एक लम्बी यात्रा के बाद सुबह सुबह ट्रेन से उतर कर स्टेशन से बाहर निकल कर एक रिक्शेवाले से बोला - मंदिर चौक का कितना लेगा ... वह बोला - साहब, ४०/- रुपया ... मैंने कहा - वाह, कुछ कम से काम नहीं चलेगा ... वह बोला - बिलकुल नहीं चल पायेगा साहब ... मैंने कहा - सुबह सुबह बहस का मूड नहीं है, सही सही बता, कितना लेगा, मैं कोई नया आदमी नहीं हूँ, अक्सर आते-जाते रहता हूँ, अभी एक सप्ताह पहले ही ३०/- रुपये देकर वहां से स्टेशन तक आया था, और वह भी रिक्शावाला हंसी-खुशी छोड़कर गया था, और तू है कि सातवें आसमान पे बैठ के बात कर रहा है, सही सही बोल या फिर किसी और से बात करूं ... साहब आपको जिस से बात करना है कर लो, पर मैं तो ४०/- रुपये से कम नहीं लूंगा ... मैंने कहा - ठीक है, जैसी तेरी मर्जी ( दो कदम आगे बढ़कर दूसरे रिक्शावाले से ) ... क्यों भाई कितना लेगा मंदिर चौक का ... साहब ४०/- रुपया ... सुनकर मैं सोचने लगा कि - क्या बात है अचानक रेट कैसे बढ़ गया है, फिर दोनों को बुलाकर पूंछा कि - क्या बात है अचानक रेट कैसे बढ़ गया ? ... वे बोले, साहब, हम लोग दिनभर में चार-पांच चक्कर लगा कर बड़ी मुश्किल से सवा-सौ, डेढ़-सौ रुपये कमाते हैं, उससे भी दो लोगों का ठीक-ठाक ढंग से खाना-पीना नहीं हो पाता है, फिर सरकार कैंसे २८/- रु. ३२/- रु. में दिनभर के खाने का हिसाब-किताब लगा रही है, हमें तो लगता है कि हम गरीबों को पूरी तरह निपटाने की योजना बना रही है, इसलिए ही हम लोगों ने भविष्य में आने वाले खतरों से बचने के हिसाब से, सब जगह के दस-दस रुपये दाम बढ़ा दिए हैं, अब आप ही बताओ साहब जी, ये कौन-सी "गरीबी रेखा" है जो आज की बढ़ती जानलेवा मंहगाई के दौर में भी ३२/- रुपये की सीमा पार नहीं कर पा रही है ... मैंने कहा - चलो, ले चलो ... उफ़ ! ये गरीबी रेखा !!
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