अदभुत दुनिया के अदभुत लोग, अदभुत इसलिये कि क्रियाकलाप अदभुत ही हैं, एक सेठ जी जिनके कारनामें अचंभित कर देते हैं अब क्या कहें कभी-कभी सेठ टाईप के लोगों के साथ भी उठना-बैठना हो जाता है उनको मैने खाने-पीने के अवसर पर देखा, एक-दो बार तो सोचा कभी-कभार हो जाता है पर अनेकों बार के अनुभव पर पाया कि यह अचानक होने वाली क्रिया नही है वरन "सेठ बनने और बने रहने" का सुनियोजित "फ़ार्मूला" है ।
होता ये है कि जब सेठ जी को "मुफ़्त की चाय" मिली तो "शटशट-गटागट" पी गये और जब होटल में किसी के साथ चाय पीने-पिलाने का अवसर आया तो उनके चाय पीने की रफ़्तार ...... रफ़्तार तो बस देखते ही बनती है तात्पर्य ये है कि उनकी चाय तब तक खत्म नहीं होती जब तक साथ में बैठा आदमी जेब में हाथ डालकर रुपये निकाल कर चाय के पैसे देने न लग जाये ..... जैसे ही चाय के पैसे दिये सेठ जी की चाय खत्म .... वाह क्या "फ़ार्मूला" है।
एक बार तो हद ही हो गई हुआ ये कि सेठ जी के आग्रह पर एक दिन बस तिगड्डे पे खडे हो कर शर्बत (ठंडा पेय पदार्थ) पीने लगे ... सेठ जी का शर्बत पीने का अंदाज सचमुच अदभुत था चाय की तरह चुस्कियां मार-मार कर पीने लगे .... उनकी चुस्कियां देख कर मेरे मन में विचार बिजली की तरह कौंधा .... क्या गजब "लम्पट बाबू" है कभी मुफ़्त की चाय शटाशट पी जाता है तो आज शर्बत को चाय की तरह चुस्कियां मार-मार कर पी रहा है .... मुझसे भी रहा नहीं जाता कुछ-न-कुछ मुंह से निकल ही जाता है मैने भी झपाक से कह दिया ... क्या "स्टाईल" है हुजूर इतनी देर में तो दो-दो कप चाय पी लेते ... सेठ जी सुनकर मुस्कुरा दिये फ़िर थोडी ही देर में सहम से गये ... सचमुच यही अदभुत दुनिया के अदभुत लोग हैं।
होता ये है कि जब सेठ जी को "मुफ़्त की चाय" मिली तो "शटशट-गटागट" पी गये और जब होटल में किसी के साथ चाय पीने-पिलाने का अवसर आया तो उनके चाय पीने की रफ़्तार ...... रफ़्तार तो बस देखते ही बनती है तात्पर्य ये है कि उनकी चाय तब तक खत्म नहीं होती जब तक साथ में बैठा आदमी जेब में हाथ डालकर रुपये निकाल कर चाय के पैसे देने न लग जाये ..... जैसे ही चाय के पैसे दिये सेठ जी की चाय खत्म .... वाह क्या "फ़ार्मूला" है।
एक बार तो हद ही हो गई हुआ ये कि सेठ जी के आग्रह पर एक दिन बस तिगड्डे पे खडे हो कर शर्बत (ठंडा पेय पदार्थ) पीने लगे ... सेठ जी का शर्बत पीने का अंदाज सचमुच अदभुत था चाय की तरह चुस्कियां मार-मार कर पीने लगे .... उनकी चुस्कियां देख कर मेरे मन में विचार बिजली की तरह कौंधा .... क्या गजब "लम्पट बाबू" है कभी मुफ़्त की चाय शटाशट पी जाता है तो आज शर्बत को चाय की तरह चुस्कियां मार-मार कर पी रहा है .... मुझसे भी रहा नहीं जाता कुछ-न-कुछ मुंह से निकल ही जाता है मैने भी झपाक से कह दिया ... क्या "स्टाईल" है हुजूर इतनी देर में तो दो-दो कप चाय पी लेते ... सेठ जी सुनकर मुस्कुरा दिये फ़िर थोडी ही देर में सहम से गये ... सचमुच यही अदभुत दुनिया के अदभुत लोग हैं।
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