चतुर चालाक, हुए हैं सब
हों जैसे बंदर की जातकूद रहे हैं, उछल रहे हैं
एक डाल से दूजी डाल
जिस डाल पे फल लटके हैं
वही डाल हुई, सबकी आज !
बंदर हैं तो कूदेंगे ही
फल खाने को झपटेंगे ही
बंदर तो बंदर होते हैं
आदत से होते लाचार
कूद कूद और उछल उछल कर
सत्ता के हिस्से हैं आज !
कभी आगे, कभी पीछे
खड़े हैं सब, जोड़ के हांथ
उछल-कूद और खी-खी करते
पहुंचे हैं सब बड़े बाजार
दिल्ली में सजता है यारो
अपने देश का बड़ा बाजार !
बड़े बाजार में मिलते सबको
बंगले-गाडी मुफ्त में यार
होते सब के ठाठ बड़े हैं
पर होते सरकारी ठाठ
ठाठ - बाठ के खातिर ही
करते सब, हाँ में हाँ आज !
एक नहीं ... दो नहीं ...
चारों बंदर, एक-दूजे के
भाई हुए हैं, दोस्त हुए हैं
भ्रष्ट हुए हैं, मस्त हुए हैं
कूद रहे हैं, झूम रहे हैं
मौज हुई है सबकी आज
नहीं, नहीं, ये लाल नहीं हैं
हैं सबके, मुंह काले आज !!
1 comment:
SARTHAK VYANGY RACHNA.
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