Saturday, October 1, 2011

... नेता-पुलिस की सांठ-गांठ हुई है !

चहूँ ओर लाग-लपेटा है, कहीं छोटा तो कहीं मोटा है
चढ़ते, बढ़ते, हिन्दी है, फिर भी हिन्दी का टोटा है !!
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प्यार की दास्ताँ गुलाबी पंखुड़ी-सी है
किसी को छूने, देखने, की मनाही है !
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इतनी बेरुखी का सबब, कुछ तो होगा जरुर
बिना जाने कैसे कह दें, कुसूर हमारा होगा !
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गर ये दिल होता हमारा, तो टूट गया होता
पता नहीं कब से, कैसे, ये हमारा न रहा !!
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सदभावना, स्वाभिमान, रथ, जय जयकार है
उफ़ ! क्या खूब तमाशे हैं, क्या खूब नज़ारे हैं !
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तेरी सोहबत ने हमें क्या से क्या बना दिया है 'उदय'
कल तक थे हम आशिक, आज आशिक ज़माना है !
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बा-मुलाहिजा होशियार साहब आ रहे हैं
कभी अपनों की, तो कभी अपनी सुना रहे हैं !
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काश ! ये हुनर हम में भी होता 'उदय'
दिखते किसी के, और होते किसी और के !
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काश ! जिन्दगी घड़ी-दो-घड़ी को मृगतृष्णा होती
कभी राधा-कृष्ण, तो कभी सीता-राम, हम होते !
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लो आज उनसे मिलना हमारा नाजायज हो गया
लोग कहते हैं कि हमारी मुहब्बत जायज नहीं है ! 
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बदलता दौर है, जिस्मानी इश्क की चमक-चौंध है
कोई बोली लगाकर, कोई तोहफे सजाकर मुरीद है !
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शहर में फैला सन्नाटा देख सन्न हो गया हूँ
हर एक दर और दीवार पे इंकलाब लिखा है !
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सच ! भले बंजर है वो, किसी की नज़रों में
न जाने क्यूं मुझे, उपजाऊ नजर आती है !
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बस्ती में खौफ,और जेहन में दहशत हुई है
सुनते हैं नेता-पुलिस की सांठ-गांठ हुई है !
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चिंदियों को मिला-जुला कर टोपी बनाई है
सच ! सुनते हैं दर्जी होनहार हुए हैं !!
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सच ! अब कोई हमसे, हमारी बातों की गारंटी न ले
कितनी मीठी, कितनी कड़वी हैं, खुद फैसला कर ले !
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किसी ने मिलने की, तो किसी ने छोड़ने की जिद की है
क्या करें, एक मोहब्बत है तो दूजी नफ़रत है !
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तेरी जी जी में तेरी जीजी याद आ गई
घर चल जल्दी पिटने की बारी आ गई !
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भरी दुपहरी में, नंगे पांव कब तक खड़े रहते
तुम आते तब तक शायद हम मर गए होते !
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क्यूं मियाँ किसे कनबुच्ची लगवा रहे हो
ख़ामो-खां भडुवों का रुतवा बढ़ा रहे हो !

1 comment:

Patali-The-Village said...

बहुत सही बात कही है आपने| धन्यवाद|