पता नहीं क्या लिखता हूँ
पर, शायद
मैं भी लिखता हूँ
क्या लिखता हूँ, क्यों लिखता हूँ
इसका भी मुझको
बोध नहीं
बस लिखता हूँ, कुछ लिखता हूँ !
हो सकता है, लिखते लिखते
एक दिन
मैं भी, लेखक हो जाऊं
क्या लिखता हूँ
बोध नहीं
पर
कुछ न कुछ तो लिखता हूँ !
काश ! वो दिन भी आ जाए
जब, कोई, मुझसे, कह जाए
तुम
चुपके चुपके, लिखते हो
जो दूजा कोई नहीं लिखता
ऐसा, ही कुछ लिखते हो
तुम, सबसे हट के लिखते हो !!
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