Monday, July 11, 2011
भयभीत चिट्ठाकार !
चिट्ठाकार तो बस चिट्ठाकार है वह कुछ भी लिख सकता है, न तो उसे किसी से कुछ पूछने की जरूरत है और न ही किसी से "अनुमती" लेने की जरूरत है . . . सीधे शब्दों मे कहा जाये तो "अपनी ढपली-अपना राग" है ... यूं भी कह सकते हैं वह 'जंगल का राजा' है ... अरे भाई चिट्ठाकार "शेर" है ! ... अब हाल तो ये है भाई साहब जंगल का राजा भी चतुर व चालाक "लकडबघ्घों" की बजह से तनिक सहमा व भयभीत रहता है, अब वो पुरानी राजशाही व मान-मर्यादा रह कहां गई है, छोटे-बडों का लिहाज भी नई पीढी के लोग भूलते जा रहे हैं जिसको मौका मिला वो दूसरे को "गटक" गया। ठीक इसी तरह हमारा "चिट्ठाकार शेर" भी भयभीत रहने लगा है ... अरे इस शेर को किसी से डरने की क्या जरूरत है इसका कोई क्या बिगाड लेगा ? ... अब बिगाडने की बात मत पूछिये साहब ... इस शेर की भी एक "दुम" है दुम से मेरा मतलब "टिप्पणी बाक्स" से है, इस दुम पर कोई महानुभाव कभी-कभी "छोटे-छोटे फ़टाकों की लडी" लगा कर चला जाता है वह धीरे-धीरे फ़ूटते रहती है और "चिट्ठाकार शेर" डरा-सहमा दुम दबाये भागते फ़िरता है। इससे भी ज्यादा खतरनाक तो "बेनामी" टिप्पणीकार है वह छोटे-मोटे फ़टाकों मे विश्वास नही करता ... वह तो सीधा "बम" उठाता है और लगाकर गुमनाम- अंधेरी गलियों मे चला जाता है ... अब जरा सोचो बम के फ़टने से "चिट्ठाकार शेर" की क्या हालत होती होगी ... अब बेचारा 'भयभीत चिट्ठाकार" करे तो करे क्या !!
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