क्या करें
चुप-चाप बैठे हैं
डरते हैं
कहीं, उगलने न लगें
जहर, मुंह से !
आदत, कुछ बुरी है
पर, लोगों को
लगती, ज्यादा बुरी है
घर में, दोस्तों में
अक्सर चर्चे छिड़े हैं
छिड़ते रहे हैं
क्यूं ये छोड़ता नहीं
अपनी आदत पुरानी !
समय के सांथ
चलना भी ...
क्यूं है, इसको गवारा
न जाने क्या मिला
या मिल जाएगा इसको
इस मीठे जमाने में
बोल कर, कड़वी ज़ुबानी !!
चुप-चाप बैठे हैं
डरते हैं
कहीं, उगलने न लगें
जहर, मुंह से !
आदत, कुछ बुरी है
पर, लोगों को
लगती, ज्यादा बुरी है
घर में, दोस्तों में
अक्सर चर्चे छिड़े हैं
छिड़ते रहे हैं
क्यूं ये छोड़ता नहीं
अपनी आदत पुरानी !
समय के सांथ
चलना भी ...
क्यूं है, इसको गवारा
न जाने क्या मिला
या मिल जाएगा इसको
इस मीठे जमाने में
बोल कर, कड़वी ज़ुबानी !!
1 comment:
dhaardaar vyangya
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