प्रदेश में समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य के लिए "श्रेष्ठ समाजसेवी " पुरूस्कार का प्रस्ताव रखा गया, सर्वसम्मति से प्रस्ताव मंत्रिमंडल में पारित भी हो गया, एक समीति भी गठित कर दी गई ... अब वर्ष के "श्रेष्ठ समाजसेवी " के चयन को लेकर समीति की बैठक चल रही थी, अगले ही महीने राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर "श्रेष्ठ समाजसेवी " पुरूस्कार का वितरण किया जाना था ...
... बैठक में घमासान मचा हुआ था कि फला खिलाड़ी, फला साहित्यकार, फला समाजसेवी संस्था के प्रमुख, फला उधोगपति, फला कलाकार का कार्य इस वर्ष श्रेष्ठ व उल्लेखनीय रहा है ... पर किसी एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं बन पा रही थी दो-तीन दिनों से बैठक बेनतीजा चल रही थी किन्तु आज की बैठक में एक और नया नाम उछल कर सामने आ गया, अब नाम भी ऐसा कि कोई विरोध नहीं कर पा रहा था साथ ही साथ लाजिक भी सही था ...
... विरोध करे भी तो कोई कैसे करे, सबका दाना-पानी जो बंधा था उस नाम के साथ, नाम था प्रदेश के सबसे बड़े शराब ठेकेदार - बाटली सिंह का ... जिसको भी - जब भी, गाडी, घोड़ा, चन्दा, विज्ञापन बगैरह बगैरह की जरुरत पड़ती थी तो वहीं से पूरी होती थी इसलिए कोई विरोध भी नहीं कर पा रहा था ... नाम के साथ तर्क भी सही था कि वे "श्रेष्ठ समाजसेवी " क्यों हैं तर्क ये था कि आज की तारीख में वे ही सबसे बड़े समाजसेवी हैं क्योंकि वे शहर-शहर, गाँव-गाँव, गली-कूचे सभी जगह समाजसेवा में मस्त व व्यस्त रहते हैं, उन्हें एक-एक आदमी की जरुरत ... विदेशी, देशी, देहाती का ख्याल रहता है, और ये तो कुछ भी नहीं वे रात-दिन चौबीसों घंटे सेवा में तत्पर भी रहते हैं ...
... पूरे प्रदेश में कोई दूसरा नाम नहीं था जो उनसे ज्यादा समाज सेवा कर रहा हो, जायज था बाटली सिंह का नाम उछलना ... समीति के सारे सदस्य बाटली सिंह का नाम सुनकर मूकबधिर से हो गए थे बैठक का नतीजा फिर सिफर रहा ... समय गुजरता जा रहा था और धीरे धीरे बात मंत्रिमंडल तक पहुँच गई, दो दिन बाद ही पुरूस्कार का वितरण किया जाना था मंत्रिमंडल में भी बाटली सिंह का नाम सुनकर सन्नाटा-सा छा गया, पूरा मंत्रिमंडल प्रदेश के मुखिया सहित चिंतित ... चिंतित इसलिए कि तर्क सही थे पर किसी शराब ठेकेदार को पुरूस्कार देना बदनामी की बात थी, पर किसी हकदार को उसके हक़ से वंचित भी नहीं कर सकते थे ...
... यह बात बाटली सिंह के कानों तक भी पहुँच गई थी कि वह ही पुरूस्कार प्राप्त करने का असली हकदार है और उसके नाम के साथ छेड़छाड़ का प्रयास चल रहा है इसलिए वह भी पल पल की जानकारी पर नजर रखे हुआ था, वह यह भी भली-भाँती जानता था कि बिना तर्क के उसका नाम काटा नहीं जा सकता था क्योंकि चयन समीति के सदस्यों को भी उसने एक्टिव कर रखा था ... लगभग तय सा ही था बाटली सिंह का नाम "श्रेष्ठ समाजसेवी " पुरूस्कार के लिए ...
... प्रदेश के मुखिया के माथे पर चिंता की लकीरें देख पी.ए.ने कहा - साहब आप इस मुद्दे पर आपके कवि मित्र से सलाह क्यों नहीं ले लेते ... अरे हाँ सही कहा, गाडी भेजकर बुलवाओ उन्हें, नहीं नहीं, गाडी लगवाओ हम खुद ही चलते हैं उनके पास ... मेल-मुलाक़ात, चर्चा-परिचर्चा के बाद कविवर मित्र के सलाह अनुसार ... मंत्रिमंडल व चयन समीति के सदस्यों की बैठक दो घंटे के बाद आयोजित की गई जिसमे कवि महोदय प्रदेश के मुखिया के प्रतिनीधि बतौर शामिल हुए ...
... सभी तर्क-वितर्क सुनने के बाद कवि महोदय ने प्रश्न खडा किया कि ये बताओ - क्या बाटली सिंह कानूनीरूप से रात-दिन चौबीसों घंटे बिना प्रशासनिक मौन स्वीकृति के समाज सेवा, जिसे आप लोग समाजसेवा समझ रहे हो, धड़ल्ले से कर सकता है ? ... चारों तरफ से एक ही उत्तर ... नहीं ... नहीं ... नहीं ... ... अब भला जो काम प्रशासनिक मौन स्वीकृति पर चल रहा है उस काम का श्रेय बाटली सिंह को कैसे दिया जा सकता है ? ... जी बिलकुल नहीं दिया जा सकता ... लेकिन इतनी बड़ी समाजसेवा का काम, वो भी रात-दिन, चौबीसों घंटे, गाँव-गाँव, शहर-शहर, गली-मोहल्ले, चप्पे-चप्पे पे चल रहा है क्यों न इस समाज सेवा के लिए ही किसी को पुरुस्कृत किया जाए ... चारों ओर से आवाज निकली पर किसे ??? ... अब इसमें सोचने वाली क्या बात है इतने बड़े काम का श्रेय नि:संदेह प्रदेश के मुखिया को मिलना चाहिए !!!
... बैठक में घमासान मचा हुआ था कि फला खिलाड़ी, फला साहित्यकार, फला समाजसेवी संस्था के प्रमुख, फला उधोगपति, फला कलाकार का कार्य इस वर्ष श्रेष्ठ व उल्लेखनीय रहा है ... पर किसी एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं बन पा रही थी दो-तीन दिनों से बैठक बेनतीजा चल रही थी किन्तु आज की बैठक में एक और नया नाम उछल कर सामने आ गया, अब नाम भी ऐसा कि कोई विरोध नहीं कर पा रहा था साथ ही साथ लाजिक भी सही था ...
... विरोध करे भी तो कोई कैसे करे, सबका दाना-पानी जो बंधा था उस नाम के साथ, नाम था प्रदेश के सबसे बड़े शराब ठेकेदार - बाटली सिंह का ... जिसको भी - जब भी, गाडी, घोड़ा, चन्दा, विज्ञापन बगैरह बगैरह की जरुरत पड़ती थी तो वहीं से पूरी होती थी इसलिए कोई विरोध भी नहीं कर पा रहा था ... नाम के साथ तर्क भी सही था कि वे "श्रेष्ठ समाजसेवी " क्यों हैं तर्क ये था कि आज की तारीख में वे ही सबसे बड़े समाजसेवी हैं क्योंकि वे शहर-शहर, गाँव-गाँव, गली-कूचे सभी जगह समाजसेवा में मस्त व व्यस्त रहते हैं, उन्हें एक-एक आदमी की जरुरत ... विदेशी, देशी, देहाती का ख्याल रहता है, और ये तो कुछ भी नहीं वे रात-दिन चौबीसों घंटे सेवा में तत्पर भी रहते हैं ...
... पूरे प्रदेश में कोई दूसरा नाम नहीं था जो उनसे ज्यादा समाज सेवा कर रहा हो, जायज था बाटली सिंह का नाम उछलना ... समीति के सारे सदस्य बाटली सिंह का नाम सुनकर मूकबधिर से हो गए थे बैठक का नतीजा फिर सिफर रहा ... समय गुजरता जा रहा था और धीरे धीरे बात मंत्रिमंडल तक पहुँच गई, दो दिन बाद ही पुरूस्कार का वितरण किया जाना था मंत्रिमंडल में भी बाटली सिंह का नाम सुनकर सन्नाटा-सा छा गया, पूरा मंत्रिमंडल प्रदेश के मुखिया सहित चिंतित ... चिंतित इसलिए कि तर्क सही थे पर किसी शराब ठेकेदार को पुरूस्कार देना बदनामी की बात थी, पर किसी हकदार को उसके हक़ से वंचित भी नहीं कर सकते थे ...
... यह बात बाटली सिंह के कानों तक भी पहुँच गई थी कि वह ही पुरूस्कार प्राप्त करने का असली हकदार है और उसके नाम के साथ छेड़छाड़ का प्रयास चल रहा है इसलिए वह भी पल पल की जानकारी पर नजर रखे हुआ था, वह यह भी भली-भाँती जानता था कि बिना तर्क के उसका नाम काटा नहीं जा सकता था क्योंकि चयन समीति के सदस्यों को भी उसने एक्टिव कर रखा था ... लगभग तय सा ही था बाटली सिंह का नाम "श्रेष्ठ समाजसेवी " पुरूस्कार के लिए ...
... प्रदेश के मुखिया के माथे पर चिंता की लकीरें देख पी.ए.ने कहा - साहब आप इस मुद्दे पर आपके कवि मित्र से सलाह क्यों नहीं ले लेते ... अरे हाँ सही कहा, गाडी भेजकर बुलवाओ उन्हें, नहीं नहीं, गाडी लगवाओ हम खुद ही चलते हैं उनके पास ... मेल-मुलाक़ात, चर्चा-परिचर्चा के बाद कविवर मित्र के सलाह अनुसार ... मंत्रिमंडल व चयन समीति के सदस्यों की बैठक दो घंटे के बाद आयोजित की गई जिसमे कवि महोदय प्रदेश के मुखिया के प्रतिनीधि बतौर शामिल हुए ...
... सभी तर्क-वितर्क सुनने के बाद कवि महोदय ने प्रश्न खडा किया कि ये बताओ - क्या बाटली सिंह कानूनीरूप से रात-दिन चौबीसों घंटे बिना प्रशासनिक मौन स्वीकृति के समाज सेवा, जिसे आप लोग समाजसेवा समझ रहे हो, धड़ल्ले से कर सकता है ? ... चारों तरफ से एक ही उत्तर ... नहीं ... नहीं ... नहीं ... ... अब भला जो काम प्रशासनिक मौन स्वीकृति पर चल रहा है उस काम का श्रेय बाटली सिंह को कैसे दिया जा सकता है ? ... जी बिलकुल नहीं दिया जा सकता ... लेकिन इतनी बड़ी समाजसेवा का काम, वो भी रात-दिन, चौबीसों घंटे, गाँव-गाँव, शहर-शहर, गली-मोहल्ले, चप्पे-चप्पे पे चल रहा है क्यों न इस समाज सेवा के लिए ही किसी को पुरुस्कृत किया जाए ... चारों ओर से आवाज निकली पर किसे ??? ... अब इसमें सोचने वाली क्या बात है इतने बड़े काम का श्रेय नि:संदेह प्रदेश के मुखिया को मिलना चाहिए !!!
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