‘उदय’ कहता है मत पूछो, क्या आलम है बस्ती का /
हर किसी का अपना जहां, अपना-अपना आसमां है !
Sunday, July 17, 2011
काला चूना !
हम इतने
नाजुक, कोमल, भोले हैं
गर चाहते भी तो
खुद को बेच नहीं पाते !
गर होते हम
चतुर, चालाक, चांडाल
तब इतना तो तय था
बेच भी देते खुद को
और लगा के चूना
खरीददार को
जेब में रखते पैसा
और खुद ही
घर भी वापस आ जाते !!
1 comment:
Insaan ke badalti fitrat ka bakhubi chitrankan kiya hai aapne..bahut badiya prasutiti..
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