Wednesday, February 2, 2011

मोहब्बत हो गई, शायद !

प्यार किसे कहते हैं
क्या होता है
सच, मैं जानता नहीं था
लोग बातें करते
मुझे कुछ समझता नहीं था
फ़िल्में भी देखीं
किन्तु कुछ अहसास नहीं जगा
एक मित्र तो रोज
कुछ कुछ मुझसे ही
प्रेम की बातें बतियाता
फिर भी कुछ समझ सका
पर आज, सच, कुछ हुआ है मुझे
बेचैन सा हुआ हूँ
जाने क्या हुआ, क्यूं हुआ !

काश ! तुम
मेरे पास से गुज़री होतीं
गुजर भी जातीं
तो कोई बात होती
पर गुजरते गुजरते
तुम्हारा दुपटटा
काश ! मुझे
छुए बगैर निकल जाता
दुपट्टे ने, मुझे छुआ
मैं सिहर सा गया
शायद अभी तक, सिहरन है
मेरे जहन में
क्यूं, कुछ समझ से परे है !

मैं बेचैन, व्याकुल
इधर - उधर निहारता
कुछ तलाशता, शायद
मैं थम सा गया
दुपट्टे के इर्द-गिर्द
इन्हीं हालात में, मैं
एक मित्र से घंटों बातें
जाने क्या क्या !
उसने मुझे पकड़
हिलाया, झकझौर दिया
और चिल्ला के बोला
बता, किससे मोहब्बत हुई
कब हुई, कैसे हुई
मैं भौंचक्का सा, देखता रहा
पूछा, मोहब्बत, मुझे
हाँ, छलक रही है
उफ़, सच, मुझे
मोहब्बत हो गई, शायद
दुपट्टे ने ........ !!

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