Saturday, November 5, 2011

एक ठोकू कविता

क्या लिखूं, ये सोच रहा हूँ
कुछ सूझ गया तो ठीक
वरना
कुछ भी लिखने के नाम पे -
ठोक दूंगा !

पढ़ने वालों की भी कोई कमी नहीं है
वैसे भी
ज्यादा से ज्यादा गिने-चुने पाठक ही तो -
पढ़ने आते हैं
आएंगे तो ठीक, और नहीं आए, तब भी ठीक !

लेकिन, किन्तु, परन्तु, पर
कुछ न कुछ लिखने की -
भड़ास तो निकल ही जायेगी !

तो लो भईय्या तैयार हो जाओ
आज
जब मन नहीं हो रहा है -
तब भी ठूंस रहा हूँ
अगर नहीं ठूंसा तो, न जाने कब तक
बेचैनी बनी रहेगी !

बेचैनी दूर कैसे हो
ये तो आप भी भली-भाँती समझते ही हो
कि -

एक कवि -
जब तक दो-चार लोगों को, पकड़-पकड़ के
अपनी कविताएँ न सुना दे, तब तक !

एक नेता -
जब तक सुबह से शाम तक
दो-चार लोगों को चूना न लगा दे, तब तक !

एक नारी -
जब तक दिन में, सात-आठ बार
लिपस्टिक-पावडर न पोत ले, तब तक !

एक प्रेमी -
जब तक अपने माशूक के घर-मोहल्ले के
दो-चार चक्कर न लगा ले, तब तक !

एक फेसबुकिया -
जब तक दो-चार महिलाओं के फोटो और पोस्टों पर
आठ-दस लाईक व कमेन्ट न ठोक दे, तब तक !

खैर, यह सिलसिला तो चलते ही रहेगा
न थमेगा, बस बढ़ते रहेगा
इसलिए, फिलहाल, यहीं ब्रेक लगाते हैं
कल की कल देखेंगे -
और परसों की परसों, जय राम जी की !!

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