पीएम पद की दौड़, दौड़ते-दौड़ते
दम न निकल जाए !
पर, क्या करें, मजबूर हैं
कहीं ख़्वाब अधूरा न रह जाए !
सत्ता के नशे में चूर हैं
पीएम बने बगैर, मरना नहीं मंजूर है !
फिर से, हाँ भई, फिर से
निकल पड़े हैं
आख़िरी, शायद आख़िरी ही, दौड़ दौड़ने !
एक दिन
एक युवा कवि ने, कविता के माध्यम से
समझाया था, कुछ रास्ता सुझाया था
समाज सेवा का !
पर, क्या करें
समाज सेवा नहीं
जीते जी
पीएम पद अत्यंत जरुरी है !!
दम न निकल जाए !
पर, क्या करें, मजबूर हैं
कहीं ख़्वाब अधूरा न रह जाए !
सत्ता के नशे में चूर हैं
पीएम बने बगैर, मरना नहीं मंजूर है !
फिर से, हाँ भई, फिर से
निकल पड़े हैं
आख़िरी, शायद आख़िरी ही, दौड़ दौड़ने !
एक दिन
एक युवा कवि ने, कविता के माध्यम से
समझाया था, कुछ रास्ता सुझाया था
समाज सेवा का !
पर, क्या करें
समाज सेवा नहीं
जीते जी
पीएम पद अत्यंत जरुरी है !!
No comments:
Post a Comment