भ्रष्टाचार से जनता त्रस्त है
फिर भी
सरकार चौकन्ना नहीं होना चाहती !
जन लोकपाल के मसले पर
राजनैतिक पार्टियां
एक मत नहीं होना चाहतीं !
शोर-गुल बहुत है
गाँव-गाँव, शहर-शहर में -
मंहगाई का
फिर भी, लोकतंत्र के मसीहा
कुछ सुनना नहीं चाहते !
ये क्या घाल-माल है
नेता, अभिनेता, व्यापारी
मस्त-मौला हुए हैं
सत्ता, सत्ताधारी मद मस्त हुए हैं
गरीब, किसान, मजदूर, त्रस्त हुए हैं !
ये कैंसा मुल्क है
ये कैंसी व्यवस्थाएं हैं
ये कैंसी परम्पराएं हैं
अरे कोई तो सुने, लोग क्या चाहते हैं !!
फिर भी
सरकार चौकन्ना नहीं होना चाहती !
जन लोकपाल के मसले पर
राजनैतिक पार्टियां
एक मत नहीं होना चाहतीं !
शोर-गुल बहुत है
गाँव-गाँव, शहर-शहर में -
मंहगाई का
फिर भी, लोकतंत्र के मसीहा
कुछ सुनना नहीं चाहते !
ये क्या घाल-माल है
नेता, अभिनेता, व्यापारी
मस्त-मौला हुए हैं
सत्ता, सत्ताधारी मद मस्त हुए हैं
गरीब, किसान, मजदूर, त्रस्त हुए हैं !
ये कैंसा मुल्क है
ये कैंसी व्यवस्थाएं हैं
ये कैंसी परम्पराएं हैं
अरे कोई तो सुने, लोग क्या चाहते हैं !!
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