Friday, December 31, 2010

नया साल शुभा-शुभ हो, खुशियों से लबा-लब हो !!

नया साल शुभा-शुभ हो, खुशियों से लबा-लब हो
न हो तेरा, न हो मेरा, जो हो वो हम सबका हो !!
नव वर्ष के अभिनंदन में,
हम-तुम मिल कर वचन करें,
कदम से कदम मिला कर ही,
हम-तुम मिल कर कदम चलें,


न हों बातें तेरी-मेरी,
न हो बंधन जात-धर्म का,
न हो रस्में ऊंच-नीच की,
न हो बंधन सरहदों का,

न हो भेद नर और नारी में,
हो तो बस एक खुला बसेरा,
बिखरी हो फूलों की खुशबू,
रंग-रौशनी छाई हो,


बाहों में बाहें सजती हों,
कंधों संग कंधे चलते हों,
नर और नारी संग बढते हों,
जन्मों में खुशियां खिलती हों,


धर्म बना हो राष्ट्रमान,
कर्म बना हो समभाव,
नव वर्ष का अभिनंदन हो,
धर्म-कर्म का न बंधन हो,


खुशियां-खुशबू, रंग-रौशनी बिखरी हो,
गांव-गांव, शहर-शहर,
हर दिल - हर आंगन में,
नव वर्ष के अभिनंदन में,


मान बढा दें, शान बढा दें
चेहरे-चेहरे पे मुस्कान खिला दें,
हम-तुम मिलकर
वचन करें - कदम चलें,
नव वर्ष के अभिनंदन में !!
... सभी साथियों को नव वर्ष की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं !!

Saturday, December 25, 2010

कविता : उम्रकैद

उम्रकैद
एक सजा है ! सच
मुझे उम्मीद थी
कि मुझे सजा होगी
मैं जानता था
बहुत पहले से
कि ऐसा हो सकता है
क्यों, क्योंकि मैं
अपने देश के हालात को
आज-कल से नहीं
वरन सालों से जानता हूँ !

आये दिन लूट, ह्त्या
छेड़छाड़, बलात्कार
भ्रष्टाचार, घोटाले
जैसी गंभीर वारदातें
खुलेआम होती हैं
और अपराधी
खुल्लम-खुल्ला घूमते हैं
अब उनका क्या दोष !
वे पकड़ में नहीं आते
और यदि पकड़ आते भी हैं
तो उन्हें कोई सजा
पता नहीं, क्यों नहीं होती !

पर मुझे पता था
कि मुझे सजा जरुर होगी
होनी ही चाहिए
क्यों, क्योंकि मैं
लड़ता रहा हूँ
लड़ रहा हूँ अन्याय से !
चलो ठीक ही हुआ
कौन चाहता, कौन चाहेगा
मेरा स्वछंद रहना !

मेरी बातें, आवाजें
डरावनी सी हैं
जो बेचैन करती हैं
कुछेक कानों को
कम से कम अब उन्हें
सुकून रहेगा
मेरे कालकोठरी में रहने से
पर कुछ, दुखी जरुर होंगे
उनका दुख, अब क्या कहूं
पर मुझे कोई दुख
अफसोस नहीं है
उम्रकैद से !!

Friday, December 24, 2010

सच ! उससे ही मुझे जीवन मिलेगा !!

आज रात कुछ अजब सी ठण्ड
और मैं ठण्ड से ठिठुर रहा हूँ
सारी राह मैं तुम्हें हर पल याद
सचमुच याद करते चल रहा हूँ
सच ! उस रात के एक एक पल
मेरी आँखों में, याद से समा रहे हैं
उस ठिठुरती रात में कैसे तुमने
मुझे अपने आगोश में लिया था
और कैसे तुमने मेरे बदन के
अंग अंग को छू कर, चूम कर
अंगारे की तरह तपतपाया था
हाँ सचमुच याद है मुझे वो रात
आज की इस ठिठुरती रात से भी
वो रात कहीं अधिक ठंडी थी !
पर आज मैं डरते, ठिठुरते
सहमते बढ़ रहा हूँ, शायद तुम
तुमने मुझे माफ़ नहीं किया होगा
तुम अब तक नाराज बैठी होगी
गुस्ताखी ! सुबह जल्दबाजी में तुम्हें
चुम्बन दिए बगैर जो चला आया हूँ !

यह सफ़र, यह रास्ता और यह ठंड
कैसे भी, किसी भी तरह गुजर जाए
और तुम मेरी सुबह की गुस्ताखी
भूलते, माफ़ करते, हंसते हुए
दर पर राह निहारते मिल जाओ
यह उम्मीद भी सिर्फ इसलिए
कि तुम जानती हो, मैं सिर्फ
सिर्फ तुमसे अटूट प्यार करता हूँ
आज इस कडकडाती ठंड में
तुम ही मुझे नया जीवन दे सकती हो !
यह चंद मिनटों का बचा सफ़र
तो मैं जैसे-तैसे तय कर लूंगा
पर घर पहुँचने पर, जाने
तुम्हारे नाराजगी भरे पलों में
मुझ पर कैसी गुजरेगी, तुम्हारे
मर्म स्पर्श के बगैर एक एक पल
जाने कैसे मुझे जीवित रखेंगे
तुम्हारे मर्म स्पर्श, तन, मन, होंठ
मुझे जो सुकूं, तपन, राहत देंगें
सच ! उससे ही मुझे जीवन मिलेगा !!

Wednesday, December 22, 2010

कविता : रक्तरंजित

अफसोस नहीं है मुझे खुद पर
कि मैंने तुम्हें क्यों देखा प्यार से
जवकि मुझको थी खबर
तुम हर पल कुछ कुछ
गुनाह की रणनीति बना रहे हो
सिर्फ बना रहे हो वरन
उन्हें अंजाम भी दे रहे हो !

क्यों कर फिर भी मैं तुम्हें
यूं ही देखती रही प्यार से
क्यों रोका नहीं खुद को
जवकि थी खबर मुझको कि तुम
एक गुनाहगार हो, कातिल हो
तुम्हारे सिर्फ हांथों पर
वरन जहन में भी खून के छींटे हैं !

फिर भी यूं ही मैं तुम्हें पल पल
देखती रही, घूरती रही
शायद इसलिए कि मैंने ही तुम्हें
रोका नहीं था प्रथम बार
जब तुम बेख़ौफ़ जा रहे थे
एक अनोखा खून, गुनाह करने
मेरी इन्हीं नज़रों के सामने सामने !

रोक लेती तो शायद तुम
आज एक गुनहगार होते
सच ! तुम्हारे रक्तरंजित हाथ
आज मुझे छू नहीं रहे होते
पर ये भी एक अनोखा सच है
कि तुमने जो प्रथम गुनाह किया
वो मेरे ही लिए किया था !

मेरी रूह को तुम्हारे उस गुनाह से
सिर्फ सुकूं वरन नया जीवन भी मिला
नहीं तो मैं उसी दिन मर गई होती
जब उस दरिन्दे ने मेरी आबरू
सिर्फ लूटी, वरन तार तार की थी
उस दिन, उस दरिन्दे के खून से
सने तुम्हारे हांथों से मुझे एक खुशबू
और जीने की नई राह मिली !

हाँ ये सच है कि तुम एक खूनी
हत्यारे हो, पर तुम्हारे गुनाह
मुझे गुनाह नहीं, इन्साफ लगते हैं !
प्रथम क़त्ल के बाद भी तुम
क़त्ल पे क़त्ल करते रहे
और मैं तुम्हें प्यार पे प्यार
क्यों, क्योंकि तुम कातिल होकर भी
मेरी नज़रों में बेगुनाह थे !

क्यों, क्योंकि तुमने क़त्ल तो किए
पर इंसानों के नहीं, दरिंदों के किए
वे दरिंदें जो खुश हुआ करते थे
लूट लूट कर नारी की आबरू !
हाँ ये भी एक अनोखा सच है
कि लुटती नहीं थी आबरू नारी की
वरन हो जाता था क़त्ल उसका
उसी क्षण जब आबरू उसकी
हो रही होती थी तार तार दरिन्दे के हांथों !

Tuesday, December 21, 2010

चमत्कारी सिक्के : लालच का फल

दो मित्र गणेश और भूषण एक साझा व्यवसाय करने लगे दोनों ही बेहद जुझारू प्रवृति के मेहनती व्यक्ति थे व्यवसाय का स्वरूप ऐसा था कि एक अपना दिमाग लगा रहा था और दूसरा फील्ड में मेहनत करने लगा, दोनों ही लगन-मगन से जीतोड़ मेहनत करने लगे, मेहनत रंग लाई और दोनों को व्यवसाय में एक वर्ष में ही एक करोड़ रुपयों का मुनाफ़ा हो गया। अब समय था रुपयों के बंटवारे का, तब भूषण यह कहते हुए अड़ने लगा कि फील्ड में सारी मेहनत मैंने की है सारे ग्राहकों को मैंने ही इकट्ठा किया है तब जाकर हमें सफलता मिली है इसलिए लाभ में मेरी हिस्सेदारी ज्यादा बनती है।

तब गणेश ने कहा - यह कारोवार हम दोनों ने संयुक्त रूप से किया है तथा दोनों ने एक साथ मिलकर ही मेहनत की है अब यहाँ सवाल यह नहीं है कि किसने किस फील्ड में कितनी मेहनत की ... यह बात सही है कि ग्राहकों से बातचीत में तुम्हारी भूमिका ज्यादा रही है तो दूसरी तरफ कार्य योजनाएं बनाने व क्रियान्वयन में मैंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है साथ ही साथ हर क्षण हम दोनों ही एक साथ रह कर कार्य करते रहे हैं ऐसी स्थिति में हम दोनों ही मुनाफे में बराबर के हिस्सेदार हैं।

लेकिन भूषण मानने को तैयार नहीं था उसके मन में लालच समा गया था इसलिए समस्या ने विवाद का रूप ले लिया, दोनों ही मरने मारने को उतारू हो गए, दोनों ने ही अपने अपने हांथों में कमर में लटकी तलवारों को निकाल लिया तथा बहस जारी थी ठीक उसी क्षण वहां एक सज्जन पुरुष पहुँच गए उन्होंने दोनों मित्रों की समस्या सुन कर मदद करने को कहा तो वे दोनों मान गए तथा इमानदारी पूर्वक निर्णय करने पर दोनों ने दस-दस हजार रुपये देने का आश्वासन भी दे दिया।

भूषण मुनाफे में से ६० प्रतिशत हिस्सा अपने पास रखना चाहता था और गणेश को ४० प्रतिशत देना चाहता था गंभीरतापूर्वक विचार करने के पश्चात सज्जन व्यक्ति ने कहा - आप दोनों के संयुक्त प्रयास, लगन, दिमाग व मेहनत से सफलता मिली है यदि गणेश कार्य योजना व क्रियान्वयन की नीति तैयार नहीं करता तो भूषण फील्ड में मेहनत कैसे करता और यदि भूषण फील्ड में मेहनत नहीं करता को योजनाएं धरी की धरी रह जातीं ... और फिर यह कारोवार आप दोनों का संयुक्त था और संयुक्त रूप से ही दोनों ने मेहनत की है इसलिए दोनों ही मुनाफे में बराबर के हिस्सेदार हो।

वैसे भी आज इस सवाल पर बहस करना कि किसने मेहनत कम की और किसने ज्यादा की, यह बेईमानी है, यदि आप दोनों सहमत नहीं हो तो एक और विकल्प है ... मेरे पास चमत्कारी सिक्का है जब कभी ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती है तो मैं उस सिक्के की मदद से ही सुलझाने का प्रयास करता हूँ आप चाहो तो सिक्का उछाल कर फैसला कर देता हूँ ... यदि हेड आया तो दोनों बराबर हिस्सा बाँट लेना और यदि टेल आया तो भूषण को ६० प्रतिशत तथा गणेश को ४० प्रतिशत हिस्सा मिलेगा ... इस बंटवारे से गणेश को हानि का सामना करना पड़ सकता था फिर भी वह तैयार हो गया।

इस प्रकार दोनों की आम सहमती पर सज्जन व्यक्ति ने अपने हाथ में रखे तीन सिक्कों में से एक सिक्का उछाला ... हेड आ गया, हेड देखकर भूषण तनिक मायूस सा हो गया ... अब समय था दस-दस हजार रुपये देने का, गणेश ने तो खुशी खुशी दस हजार अपने हस्से से निकाल कर उस सज्जन व्यक्ति को दे दिए किन्तु भूषण ने साफ़ तौर पर रुपये देने से इनकार कर दिया और कहने लगा कि तुमने कोई मेहनत का काम नहीं किया है इसलिए नहीं दूंगा ... तथा गणेश के साथ भी बहस जैसा करने लगा, वह इस फैसले से संतुष्ट नहीं था ...

... भूषण के मन की लालच की भावना देख सज्जन पुरुष को गुस्सा आ गया, किन्तु शांत मन से पुन: आग्रह किया कि आप अपने वचन पर कायम रहिये तथा मेरा हिस्सा मुझे दे दीजिये ... किन्तु भूषण नहीं माना ... उसके लालच को देखकर रहा नहीं गया और सज्जन पुरुष ने अपने हाथ में रखे तीन सिक्कों में से एक दूसरा सिक्का निकाल कर भूषण के सामने फेंक दिया, भूषण ने सिक्का उठाकर देखा उसके दोनों तरफ "हेड" था वह गुस्से से तिलमिला गया और तलवार से गणेश पर वार करने लगा ...

... पांच मिनट बाद सज्जन पुरुष ने देखा कि गणेश लहू-लुहान घायल अवस्था में अपने सिर को पकड़ कर बैठा हुआ था तथा सामने भूषण मृत पडा था ... सज्जन पुरुष ने आगे बढ़कर गणेश से कहा - लालची को उसके लालच का फल मिल गया और वह काल के गाल में समा गया, सिक्का उठाकर, अपने हाथ में रखे तीनों सिक्कों का रहस्य बताया कि यह वह सिक्का है जिसे उछाल कर मैंने भूषण के सामने फेंका था जिसके दोनों ओर "हेड" है ... और दूसरा यह सिक्का है जिसके दोनों ओर "टेल" बना हुआ है ... तथा यह रहा वो तीसरा सिक्का जिससे मैंने सर्वप्रथम फैसला किया था जिसमे "हेड-टेल" दोनों हैं ... खैर छोडो भूषण को ईश्वर का फैसला मंजूर नहीं था तथा उसे लालच का फल मिला गया !

Saturday, December 18, 2010

जय जय भ्रष्टाचार !

क्यों भई नेता जी कहाँ जा रहे हो ... बस आदरणीय दिल्ली जा रहा हूँ अचानक सन्देश आया है "विशेष मीटिंग" आयोजित की गई है पहुँचना अत्यंत आवश्यक है ... ऐसी क्या बात हो गई ... बहुत गंभीर समस्या है अब आपसे क्या छिपाना, आप तो अपने ही हो ... क्या विशेष है ! ... धीरे धीरे जनता भ्रष्टाचारियों के खिलाफ होते जा रही है, स्थिति काफी ज्यादा चिंतनीय हो गई है यदि अभी कोई उपाय नहीं किया गया तो हम भ्रष्टाचारियों का जीना दुभर हो जाएगा !

... हाँ सच तो कह रहे हो, जल्दी करो उपाय, कहीं देर होने से लेने-के-देने न पड़ जाएँ ... इसलिए ही विशेष तौर पर इस मीटिंग में सभी राजनैतिक पार्टियों के मुख्य मुख्य नेताओं को बुलाया गया है ... सभी पार्टियों के भी, क्यों ! ... अरे भाई अब ये बताओ ऐसी कौनसी पार्टी है जो भ्रष्टाचार नहीं करती है, आज की डेट में भला कौन दूध का धुला है ! ... हाँ कह तो सही रहे हो, क्या उपाय सोच कर जा रहे हो ?

... उपाय ही तो कुछ सूझ नहीं रहा है, आप तो जानते ही हो कि मेरी राय अंतिम राय होती है ! ... हाँ आप विशेष सलाहकार जो हो ... आप ही सुझा दो कोई उपाय, समय समय पर आपके सुझाव के भरोसे ही तो हमारी नेतागिरी चल रही है, पिछली बार आपके सुझाव पर ही तो उस "गूंगे" को देश का मुखिया बनाया था जो कितने अच्छे से काम कर रहा है कुछ भी करते रहो बेचारा कुछ बोलता ही नहीं है !

... हाँ हाँ सच कह रहे हो ... अब बताओ न कोई उपाय ताकि हम भ्रष्टाचारी मौज-मजे करते रहें और ये संकट टल जाए ... बहुत गंभीर समस्या है और सवाल भी बहुत ही गंभीर लग रहा है, अब आप कहते हो तो उपाय तो बताना ही पडेगा ... हाँ हाँ बताओ जल्दी, मुझे अविलम्ब दिल्ली निकलना है ... तो ठीक है फिर कान "खुजा" के सुनो, कुछ भूल-भाल मत जाना ...

... हाँ बताओ ... एक काम करो, एक ऐसा "अमेंडमेंड" लाओ जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों की नाक में नकेल डाल दे ... हाँ हाँ बताओ कैसे ! ... ये तो सभी जानते हैं कि वर्त्तमान सिस्टम में भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध होना असंभव हैं क्योंकि सभी जांच एजेंसियां आपके ही अंडर में काम करती हैं आपके डायरेक्शन के बगैर बाहर नहीं जा सकतीं ... हाँ वो तो सही है ... तो फिर क्या, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को टाईट करने के लिए एक नया क़ानून बना दो ...

... वो क्या ? ... हाँ हाँ बता रहा हूँ हडबडी मत करो ... बताओ बताओ ... क़ानून ये रहेगा कि भ्रष्टाचार प्रमाणित होने पर भ्रष्टाचारी को २० साल की सजा होगी तथा प्रमाणित नहीं होने पर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले को १० साल की सजा होगी, वो इसलिए कि झूठी शिकायत करना भी तो अपराध है ... ( नेता जी पांच मिनट सन्न रहने के बाद बोले ) हाँ ये उपाय बिलकुल सही रहेगा, क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले भी भली-भाँती जानते हैं कि भ्रष्टाचार के आरोपों का प्रमाणित होना, एक तरह से असंभव ही है, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले १० साल की सजा सुनकर, फटी में आवाज ही नहीं उठाएंगे, ये हुई न कोई बात, आपके चरण कहाँ हैं ... क्यों, क्या हो गया ! ... अरे भाई, अब आपका आशीर्वाद लेकर ही दिल्ली निकलता हूँ , जय जय भ्रष्टाचार ... जय जय भ्रष्टाचार ... !!!

Thursday, December 16, 2010

भ्रष्टाचाररूपी महामारी : असहाय लोकतंत्र !

भ्रष्टाचार वर्त्तमान समय में कोई छोटी-मोटी समस्या नहीं रही वरन यह एक महामारी का रूप ले चुकी है महामारी से तात्पर्य एक ऐसी विकराल समस्या जिसके समाधान के उपाय हमारे हाथ में शायद नहीं या दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि इसकी रोकथाम के उपाय तो हैं पर हम रोकथाम की दिशा में असहाय हैं, असहाय से मेरा तात्पर्य भ्रष्टाचार होते रहें और हम सब देखते रहें से है

भ्रष्टाचार में निरंतर बढ़ोतरी होने का सीधा सीधा तात्पर्य यह माना जा सकता है कि देश में संचालित व्यवस्था का कमजोर हो जाना है, यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका व्यवस्थापिका इन तीनों महत्वपूर्ण अंगों के संचालन में कहीं कहीं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार का समावेश हो जाना है अन्यथा यह कतई संभव नहीं कि भ्रष्टाचार निरंतर बढ़ता रहे और भ्रष्टाचारी मौज करते रहें

यह कहना भी अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि भ्रष्टाचार रूपी महामारी ने लोकतंत्र की नींव को हिला कर रख दिया है ! ऐसा प्रतीत होता है कि लोकतंत्र के तीनों महत्वपूर्ण अंग न्यायपालिका, कार्यपालिका व्यवस्थापिका एक दूसरे को मूकबधिर की भांति निहारते खड़े हैं और भ्रष्टाचार का खेल खुल्लम-खुल्ला चल रहा है भ्रष्टाचार के कारनामे बेख़ौफ़ चलते रहें और ये तीनों महत्वपूर्ण व्यवस्थाएं आँख मूँद कर देखती रहें, इससे यह स्पष्ट जान पड़ता है कि कहीं कहीं इनकी मौन स्वीकृति अवश्य है !

एक क्षण के लिए हम यह मान लेते हैं कि ये तीनों व्यवस्थाएं सुचारू रूप से कार्य कर रही हैं यदि यह सच है तो फिर भ्रष्टाचार, कालाबाजारी मिलावटखोरी के लिए कौन जिम्मेदार है ! वर्त्तमान समय में दूध, घी, मिठाई लगभग सभी प्रकार की खाने-पीने की वस्तुओं में खुल्लम-खुल्ला मिलावट हो रही है, ऐसा कोई कार्य भर्ती, नियुक्ति स्थानान्तरण प्रक्रिया का नजर नहीं आता जिसमें लेन-देन चल रहा हो, और तो और चुनाव लड़ने, जीतने सरकार बनाने की प्रक्रिया में भी बड़े पैमाने पर खरीद-फरोक्त जग जाहिर है

भ्रष्टाचार, कालाबाजारी मिलावटखोरी के कारण देश के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं हालात निरंतर विस्फोटक रूप लेते जा रहे हैं यदि समय रहते सकारात्मक उपाय नहीं किये गए तो वह दिन दूर नहीं जब आमजन का गुस्सा ज्वालामुखी की भांति फट पड़े और लोकतंत्र रूपी व्यवस्था चरमरा कर ढेर हो जाए, ईश्वर करे ऐसे हालात निर्मित होने के पहले ही कुछ सकारात्मक चमत्कार हो जाए और ये महामारियां काल के गाल में समा जाएं, वर्त्तमान हालात में यह कहना अतिश्योक्तोपूर्ण नहीं होगा की भ्रष्टाचार ने महामारी का रूप धारण कर लिया है और लोकतंत्र असहाय होकर उसकी चपेट में है !

Tuesday, December 14, 2010

ईमानदार भ्रष्टाचारी !

भाई साहब मैं मर जाऊंगा
मेरी धड़कनें रुक जायेंगी
सांस लेना मुश्किल हो जाएगा
मेरी बीवी घर से निकाल देगी
शान-सौकत सब चली जायेगी
किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहूँगा
मुझे करने दो, थोड़ा-बहुत ही सही
पर मुझे भ्रष्टाचार कर लेने दो !

मैं भ्रष्ट हूँ, भ्रष्टाचारी हूँ
इरादतन भ्रष्टाचार का आदि हो गया हूँ
आज तक एक भी ऐसा काम नहीं किया
जिसमे भ्रष्टाचार किया हो
लोग मेरे नाम की मिसालें देते हैं
मुझे जीने दो, मेरी हाय मत लो
मेरी हाय तुम्हें चैन से बैठने नहीं देगी
क्यों, क्योंकि मैं एक ईमानदार भ्रष्टाचारी हूँ !

मेरी नस नस में भ्रष्टाचार दौड़ रहा है
दिल की धड़कनें भ्रष्टाचार से चल रही हैं
मान लो, मेरी बात मान लो
मुझे, सिर्फ मुझे, भ्रष्टाचार कर लेने दो
तुम हाय से बच जाओगे
और मेरी दुआएं भी मिलेंगी
यही मेरी पहली और अंतिम अर्जी है
क्यों, क्योंकि मैं एक ईमानदार भ्रष्टाचारी हूँ !

Sunday, December 12, 2010

भारत महान !

हमारी जनता, हमारी सरकार
हमारा देश, भारत महान
भ्रष्ट जनता, भ्रष्ट सरकार
भ्रष्ट देश , फिर भी भारत महान

अब हाल देख लो देश का हमारे
एक भ्रष्ट दूसरे भ्रष्ट को निहारता है
एक भ्रष्ट दूसरे भ्रष्ट को सराहता है
एक भ्रष्ट दूसरे भ्रष्ट को पुकारता है

बंद करो भ्रष्टाचार
बंद करो दुराचार
बंद करो अत्याचार

कौन सुने, किसकी सुने, क्यों सुने
कौन उठाये कदम, कौन बढाये कदम
सब तो जंजीरों से बंधे हैं
सलाखों से घिरे हैं
निकलना तो चाहते हैं सभी
तोड़ना तो चाहते हैं सभी
भ्रष्टाचारी, अत्याचारी, दुराचारी, भोगविलासी
सलाखों को - जंजीरों को !

पर क्या करें
निहार रहे हैं एक-दूसरे को

कौन रोके झूठी महत्वाकांक्षाओं को
कौन रोके झूठी आकांक्षाओं को
कौन रोके भोगाविलासिता को
कौन रोके "स्वीस बैंक" की और बढ़ते कदमों को

कौन रोके खुद को
सब एक-दूसरे को निहारते खड़े हैं
हमारी जनता, हमारी सरकार, हमारा देश

हर कोई सोचता है
तोड़ दूं - मरोड़ दूं
जंजीरों को - सलाखों को
रच दूं, गढ़ दूं, पुन: एक देश
जिसे सब कहें हमारा देश, भारत महान !

Saturday, December 11, 2010

राहुल गांधी के विवादास्पद वक्तव्य में छिपे रहस्यमयी भाव !

हिन्दुस्तान में धर्म जातिगत राजनीति कोई नया मुद्दा नहीं है आम बात है ! विगत दिनों मध्यप्रदेश दौरे पर टीकमगढ़ में कांग्रेस पार्टी के युवा सेनापति राहुल गांधी का यह स्टेटमेंट कि सिमी और आरएसएस दोनों एक जैसी विचारधारा के कट्टरवादी संघठन हैं, दोनों में वैचारिक तौर पर कट्टरता में कोई फर्क नहीं है, राहुल बाबा ने स्पष्ट तौर पर अपने समर्थकों के समक्ष यह कह दिया कि संघ सिमी जैसी विचारधारा रखने वालों की कांग्रेस पार्टी में कोई जगह नहीं है हालांकि राहुल गांधी के भाषाई तेवर देखकर यह स्पष्ट झलक रहा था कि वे मध्यप्रदेश में दिग्विजयसिंह की बोली बोल रहे हैं संघ की सिमी से तुलना करना निसंदेह एक विवादास्पद वक्तव्य कहा जा सकता है क्योंकि सिमी एक प्रतिबंधित संघठन है, और जो संघठन प्रतिबंधित हो उससे किसी जनसामान्य से जुड़े किसी संघठन की तुलना करना अपने आप में विवाद को जन्म देता है, खैर तुलनात्मक स्टेटमेंट, नासमझी, समझदारी, समर्थन, विरोध, परिपक्वता, अपरिपक्वता, ये अलग मुद्दे हैं इन मुद्दों पर चर्चा-परिचर्चा के लिए राजनैतिक दल सक्रीय क्रियाशील हैं हालांकि यह मुद्दा इतना बड़ा नहीं है कि इस पर चर्चा की जाए, लेकिन इस मुद्दे अर्थात राहुल गांधी के सिमी आरएसएस के संबंध में दिए गए कथन के अन्दर छिपे रहस्यात्मक कूटनीतिक भाव पर चर्चा करना लाजिमी है, यहाँ पर रहस्यात्मक भाव से मेरा तात्पर्य जातिगत धर्मगत राजनीति से परे है

जी हाँ, राहुल गांधी का यह विवादास्पद कथन ठीक उस समय आना जब अयोध्या स्थित रामजन्म भूमि - बाबरी मस्जिद विवाद पर इलाहावाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसला आने के फलस्वरूप कुछेक राजनैतिक दल फैसले के पक्ष अथवा विपक्ष में अपने अपने कथन जारी कर वोट की राजनीति कर रहे थे, जबकि होना तो यह चाहिए था कि किसी भी राजनैतिक पार्टी को अयोध्या फैसले पर रोटी सेंकने का प्रयास करते हुए शान्ति सौहार्द्र बनाए रखने को तबज्जो देना चाहिए था जो परिलक्षित नहीं हुआ ! यहाँ विचारणीय बात यह है कि अयोध्या जैसे संवेदनशील मुद्दे पर पहले ही बहुत राजनैतिक पैंतरेवाजी हो चुकी थी जो अब नहीं होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा होते हुए लोगों ने पुन: इस मुद्दे को भुनाने की कसर नहीं छोडी यह स्पष्ट तौर पर झलक रहा था कि अयोध्या मुद्दे के फैसले से कांग्रेस पार्टी को तो कोई राजनैतिक लाभ था और ही हानि, लेकिन दूसरे दलों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कुछ कुछ लाभ जरुर था, इस राजनैतिक लाभ-हानि के द्रष्ट्रीकोण से ही राहुल गांधी के स्टेटमेंट को आंका जा सकता है हुआ दरअसल यह कि जब जातिगत धर्मगत राजनीति अर्थात वोट की नीति की बात हो तथा कुछेक राजनैतिक दल मुद्दे को भुनाने की कोशिश करें तब कांग्रेस कैसे चुप रह सकती है, और चुप रहना राजनैतिक द्रष्ट्रीकोण से लाजिमी भी नहीं है !

अब हम राहुल गांधी के स्टेटमेंट में छिपे रहस्यात्मक भाव पर चर्चा करते हैं, अपने देश में हिन्दू हों या मुस्लिम हों दोनों ही भावनात्मक व्यवहारिक रूप से दो हिस्सों में बंटे हुए हैं कुछ मंदिर-मस्जिद, जाति-धर्म की राजनीति के पक्षधर हैं तो कुछ घोर विरोधी भी हैं, ठीक यह स्थिति हिन्दू मुस्लिम वर्ग में आरएसएस व् सिमी को लेकर भी है ! मेरा व्यक्तिगत तौर पर ऐसा मानना है कि हिन्दू वर्ग में ही कुछेक कट्टरपंथ विचारधारा के समर्थक हैं तो कुछ विरोधी भी हैं ठीक उसी प्रकार मुस्लिम वर्ग में भी समर्थन विरोध की स्थिति है, कहने का तात्पर्य यह है कि मुस्लिम वर्ग में ही कुछेक सिमी का समर्थन करते हैं तो कुछ विरोध भी करते हैं, ठीक इसी तरह हिन्दू वर्ग में भी आरएसएस का समर्थन विरोध दोनों है ! राजनैतिक द्रष्ट्रीकोण से महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हिन्दू वर्ग मुस्लिम वर्ग में साफ्ट कार्नर रखने वाला वह हिस्सा जिसे जातिगत धर्मगत वोट की राजनीति से कुछ लेना-देना नहीं है, तो वह किसी के समर्थन में है और ही किसी के विरोध में है, अब सवाल यह है कि इस वर्ग अर्थात हिस्से को कौन व् कैसे भावनात्मक रहस्यात्मक ढंग से अपनी ओर खींचे !! यह वह वर्ग अर्थात हिस्सा है जिसे मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुस्लिम युक्त कट्टर राजनीति से कोई लेना-देना होकर शान्ति सौहार्द्र से लेना-देना है, इस वर्ग को देश में एक ऐसी राजनैतिक पार्टी की जरुरत है जो अमन-चैन शान्ति-सौहार्द्र की पक्षधर हो ! कहीं ऐसा तो नहीं राहुल गांधी के इस स्टेटमेंट में यही रहस्यात्मक भाव छिपा हुआ है तथा इस स्टेटमेंट के माध्यम से इस वर्ग विशेष का समर्थन जुटाने का भरपूर प्रयास किया है !!
( नोट :- यह लेख दिनांक - १० अक्टूबर २०१० को लेखबद्ध किया गया था जो विलम्ब से यहाँ प्रस्तुत है ! )

Friday, December 10, 2010

दो मित्र

दो मित्र सत्यानंद और धनीराम एक साथ पढते-पढते, खेलते-कूदते, मौज-मस्ती करते हुये बचपने से जवानी की दहलीज पार करते हुये जीवन के रंगमंच पर प्रवेश किये ..... दोनों के स्वभाव में तनिक ही अंतर था सत्यानंद होशियार बुद्धिमान था और धनीराम चालाक बुद्धिमान .... दोनों ही जीवन यापन के लिये कामधंधे में लग गये .... होशियार का मकसद "नाम व प्रसिद्धि" कमाना था और चालाक का मकसद "धन-दौलत" कमाना था इसलिये वे दोनों अलग अलग राह पर निकल गये .....

..... चलते चलते समय करवट लेते रहा चार-पांच साल का वक्त गुजर गया, बदलाव के साथ ही दोनों की उपलब्धियां नजर आने लगीं चालाक मित्र "कार व मोबाईल" के मजे ले रहा था और होशियार मित्र छोटे-मोटे समारोहों में "मान-सम्मान" से ही संतुष्ट था ..... हुआ ये था कि चालाक मित्र अपनी चालाकी से एक-दूसरे को "टोपीबाजी" करते हुये "कमीशन ऎजेंट" का काम कर रहा था और दूसरा बच्चों को टयूशन पढाते हुये "लेखन कार्य" में तल्लीन था ...

.... समय करवट बदलते रहा, पांच-सात साल का वक्त और गुजर गया ... गुजरते वक्त ने इस बार दोनों मित्रों को गांव से अलग कर दिया, हुआ ये कि धनीराम गांव छोडकर देश की राजधानी मे बस गया और सत्यानंद वहीं गांव मे रहते हुये बच्चों को पढाते पढाते दो-चार बार राजधानी जरूर घूम आया .... समय करवट बदलते रहा, और पंद्रह-सत्रह साल का वक्त गुजर गया ....

.... इस बार के बदलाव ऎसे थे कि दोनों मित्र आपस में एक बार भी नहीं मिल सके थे दोनों अपने-आप में ही मशगूल रहे, पर इस बदलाव में कुछ बदला था तो "वक्त ने करवट" ली थी हुआ ये था कि चालाक मित्र "करोडपति व्यापारी" बन गया था और होशियार मित्र "लेखक" बन गया था, व्यापारी "हवाईजहाज" से विदेश घूम रहा था और लेखक राष्ट्रपति से लेखन उपलब्धियों पर "पुरुस्कार" ले रहा था ....

.... वक्त गुजरता रहा, जीवन के अंतिम पडाव का दौर चल पडा था दोनों ही मित्रों ने अपना अपना मकसद पा लिया था लेकिन बरसों से दोनो एक-दूसरे से दूर व अंजान थे ..... एक दिन चालाक मित्र अपने कारोबार के सिलसिले में अंग्रेजों के देश गया वहां साल के सबसे बडे जलसे की तैयारी चल रही थी उत्सुकतावश उसने जानना चाहा तो पता चला कि इस "जलसे" मे दुनिया की जानी-मानी हस्तियों को सम्मानित किया जाता है .... बताने बाले ने कहा कि इस बार तुम्हारे देश के "लेखक - सत्यानंद" को सर्वश्रेष्ठ सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है यह तुम्हारे लिये गर्व की बात होनी चाहिये ....

.... उसकी बातें सुनते सुनते "सेठ - धनीराम" की आंखें स्वमेव फ़ट पडीं ... वह भौंचक रह गया .... मन में सोचने लगा ये कौन सत्यानंद है जिसे सम्मान मिल .... समारोह में अपने बचपन के मित्र सत्यानंद को "सर्वश्रेष्ठ सम्मान" से सम्मानित होते उसने अपनी आंखों से देखा और खुशी से उसकी आंखें अपने आप छलक पडीं .... वहां तो धनीराम को अपने मित्र सत्यानंद से मिलने का "मौका" नहीं मिल पाया ..... दो-चार दिन में व्यवसायिक काम निपटा कर अपने देश वापस आते ही धनीराम सीधा अपने गांव पहुंचा ....

....... बचपन के मित्र सत्यानंद से मिलने की खुशी ..... सत्यानंद ने धनीराम को देखते ही उठकर गले से लगा लिया .... दोनों की "खुशी" का ठिकाना न रहा ..... धनीराम बोल पडा - मैने इतनी "धन-दौलत" कमाई जिसकी कल्पना नहीं की थी पर तेरी "प्रसिद्धि" के सामने सब "फ़ीकी" पड गई ..... आज सचमुच मुझे यह कहने में "गर्व" हो रहा है कि मैं "सत्यानंद" का मित्र हूं।

नक्सली उन्मूलन की दिशा में शांतिवार्ता का मार्ग कितना उचित !

यह न सिर्फ खेद का वरन शर्म का भी विषय है कि आज भी एक वर्ग नक्सलवाद को विचारधारा मानते हुए नक्सली कमांडर आजाद की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत को ह्त्या मान कर चल रहा है, सचमुच यह एक सच्चा लोकतंत्र है जहां इस तरह की भावनाएं व विचारधाराएं फल-फूल रही हैं ।

नक्सली कमांडर आजाद की मौत को ह्त्या मानने का सीधा-सीधा तात्पर्य पुलिस को हत्यारा घोषित करना है जब एक बुद्धिजीवी वर्ग इसे ह्त्या मान सकता है तो कल उसे शहीद की पदवी से भी नवाजा जाएगा ... धन्य है लोकतंत्र की माया जहां कुछ भी संभव है ।

मैं यह नहीं कहता कि शान्ति वार्ता का मार्ग अनुचित व अव्यवहारिक है पर यह जरुर कहूंगा कि जो लोग शान्ति वार्ता के पक्षधर हैं उन्हें क्या अपने आप पर पूर्ण विश्वास है कि उनके एक इशारे पर नक्सली हथियार छोड़ देंगे, यदि ऐसा है तो शान्ति वार्ता का प्रस्ताव उचित है अन्यथा सब बेकार है ।

मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना तो यह है कि जमीन व जंगल में सक्रीय नक्सली, शान्ति वार्ता की पहल कर रहे बुद्धिजीवियों के नियंत्रण से बहुत बाहर हैं यदि ऐसा नहीं है तो वे एक बार आजमा कर देख लें, कहीं ऐसा न हो कि शान्ति वार्ता का कोई सकारात्मक नतीजा निकल आये और नक्सली अपनी मनमानी करते हुए फैसले को मानने से साफ़ तौर पर इंकार कर दें ... ज़रा सोचो उस समय क्या होगा !!

नक्सलवाद, नक्सलबाड़ी में शुरू हुआ जन आन्दोलन नहीं रहा वरन एक नक्सली समस्या बन गया है ... यदि आज कोई यह कहे कि नक्सलवाद शोषण व अन्याय के विरुद्ध आवाज है, विकास के लिए उठाया हुआ कदम है, एक जन आन्दोलन है तो सब बेईमानी है।

एक बात और उभर कर चल रही है वो है माओवाद, नक्सलवाद को माओवाद की संज्ञा से क्यों पारितोषित किया जा रहा है, नक्सलवाद और माओवाद में जमीन - आसमान का फर्क है दोनों के मूलभूत सिद्धांतों व उद्देश्यों की व्यवहारिकता में कोई मेल नहीं है और न ही हो सकता है ।

नक्सलवाद एक समस्या है इसके समाधान के लिए शांतिवार्ता का मार्ग भी अपनाया जा सकता है पर शांतिवार्ता के लिए भी कुछ समय सीमा तय किया जाना बेहतर होगा अन्यथा समय बर्बाद करने से ज्यादा कुछ नहीं जान पड़ता ... बेहतर तो ये होगा कि नक्सली उन्मूलन के लिए एक ठोस व कारगर रणनीति तैयार की जाए तथा नक्सलियों का राम नाम सत्य किया जाए ।
( नोट :- यह लेख दिनांक - १९ सितम्बर २०१० को लेखबद्ध किया गया था विलम्ब से यहाँ प्रकाशित है ) 

Thursday, December 9, 2010

... नहीं चाहिए हमें आजादी !

आजादी पर्व की पूर्व संध्या पर देश में बढ़ रहीं ... नक्सली, आतंकी, भ्रष्टाचारी, जमाखोरी, कालाबाजारी,मिलावटखोरी, आपराधिक इत्यादि समस्याओं के समाधान को लेकर दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक का आयोजन हुआ ... बैठक में केन्द्रीय व प्रांतीय मंत्रिमंडल, राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों के प्रमुख कर्ता-धर्ता शामिल हुए ... बैठक में समस्याओं के समाधान पर चर्चा शुरू हुई, उपस्थित सभी कर्णधारों ने समाधान के लिए आम सहमति जाहिर की ...

... समाधान कैसे हो, क्या उपाय हों, यह किसी को नहीं सूझ रहा था सभी मौन मुद्रा में समस्याओं से समाधान का उपाय सोच रहे थे तभी अचानक एक प्रकाश बिम्ब के साथ साक्षात इन्द्रदेव प्रगट हुए ... सभी आश्चर्यचकित हुए ... इन्द्रदेव ने कहा - आप सभी लोग एक ही समस्या के समाधान पर चिंतित हैं एक साथ इतने लोगों की मांसिक तरंगों ने मुझे यहाँ आमंत्रित कर लिया है मुझे मालुम है की आप लोगों को समस्याओं का समाधान नहीं मिल रहा है और आप सभी लोग समाधान चाहते हैं, हम समाधान बता देते हैं जिससे तीन दिनों के अन्दर ही सारी समस्याएं सुलझ जायेंगी ... आप सभी लोग गंभीरता पूर्वक सोच-विचार कर लीजिये समाधान चाहिए अथवा नहीं ... पंद्रह मिनट के पश्चात हम पुन: उपस्थित होंगे ... (इन्द्रदेव अद्रश्य हो गए) ...

... सभाभवन में सन्नाटा-सा छा गया, सभी लोग एक-दूसरे को देखते हुए हतप्रभ हुए ... सभी अपनी अपनी घड़ी देखने लगे ... फिर अचानक एक साथ सब बोल पड़े - ... तीन दिन में समाधान हो जाएगा तो फिर हम लोग कहाँ जायेंगे ... हमारी बर्षों की मेहनत का क्या होगा ... कहीं अपना ही राजपाट न छिन जाए ... तीन दिन में समाधान कैसे संभव है ... भगवान हैं संभव कर देंगे ... जल्दी सोचो क्या करना है ... नहीं नहीं तीन दिन में समाधान ठीक नहीं है ... अरे ये तो समस्याओं से भी बड़ी समस्या खडी हो गई है ... भगवान ने न जाने क्या उपाय सोच रखा है ... सोचो, जल्दी करो, टाइम बहुत कम है ... अरे इस नई समस्या का समाधान ढूंढो कहीं लेने-के-देने न पड़ जाएँ ... अरे ज्यादा सोचो मत सभी हाँ कह देते हैं ... अपन लोगों ने तो बहुत धन -दौलत कमा लिया है समस्याएं मिट जायेंगी तो अच्छा ही है ... नहीं नहीं नहीं ... तभी एक चतुर नेता उठकर बोले ...

... अरे भाई कोई हमरी भी सुनेगा की नहीं ... हाँ हाँ बोलो क्या बोलना है ... ये सब तीन-पांच-तेरह छोडो और तनिक सब लोग कान-खुजा के सुनो, कहीं ऐसा न हो की देर हो जाए और भगवान जी आकर अपना फैसला मतलब समस्याओं का समाधान सुना जाएं ... चारों ओर पिन-ड्राप-साइलेंस .... हाँ हाँ बताओ जल्दी करो ... ये जो समस्याएँ हैं जिसका समाधान हम ढूँढने के लिए यहाँ बैठे हैं, ये सारी समस्याएं हम सब लोगों की पैदा की हुई हैं, अरे भाई सीधा सीधा मतलब ये है की इन समस्याओं की जड़ हम सब लोग ही हैं इसलिए ये मीटिंग-सीटिंग बंद करो और भगवान के आने के पहले ही निकल लो, कहीं ऐसा न हो कि यहीं हम सब का राम नाम सत्य हो जाए ... चारों ओर से आवाज निकली ... हाँ ये बिलकुल सच है, यही सर्वविदित सत्य है, ... छोडो मीटिंग-सीटिंग ... छोडो समस्याएं व समाधान ... नहीं चाहिए हमें आजादी ! इन समस्याओं से ... अभी साढ़े-आठ मिनट ही हुए थे कि सभी सदस्य एक नारे को बुलंद करते हुए ... नहीं चाहिए हमें आजादी ... नहीं चाहिए हमें आजादी ... नहीं चाहिए हमें आजादी ! इन समस्याओं से ... चिल्लाते हुए चले गए !!!

Tuesday, December 7, 2010

भारतीय मीडिया : सांठ गांठ की नीति !

भारतीय मीडिया जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाना जाता है जिसके वर्त्तमान समय में दो धड़े प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रानिक मीडिया के रूप में सक्रीय क्रियाशील हैं किन्तु विगत कुछेक वर्षों से इनकी सक्रियता क्रियाशीलता पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं, यदि ये आँख मूँद कर बैठ जाते अर्थात निष्क्रिय होकर अपनी भूमिका का सम्पादन करते रहते तो शायद इनके अस्तित्व, सक्रियता क्रियाशीलता पर प्रश्न ही नहीं खडा होता, स्वाभाविक तौर पर यह मान लिया जाता कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ फ़ैल हो गया है किन्तु इनकी सक्रियता क्रियाशीलता में निरंतर बढ़ोतरी हुई है जिसका स्वरूप दिन--दिन सशक्त होकर उभर कर सामने है

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ वर्त्तमान समय में सिर्फ सक्रीय क्रियाशील है वरन बेहद सशक्त आधुनिक संसाधनों से युक्त भी है, इन हालात में भी यदि मीडिया संदेह सवालों के कटघरे में खडी है जो निसंदेह गंभीर विचारणीय मुद्दा है ! वर्त्तमान समय में मीडिया पर सांठ गांठ के गंभीर आरोप लग रहे हैं यहाँ पर मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि सांठ-गांठ से मेरा तात्पर्य गठबंधन, मिलीभगत, साझानीति, तालमेल की नीति से है यह नीति सामान्य तौर पर सत्तासीन राजनैतिक अथवा व्यवसायिक प्रतिस्पर्धी आपस में तय कर अपने अपने मंसूबों को साधने के लिए उपयोग में लाते हैं

अब यह सवाल उठना लाजिमी होगा कि जब मीडिया का तो राजनैतिक और ही व्यवसायिक हितों से कोई लेना-देना है फिर यह सांठ-गांठ क्यों, किसलिए ! यदि मीडिया का राजनीति व्यावसाय से कुछ लेना-देना है तो वो सिर्फ इतना कि इनकी कारगुजारियों को समय समय पर निष्पक्ष निर्भीक होकर जनता के सामने रखने से है ! क्या कोई भी मीडिया कर्मी ऐसा होगा जो अपने कर्तव्यों दायित्वों से अंजान होगा, शायद नहीं ! फिर क्यों, मीडिया के खुल्लम-खुल्ला तौर पर राजनैतिज्ञों उद्धोगपतियों के साथ सांठ-गांठ के आरोप जगजाहिर हो रहे हैं !

आधुनिकीकरण की दौड़ एक ऐसी दौड़ है जिसमे हरेक महत्वाकांक्षी शामिल होना चाहेगा, यहाँ आधुनिकीकरण से मेरा तात्पर्य आधुनिक संस्कृति भौतिक सुख-सुविधाओं से ओत-प्रोत होने से है, जब आधुनिक संस्कृति अपने चरम पर चल रही हो तब क्या कोई भी महात्वाकांक्षी शांत ढंग से बाहर से देख सकता है, शायद नहीं ! संभव है एक कारण यह भी हो मीडिया का राजनैतिज्ञों उद्धोगपतियों की ओर रुझान का या फिर मीडिया को अपने पावर अर्थात शक्ति का अचानक ही एहसास हुआ हो कि क्यों राजनीति व्यवसाय को भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संचालित किया जाए

हम इस बात से भी कतई इंकार नहीं कर सकते कि मीडिया को गुमराह करने का प्रयास नहीं किया गया होगा या ऐसे प्रलोभन नहीं दिए गए होंगे जिनके प्रभाव में आकर मीडिया रूपी धारा का रुख स्वमेव मुड गया हो ! संभव है इन कारणों में से ही किसी किसी कारण की चपेट में आकर मीडिया ने अपनी स्वाभाविकता को खो दिया है और तरह तरह के सवालों के कटघरे में स्वमेव खडी है ! संभव है यह बुरा दौर भी गुजर जाएगा किन्तु मेरा व्यक्तिगत तौर पर ऐसा मानना है कि मीडिया रूपी भव्य इमारत निष्ठा, निष्पक्षता, इमानदारी जनभावना रूपी बुनियाद पर खडी है यदि कोई भी व्यक्ति अथवा संस्था इस नींव पर सांठ-गांठ पूर्वक भव्य महल खडा करने का प्रयास करेगा वह महल बुनियाद पर ज्यादा समय तक ठहर नहीं पायेगा और स्वमेव ही भरभरा कर धराशायी हो जाएगा !

Sunday, December 5, 2010

मैं दलाल नहीं हूँ !

हाँ भई मैं खबरीलाल ही हूँ
नहीं, मैं दलाल नहीं हूँ
और ही बिचौलिया हूँ
हाँ, अगर आप चाहें तो
मुझे एक गुड मैनेजर
एक्सपर्ट या को-आर्डीनेटर
कह या सोच सकते हैं !

हाँ अब मैं भी लिखते-पढ़ते
झूठ-सच बयां करते करते
खिलाडियों का खिलाड़ी हो गया हूँ
कब किसको पटकनी देना
और किसको पंदौली दे उठाना है
इशारों ही इशारों में समझ कर
शह-मात की चालें चल रहा हूँ !

क्यों ..... क्योंकि मैं भी
कभी कभी मंत्रियों-अफसरों
और उद्योगपतियों के साथ
उठ-बैठ सांठ-गांठ कर
छोटे-मोटे काम बेख़ौफ़
निपटा-सुलझा-उलझा रहा हूँ
और मैनेजमेंट गुरु बन गया हूँ !

भला इसमें बुराई ही क्या है
नेता-अफसर-मंत्री सभी तो
यही सब कुछ कर रहे हैं
छोटे-बड़ों को मैनेज कर रहे हैं
मुझे भी लगा, मौक़ा मिला
मैं भी कूद पडा मैदान में
अब गुरुओं का गुरु बन गया हूँ !!!

Friday, December 3, 2010

खुदा महरवान तो गधा पहलवान

आज मन में कुछ लिखने का विचार नहीं बन रहा था ....क्या लिखूं कुछ समझ में नहीं आ रहा था .... तभी दिमाग में एक बिजली कौंधी .... "चलो आज "भगवान" का बाजा बजाया जाये !" .... अरे भाई भगवान का ही क्यूं ... धरती पर क्या बाजा बजाने के लिये "गधे" कम पड गये हैं ... गधे कम नहीं पड गये हैं बल्कि उनकी संख्या दिन-ब-दिन बढते जा रही है .... इसलिये ही तो "भगवान" का बाजा बजाने का मन कर रहा है .... देख के भाई जरा संभल के ... अब संभलना क्या है ... आज तो "भगवान" से पंगा लेकर ही रहेंगे ....

.... हुजूर ... माई-बाप ... पालनहार ... अरे इधर-उधर मत देखो "प्रभु ...अंतरयामी" ... मैं आप ही से बात कर रहा हूं बात क्या कर रहा हूं सीधा-सीधा एक सबाल पूंछ रहा हूं .... धरती पर "गधों" की संख्या दिन-व-दिन क्यों बढाये पडे हो ? .... भगवान जी सोचने लगे ... ये कौन "सिरफ़िरा" आ गया ... क्या इसे मैंने ही बनाया है !! .... भगवान जी चिंतित मुद्रा में ... चिंतित मतलब "नारद जी" प्रगट .... मैं समझ गया कि आज मेरे प्रश्न का उत्तर मुश्किल ही है ...

.... भगवान जी कुछ बोलते उससे पहले ही नारद जी बोल पडे .... नारायण-नारायण ... प्रभु ये वही "महाशय" हैं जो श्रष्टी की रचना करते समय "मीन-मेक" निकाल रहे थे, जिनके सबालों का हमारे पास कोई जबाव भी नही था जिन्हें समझा-बुझाकर कुछ समय के लिये शांत कर दिये थे आज-कल धरती पर समय काट रहे हैं ..... भगवान जी त्वरत आसन से उठ खडे हुये .... और नारद से पूंछने लगे ...

.... धरती पर गधे नाम के जानवर की संख्या तो कम हो रही है फ़िर ये कैसे हम पर आरोप लगा रहे हैं कि हम गधों की संख्या बढा रहे हैं .... प्रभु ये तो मेरे भी समझ में नहीं आ रहा ... चलो इन्हीं से पूंछ लेते हैं .... मैंने कहा- मेरा सीधा-सीधा सबाल है धरती पर "गधों" की संख्या दिन-व-दिन क्यों बढ रही है ? ... फ़िर आश्चर्य के भाव ... मेरा मतलब धरती पर "गधे टाईप" के मनुष्य जो लालची, कपटी, बेईमान, धूर्त, मौकापरस्त, लम्पट हैं उनसे है ...

.... उन पर ही आप की महरवानी क्यों हो रही है ... वे ही क्यों मालामाल हो रहे हैं .... वे ही क्यों मलाई खा रहे हैं ... उनको देख-देख कर दूसरे भी "गधे" बनने के लिये दौड रहे हैं .... किसी दिन धरती पे आ के देखो .... वो कहावत चरितार्थ हो रही है ...
"खुदा महरवान तो गधा पहलवान" .... मैं तो बस यही जानना चाहता हूं ... आप लोगों की महरवानी से "कब तक गधे पहलवानी करते रहेंगे"..... भगवान जी पुन: चिंतित मुद्रा में ... तभी नारद जी ... नारायण-नारायण ... प्रभु आपके सबाल का जबाव सोच रहे हैं ... मेरी एक समस्या है उसे सुलझाने मे मदद चाहिये .... नारद जी की समस्या ... समस्या क्या उनकी बातें सुनते सुनते फ़िर धरती पे आ गये .... मैं समझ गया आज जबाव मिलने वाला नहीं है .... लगता है "खुदा" की महरवानी से गधे पहलवानी करते रहेंगे !!!

Wednesday, December 1, 2010

चांदी के सिक्के

दोस्तो क्यों परेशान होते हो,
क्यों हैरान होते हो,
चांदी के चंद सिक्कों के लिए,
ज़रा सोचो,
चांदी के सिक्कों का करोगे क्या,
क्या इन सिक्कों को
आंखो पर रखने से नींद आ जाएगी,
या फिर इनसे,
रात की करवटें रुक जायेंगी !

और तो और, क्या कोई बतायेगा,
कि इन सिक्कों को देख कर,
क्या ‘यमदूत’ डर कर लौट जायेंगे,
या फिर, इन सिक्कों पर बैठ कर,
तुम स्वर्ग चले जाओगे,
या इन्हें जेब में रख कर,
अजर-अमर हो जाओगे !

अगर तुम सोचते हो,
ऐसा कुछ हो सकता है,
तो चांदी के सिक्के अच्छे हैं,
और तुम्हारी इनके लिए
मारामारी अच्छी है,
अगर ऐसा कुछ न हो सके,
तो तुम से तो,
तुम्हारे चांदी के सिक्के अच्छे हैं,
तुम रहो, या न रहो,
ये सिक्के तो रहेंगे,
न तो तुम्हारे अपने
और न ही ये सिक्के,
तुम्हें कभी याद करेंगे !

अगर ऐसा हुआ या होगा
फिर ज़रा सोचो,
क्यों परेशान होते हो,
चांदी के चंद सिक्कों के लिए,
अगर होना ही है परेशान,
रहना ही है जीवन भर हलाकान्,
तो उन कदमों के लिए हो,
जो कदम उठें तो,
पर उठ कर कदम न रहें,
बन जायें रास्ते,
सदा के लिए,
सदियोँ के लिये,
न सिर्फ तुम्हारे लिए,
न सिर्फ हमारे लिए ...... !

Monday, November 29, 2010

भ्रष्टाचार : कठोर दंडात्मक कार्यवाही अंतिम विकल्प !

भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है जिसके समाधान के लिए शीघ्रता तत्परता से उपाय तलाशे जाना अत्यंत आवश्यक हो गया है यदि इस समस्या पर गंभीरता पूर्वक विचार-विमर्श नहीं किया गया और समाधान के कारगर उपाय नहीं तलाशे गए तो वह दिन दूर नहीं जब त्राही माम - त्राही माम के स्वर चारों ओर गूंजने लगेंभ्रष्टाचार में लिप्त नेता-अफसर सारी मर्यादाओं का त्याग कर एक सूत्रीय अभियान की भांति लगातार भ्रष्टाचार के नए नए कारनामों को अंजाम देने में मस्त हैं, सही मायने में कहा जाए तो अब अपने देश में भ्रष्टाचारी लोगों का कोई मान-ईमान नहीं रह गया है जो देशप्रेम आत्म सम्मान की भावना से ओत-प्रोत होदेश की आतंरिक बाह्य सुरक्षा से जुडा विषय हो या फिर कोई संवेदनशील राजनैतिक मुद्दा हो, सभी क्षेत्र में भ्रष्टाचार की बू साफतौर पर रही है विकास योजनाएं खेल से जुड़े मुद्दे तो भ्रष्टाचार के अखाड़े ही बन गए हैं

टेलीकाम संचार से जुड़े जी  स्पेक्ट्रम घोटाले ने तो देश को शर्मसार ही कर दिया है, इस घोटाले को देखकर तो ऐसा जान पड़ता है कि जी  स्पेक्ट्रम से जुडी सारी प्रक्रियाएं भ्रष्टाचार को नए आयाम देने के द्रष्ट्रीकोण से ही संपादित की गईं हैं, देश के अब तक के सबसे बड़े चर्चित इस घोटाले में .७६ लाख करोड़ रुपयों के घोटाले अर्थात राजस्व क्षति के तथाकथित तौर पर आरोप-प्रत्यारोप लग रहे हैंगौरतलब हो कि कामनवेल्थ गेम्स घोटाला तथा आदर्श सोसायटी घोटाले की आंच अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि जी स्पेक्ट्रम घोटाला ज्वालामुखी की तरह धधकने लगा है, वर्त्तमान में यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण ही रहेगा कि जी स्पेक्ट्रम रूपी धधकता घोटाला जाने कितनों को अपनी चपेट में लेकर हस्ती को नेस्त-नाबुत करेगा क्योंकि प्रधानमंत्री तक भी इसकी आंच पहुँच रही है

जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने सांसद राज्यसभा में जबरदस्त हंगामा खडा कर रखा है सदन की कार्यवाही शुरू होने के पहले ही जेपीसी (संयुक्त संसदीय समीति) जांच की मांग को लेकर हंगामा खडा हो जाता है, सवाल यह है कि जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जेपीसी जांच की मांग को लेकर विपक्ष इतना ज्यादा हंगामा करने पर क्यों उतारू हो गया है ! क्या इस तरह के घोटालों पर जेपीसी जांच से सकारात्मक नतीजे मिल सकते हैं या फिर वही ढाक के तीन पात ! ऐसा नहीं है कि पूर्व में कभी जेपीसी जांच नहीं हुई, जांच हुई है पर नतीजे ! बोफोर्स घोटाला, हर्षद मेहता घोटाला, केतन पारिख शेयर घोटाला शीतल पेय पदार्थ में विषैले कीटाणुओं संबंधी चर्चित मामलों में भी जेपीसी जांच कराई गई है ! वर्त्तमान में जेपीसी जांच की मांग को लेकर जो हंगामा खडा हुआ है तथा लगातार भ्रष्टाचार से जुड़े नए नए मुद्दे अर्थात घोटाले उभर कर सामने रहे हैं उसे देखते हुए मेरा मानना तो यह है कि जेपीसी जांच गठित हो या अन्य कोई एजेंसी जांच करे, जांच निष्पक्ष इमानदारी पूर्वक होनी चाहिए तथा दोषियों को दोष के अनुरूप सजा अवश्य मिलना चाहिए ताकि भविष्य में घोटालेवाजों को सबक मिल सके।  कामनवेल्थ गेम्स घोटाला, आदर्श हाऊसिंग सोसायटी घोटाला तथा जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े प्रत्येक दोषी पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही होनी ही चाहिए !