किसी भी लेखन को -
पढ़ते समय
मैं नहीं देखता
कि -
लेखक
बड़ा है, या छोटा है !
गर देख लूं
तो शायद मैं लेखन को,
दाद -
सच्चे मन से
सच्चे दिल से
एक पाठक के नजरिये से
शायद ! न दे पाऊँ !!
क्यों, क्योंकि -
उस समय मेरे जेहन में
लेखन नहीं, लेखक होगा
वो छोटा, या बड़ा होगा
और जब मैं
यह देख लूं कि -
लेखक बड़ा है, तो निसंदेह
मेरी अभिव्यक्ति
लेखन के दायरे से ऊपर होगी
और यह देख लूं कि -
लेखक छोटा है
तो शायद
मैं नजर-अंदाज भी कर जाऊं
लेखन को !
इसलिए -
इन दुर्भावनाओं से
खुद को दूर रखता हूँ
किसी भी
लेखन को पढ़ते समय
दाद देते समय
यह कतई नहीं देखता
कि -
लेखन से भी कोई -
ऊपर है, ऊपर हो सकता है
फिर भले चाहे
वो, कोई भी, क्यूं न हो !
क्यों, क्योंकि -
मैं एक पाठक हूँ !!
पढ़ते समय
मैं नहीं देखता
कि -
लेखक
बड़ा है, या छोटा है !
गर देख लूं
तो शायद मैं लेखन को,
दाद -
सच्चे मन से
सच्चे दिल से
एक पाठक के नजरिये से
शायद ! न दे पाऊँ !!
क्यों, क्योंकि -
उस समय मेरे जेहन में
लेखन नहीं, लेखक होगा
वो छोटा, या बड़ा होगा
और जब मैं
यह देख लूं कि -
लेखक बड़ा है, तो निसंदेह
मेरी अभिव्यक्ति
लेखन के दायरे से ऊपर होगी
और यह देख लूं कि -
लेखक छोटा है
तो शायद
मैं नजर-अंदाज भी कर जाऊं
लेखन को !
इसलिए -
इन दुर्भावनाओं से
खुद को दूर रखता हूँ
किसी भी
लेखन को पढ़ते समय
दाद देते समय
यह कतई नहीं देखता
कि -
लेखन से भी कोई -
ऊपर है, ऊपर हो सकता है
फिर भले चाहे
वो, कोई भी, क्यूं न हो !
क्यों, क्योंकि -
मैं एक पाठक हूँ !!
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