Friday, July 29, 2011

घुप्प अंधेरा

किसी सुनसान, सन्नाटे भरे
इलाके से, अकेले
जब गुजरते थे, हम
बचपन में !
तब
दिल, दिमाग, हाँथ, पैर 

सन्न से हो जाते थे
गुजरते गुजरते
गुजर जाने तक
कभी कभी तो
गुजर जाने के बाद भी
कुछ दूर तक, सन्नाटा-सा
छाया रहता था
पर, तब से अब तक
हमने, कभी, सोचा नहीं था
डरे भी नहीं थे
सहमे भी नहीं थे
चल रहे थे
चलते चल रहे थे
बस चले-चल रहे थे
कि -
अचानक, कल, फिर
एक खबर सुनकर, चहूँ ओर
सन्नाटा-सा छा गया
सुन, सुनते ही
छा गया घुप्प अंधेरा
दिल और दिमाग पर ... !!

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