बचपन के दो मित्र अचानक मिलने पर ...
राकेश - यार शरद तू आजकल बहुत बड़ा आदमी हो गया है बहुत बड़ी मीडिया कंपनी ज्वाईन कर लिया है, बहुत बहुत बधाई !
शरद - नहीं यार ... मैं अपने टैलेंट के दम पर ऊंचाइयों पर पहुंचा हूँ, देर-सबेर ही सही मेहनत रंग तो लाई ... और सुना तू कैसा है !
राकेश - हाँ यार तू बचपन से ही बहुत मेहनती ... आई मीन टैलेंटेड है, आज तेरे सांथ राम भईय्या नहीं दिख रहे, क्या बात है कहीं ... !
शरद - कहीं ! से तेरा क्या मतलब है !
राकेश - भड़क क्यों रहा है यार, आजकल तू उनके सांथ ही दिखता है अर्थात घूमता-फिरता है इसलिए पूंछ रहा था !
शरद - मैं ! उनके सांथ घूमता-फिरता हूँ या वो मेरे सांथ !!
राकेश - एक ही बात है यार, तू उनके सांथ घूमे या वो तेरे सांथ घूमें !
शरद - एक ही बात कैसे हुई ! ... मैं नहीं, वो मेरे सांथ घूमते हैं आजकल मैं उनको खिलाता-पिलाता हूँ ... वो कहावत भूल गया कि "मक्खी गुड के पास भिनभिनाती है" !
राकेश - अरे हाँ यार ... भूल गया था कि तू "बड़ा आदमी अर्थात गुड" है ... किन्तु मैं राम भईय्या को भी अच्छे से जानता हूँ बहुत स्वाभीमानी इंसान हैं वो खाने-पीने के चक्कर में तो क्या, कोई उन्हें लालच भी देगा तब भी वो किसी के सांथ नहीं हो सकते ... जरुर कोई न कोई वजह होगी या फिर तू बडबोलेपन में कुछ भी बक-बक कर रहा है ... वैसे भी मैं बचपन से तेरी आदत को जानता हूँ !
शरद - क्या मतलब है तेरा, बचपन की आदत से !
राकेश - छोड़ न यार, जाने दे !
शरद - तू कुछ भी अनाप-शनाप बक रहा है, जानता नहीं किस से बात कर रहा है ... शरद मुरारी पांडे से ! आजकल लोग मुझे इसी नाम से जानते हैं, अब तेरा बचपन का मित्र कोई छोटा-मोटा आदमी नहीं रहा, बहुत बड़ा आदमी बन गया है !
राकेश - हाँ यार ... तू आदमी बड़ा बना या नहीं, यह तो मैं नहीं जानता, पर इतना जरुर जानता हूँ कि राम भईय्या तेरा दिल रखने के लिए तेरे सांथ, वरना .... खैर छोड़, जाने दे ... पर बचपन के सभी संगी-सांथी जानते हैं कि तू मतलब का यार है !!
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