Wednesday, July 6, 2011

आत्म संतुष्टि !

भिखारी बस अड्डे पे बैठ कर भीख मांग रहा था, सामने से एक सेठ गुजरा, भिखारी ने राग अलापा ... गरीब भूखा है कुछ दे दो सेठ जी भगवान भला करेगा ... सेठ जी अनसुनी करते हुए चले गये ... भिखारी मन में भगवान को याद करने लगा ... हे भगवान तू मुझे भी सेठ बना दे ... तभी अचानक सामने एक साधु प्रगट हो गये ... "बोल वत्स मुझे क्यों याद कर रहा है" .... प्रभु आप भगवान हैं ... हां बोल क्या चाहता है ... प्रभु भले में भिखारी का भिखारी रहूं पर मुझे एक बार करोडपति सेठ बना दो ... तथास्तु ... एक "गुरुमंत्र" देकर चले गये ... भिखारी आश्चर्य भाव में बैठकर चिंतन करने लगा ... फ़िर वह "गुरुमंत्र" का पालन करने लगा ... आठ-दस सालों में वह करोडपति सेठ बन गया ... संयोग से उसकी मेरे साथ जान पहचान हो गई .... उस समय में कठिन दौर से गुजर रहा था ... वह जानता था मेरे हालात ... फ़िर भी ... जब भी वह मिलता यही कहता ... भाई साहब चाय पिला दो भगवान आपका भला करेगा ... आज फ़िर उसी अंदाज में, चाय पिलाकर सेठ जी को रवाना किया ... उसके जाने के बाद मैं भगवान को याद करने लगा ... भगवान जी प्रगट हो गये .. बोल वत्स क्यों याद किया ... हे प्रभु कैसे कैसे लोगों को सेठ बना देते हो जो खुद चाय भी नहीं पी सकते ... वत्स ये बता उस भिखारी सेठ को चाय पिला कर तुझे कितनी खुशी मिली ... मतलब मेरी खुशी के लिये ... धन्य हैं आप प्रभु ... और धन्य है आपकी माया !!