चाहता है, आज मैं भी कवि बन जाऊं
कौन-सी बड़ी बात है, सिंपल, बहुत सिंपल है
करना क्या है, कुछ भी तो नहीं
बस -
मछलियों को समुद्र से आसमान में जम्प कराना है
कुत्तों को रोटी के लिए रस्सी पे दौडाना है
परिंदों को चुनाव लड़ते दिखाना है
उल्लुओं के सिर पे ईनाम की घोषणा करना है
बन्दर को लुटेरा और -
बिल्ली को चोर साबित करना है
किसी बूढ़े को खांसते, तड़फते, बिलखते दिखाना है
बच्चों को सिर पे बोझा ढ़ोते तो -
महिलाओं को आपस में बाल खींच-खींच के लड़ते दिखाना है
और ज्यादा कुछ हुआ तो -
पुलिस को डकैती डालते और नेता को खजाना चुराते दिखाना है
इससे भी अगर काम नहीं बना तो
बन्दर की खी-खी-खी
चूहों की किट-किट,
बिल्ली की म्याऊँ-म्याऊँ
कुत्ते की भौं-भौं
शेर की गुर्र-गुर्र,
कौए की कांव-कांव, इन सब को मिला-जुला कर
एक आर्ट टाईप की फिल्म बना कर आस्कर जितवा देना है
ये सब कौन-से बड़े, चमत्कारी, तिलस्मी कारनामे हैं
समेट-समेटा कर एक नई आधुनिक टाईप की कविता रच देना है
बुराई ही क्या है, आखिर इन मिर्च-मसालों में, कुछ भी तो नहीं
आखिर -
बिना तड़के के साग अच्छी कहाँ लगती है
बिना हरी मिर्च के टमाटर की चटनी भी बेस्वाद ही तो लगती है
बिना लहसुन के छौंके वाली दाल फीकी ही तो लगती है
इसी टाईप का कुछ न कुछ तो करना ही पडेगा
नहीं तो एक इनामी कविता कैसे बन पायेगी
और जब इनामी नहीं बन पाई तो
कविता लिखने से क्या फ़ायदा है
और जब कोई फ़ायदा नहीं तो, काहे को टाईम खोटी
काहे की कविता और काहे का कवि
बोलो सिया बलराम चन्द्र की जय, जय जय हनुमान की जय !!

1 comment:

Anamikaghatak said...

bahut hi badhi vyangatmak prastuti