कुछ ख़्वाब थे मुट्ठी में
रेत के कणों की तरह
शनै: शनै: कब बिखरे
सफ़र में एहसास न हुआ
बस, कुछ बचा है
तो एक ख़्वाब जहन में
क्या जहन में बसा ख़्वाब
ले जायेगा मंजिल तक
अब वो पल हैं सामने
जो मुझे झकझोर रहे हैं
कह रहे हैं रख हौसला
चलता चल, बढता चल
एक नई मंजिल की ओर
जहन में बसा ख़्वाब
भी तो आखिर ख़्वाब है !!
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