नहीं चाहता, अब, मैं लिखना
कुछ ऐसी-वैसी, कविताएं
नदियाँ, झरने, धरा, गगन
फूल, खुशबू, चूंड़ी, कंगन
नारी, प्रेम, चुम्बन, आलिंगन
ये रचनाओं में खिलते हों !
कोई कहे, कहता रहे
नहीं फर्क अब पड़ता मुझको
क्या रक्खा है लिखने में
ये छोटी-मोटी रचनाएं
चलो लिखें, कुछ ऐसा लिक्खें
जिसमें जीवन चलता हो !
रचता हो, बसता हो जीवन
छलके, उमड़े, उमड़ पड़े
कि - कैसे जीवन चलता है
और कैसे मौत नहीं आती
क्यों बढ़ती है बेचैनी
जब रातें लम्बी होती हैं !
कोई पूछे, उससे जाकर
क्यों उसको नींद नहीं आती
कब सोया, कब जागा था
उफ़ ! ये भी उसको पता नहीं
कितने दिन हैं बीत गए
सच ! वो भूखा भूखा ज़िंदा है !!
1 comment:
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
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