Wednesday, July 13, 2011

टुडेज लव : पुलों की चाहतें !

एक न्यूज चैनल के कार्यालय पर शाम ६.०५ बजे एडिटर के चैंबर के दरवाजे को नाक कर दरवाजा खोलते हुए एक महिला रिपोर्टर ...
रिपोर्टर - में आई कम इन सर !
एडिटर - हाँ, अन्दर आ जाओ श्वेता, बैठो, चाय या काफी !
रिपोर्टर - सर, जी नहीं, शुक्रिया, बस घर जाने का टाईम हो गया है, वो तो आपने, काम के बाद मिल कर जाने को कहा था, इसलिए आई हूँ !
एडिटर - श्वेता आपको तो पता ही होगा कि अपने सब-एडिटर राजेश, इस सन्डे से दूसरे चैनल को ज्वाईन करने वाले हैं, वह पोस्ट खाली होने वाली है !
रिपोर्टर - जी सर, यह खबर सब जानते हैं राजेश जी को बड़ा आफर आया है इसलिए वो यहाँ से जा रहे हैं !
एडिटर - शायद तुमको यह पता नहीं होगा कि अपना अगला सब-एडिटर कौन होगा !
रिपोर्टर - हाँ सर यह तो किसी को ... मतलब मुझे नहीं मालुम है !
एडिटर - अभी एक घंटे पहले ही मेरी बॉस के सांथ मीटिंग हुई है ... उन्होंने मेरी राय जानना चाही है कि इस पोस्ट के लिए अपना राकेश कैसा रहेगा ... राकेश तुम्हारा कलिग जो तुम्हारा क्लासमेट भी रहा है ... किन्तु मैंने अभी अपनी राय दी नहीं है मैंने कहा कि कल शाम तक बताता हूँ !
रिपोर्टर - सर ... फिर आप क्या सोच रहे हैं !
एडिटर - श्वेता ... मैं यह सोच रहा हूँ कि पिछले ५ सालों से तुम दोनों मेरे सांथ काम कर रहे हो, दोनों ही काम-काज में एक्सपर्ट हो ... बस कुछेक मामलों में ही राजेश तुम से बीस बैठता है ... पर तुम भी इस पोस्ट को डिजर्व तो करती हो ... !
रिपोर्टर - मैं समझी नहीं आपका मतलब ... मेरा मतलब, बॉस राजेश को ही क्यों प्रिफर कर रहे हैं ... खैर मुझे पता है कि आपकी राय के बगैर बॉस खुद कोई फैसला नहीं करेंगे ... जब आपने यह चर्चा मेरे सामने छेड़ी है तो इसके पीछे आपका कोई न कोई मकसद जरुर होगा ... ( लगभग १-२ मिनट के सन्नाटे के बाद श्वेता बोली ) ... सर, आप चाहते क्या हैं, मेरा मतलब यदि यह पोस्ट मुझे ... बदले में आपकी चाहत क्या है मुझसे ?
एडिटर - देखो श्वेता ... तुम मुझे पिछले पांच सालों से जान रही हो, मैं साफ़-सुथरे ढंग से निष्पक्ष रूप से काम करने में विश्वास रखता हूँ ... मेरे कैरियर में अब तक कोई दाग-धब्बा नहीं है और आगे भी न हो यह ही मेरी कार्यशैली रहती है ... अब तुम मुझसे पूंछ ही रही हो कि मैं चाहता क्या हूँ, तो सुनो ( ... लगभग आधा-एक मिनट शांत रहने के बाद बोले ... ) ... मैं चाहतों के पुल बनाने में विश्वास नहीं रखता किन्तु पुलों पर चाहतें हों इस बात से इंकार भी नहीं करता ... बस, तुम सब-एडिटर के पद को डिजर्व करती हो इसलिए मैंने यह चर्चा तुम्हारे सामने छेड़ना मुनासिब समझा ... !
( चैंबर में लगभग ५-७ मिनट तक सन्नाटा पसरा रहा, दोनों एक-दूसरे को बीच बीच में निहारते, और कुछ सोच-विचार में उलझे रहे, फिर अचानक श्वेता ने चुप्पी तोडी ... )
... ठीक है सर ... यदि मैं इस पोस्ट को डिजर्व करती हूँ तो समझो करती ही हूँ ... जब करती हूँ तो कोई और कैसे इस पद पर बैठ सकता है ... ( ... श्वेता अपनी कुर्सी से उठ कर एडिटर के हाँथ को पकड़ कर चूमते हुए ... ) ... ओके माय डीयर पुष्कर ... तुम पुल बनाओ और मैं पुलों पर चाहतें ... !!

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