Saturday, October 15, 2011

खैर, जैसी तुम्हारी मर्जी !

कल एक आशिक ने -
अपनी माशूक से कह दिया
हमें तुमसे मोहब्बत हो गई है
खट से उन्होंने कहा -
तो आज से समझ लें -
तुम पर हमारी बादशाहत हुई है !

जी हुजूर, हम तो बहुत पहले से ही
तुम्हें लाल पान की रानी
और खुद को -
काले पान का गुलाम समझते हैं
और तब ही से तुम पर
अपनी जान निछावर करते हैं !

हम तुम्हारी गुलामी के कायल हुए हैं
क्यों कुछ सैर-सपाटा कर लिया जाए
आओ, बन जाओ घोड़े
और हमें अपनी पीठ पे बैठने दिया जाए !

मल्लिका साहिबा -
हमारा मकसद ये वाली गुलामी से नहीं
वरन दिलों वाली गुलामी से है !

अच्छा, ये बात है, तो
इंतज़ार करिए, करते रहिये
अभी आप कतार में, बहुत पीछे चल रहे हैं
नंबर आयेगा, तब देखेंगे
करना तो तुम्हें, तब भी -
यही गुलामी होगी
बस समय समय की बात है
आज तुम्हें जवानी में
मौक़ा मिल रहा है -
हो सकता है तब तक बुढापा जाए
खैर, जैसी तुम्हारी मर्जी !

मल्लिका की बातें सुनते सुनते
माथे पे पसीना गया
बातें ख़त्म होने के पहले ही
वह खुद--खुद घोड़ा बन गया !!

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