Wednesday, November 2, 2011

शायद ! मेरी अंतरआत्मा होगी !!

मेरे अन्दर
कोई
चुप-चाप सो रहा था
या यूं कहें, सो रही थी
एक दिन
मेरी उस पर नजर पड़ गई
मैंने देखा
कि -
ये कौन सो रहा है, वो भी मेरे अन्दर !

फुर्सत से ...
जब मैंने उसे आवाज दी
वह
हिली-डुली
और करवट बदल कर सो गई
मुझे डर सा लगा
छोडो, बाद में देखेंगे, सोचकर
वापस
अपने काम-धंधे पर लग गया !

एक दिन
फिर
अचानक मेरी नजर उस पर पडी
मैं थोड़ा फुर्सत में था
इसलिए
इस बार उससे भिड़-सा गया !

वह
खामोश, गुस्से में मुझे देखने लगी
आँखें लाल
बाल बिखरे हुए
चेहरे पे असीम गुस्सा
उसे देख कर
मुझे डर सा लगा
लगा ऐसे, जैसे
कहीं, वह गुस्से में -
कुछ कर न दे
और मुझे लेने-के-देने न पड़ जाएं !

फिर से मैं, कौन लफड़े में पड़े, सोचकर
दूर हट गया
पर, अब, कुछ डर, कुछ जिज्ञासा -
बन रही है, जानने, समझने की
वह कोई और नहीं -
शायद ! मेरी अंतरआत्मा होगी !!

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