उन्होंने, कसम खाई थी
दर्द
देने की
अब वो अपनी कसम
निभा रहे हैं
मगर क्या करें
हम, फिर भी उन्हें
याद
आ रहे हैं
उनके, याद करने से
याद करते रहने से
हम
उनके जीवन में
खुद-ब-खुद
चाहकर, न चाहकर भी
सांथ सांथ
बढे, बढे चले जा रहे हैं !!
दर्द
देने की
अब वो अपनी कसम
निभा रहे हैं
मगर क्या करें
हम, फिर भी उन्हें
याद
आ रहे हैं
उनके, याद करने से
याद करते रहने से
हम
उनके जीवन में
खुद-ब-खुद
चाहकर, न चाहकर भी
सांथ सांथ
बढे, बढे चले जा रहे हैं !!
No comments:
Post a Comment