ए वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन
सर जमीं से आसमां तक
तुझको है मेरा नमन
ए वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन
भूख से, मंहगाई से
जीना हुआ दुश्वार है
ए वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन
क्या वतन का हाल है
भ्रष्ट हैं, भ्रष्टाचार है
ए वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन
मद है,मदमस्त हैं
खौफ है, दहशत भी है
ए वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन
भूख है गरीबी है
सेठ हैं, साहूकार हैं
ए वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन
अफसरों की शान है
मंत्रियों का मान है
ए वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन
आज गम के साए में
चल रहा मेरा वतन
ए वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन
ए वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !
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