मैं क्या हूँ, कुछ भी नहीं हूँ
मगर तू है, बहुत कुछ है
फर्क गर है, दोनों में
जमीं और आसमां सा है
तू डरता है, बुलाने से
मैं आने में, सहमता हूँ
आने को, तो मैं चला आता
बिना बुलाये, महफ़िल में
सच ! नहीं डरता मैं आने से
तेरी, ऊंची हवेली में
चिंता है, तो बस इतनी
कहीं सिर फूट न जाए
तेरी चौखट से टकरा कर !!
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सच ! नहीं डरता मैं आने से, तेरी ऊंची हवेली में
कहीं सिर फूट न जाए, तेरी चौखट से टकरा कर !
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मगर तू है, बहुत कुछ है
फर्क गर है, दोनों में
जमीं और आसमां सा है
तू डरता है, बुलाने से
मैं आने में, सहमता हूँ
आने को, तो मैं चला आता
बिना बुलाये, महफ़िल में
सच ! नहीं डरता मैं आने से
तेरी, ऊंची हवेली में
चिंता है, तो बस इतनी
कहीं सिर फूट न जाए
तेरी चौखट से टकरा कर !!
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सच ! नहीं डरता मैं आने से, तेरी ऊंची हवेली में
कहीं सिर फूट न जाए, तेरी चौखट से टकरा कर !
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