Wednesday, October 19, 2011

... मीठे लग रहे हैं !

बहुत हुए, जग में अंधियारे, कब तक इसको-उसको देखें
चलो बनें हम खुद ही दीपक, दीपक बन के जलना सीखें !
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उधर कच्ची, तो इधर पक्की मुहब्बत है
फर्क है तो, सोलह और छब्बीस का है !!
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फेसबुकिया दोस्ती को सलाम है 'उदय'
वो भले न हों, पर हम तो कायल हुए हैं !
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आज चाँद भी आसमां से दो घड़ी को इठलाएगा
तेरी खूबसूरती को देख, मंद मंद मुस्कुराएगा !!
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सच ! आदत सी पड़ गई है, जी हुजूरी की 'उदय'
लोग, दर-ओ-दीवार को भी, ठोक देते हैं सलाम !
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लगता है दोस्त मेरे, मरने की दुआ कर रहे हैं
तब ही तो बात बात पे, मेरी कसम खा रहे हैं !
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कुसूर अपना था जो दिल दे बैठे थे
उन्होंने माँगा कब था !!
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एक अर्से से, जिसे हम मुहब्बत माने बैठे थे
आज तजुर्वा हो गया, मुहब्बत क्या बला है !
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किसी न किसी का तो भ्रम टूटना ही था
चलो अपना सही, समय पर टूट गया !!
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जी चाहे है क्यूं न पुरुस्कारों की दुकां खोली जाए
सच ! दुनिया है बहुत छोटी, खरीददार बहुत हैं !!
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मुहब्बत का नशा, बहुत भयानक हुआ है
परसों से चढ़ा है, अभी तक उतरा नहीं है !
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सच ! कुछ मीठा, तो कुछ तीखा हो जाए
चलो, आज मुहब्बत को आजमाया जाए !
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'खुदा' जानता है, हम चाहते हैं उसको
अब तुम, इसमें हिसाब-किताब की बातें न करो !
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हमें ही मोहब्बत हुई थी, इसमें उसका क्या कुसूर
सच ! वो तो सिर्फ, देखते रही थी हमको !!
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पता नहीं, आज वो क्यूं खामोश है 'उदय'
कल तक तो वो, बहुत बातें करती रही थी !
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क्या खूब चढ़ा है, मुहब्बत का नशा हम पर
जिधर देखो उधर वो ही वो नजर आ रहे हैं !
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कुछ घंटे पहले ही तो, वो हमसे मिले थे
जाते जाते, मुझे अपना बना गए !!
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मैं याद कर के पाठ, वहां नहीं जाऊंगा
जो मन में आयेगा, वही बोल आऊँगा !
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तुम कहते रहो, हम सुन रहे हैं
लवों के बोल, मीठे लग रहे हैं !
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अब रंज दिलों में रख के क्या मिलना है 'उदय'
हम तो कब के, शहर उनका छोड़ चले आए हैं !

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