Wednesday, July 20, 2011

पुरुष्कार !

एक युवा लेखक के पास पहुँच कर एक जिज्ञासु पाठक ने कहा - सर मैं आपको एक लम्बे अर्से से पढ़ रहा हूँ आप के लेखन को पढ़ते पढ़ते शरीर में सिहरन सी पैदा हो जाती है, मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि आपकी लेखनी को पढ़ने से खून खौलने लगता है, ऐसा नहीं है कि मैं सिर्फ आपको ही पढ़ता हूँ आज के समय के ढेरों लेखकों को पढ़ रहा हूँ पर मुझे आपकी कलम में जो आग अर्थात धार व पैनापन पढ़ने को मिलता है शायद वर्त्तमान समय के किसी भी अन्य लेखक में वह आग नजर नहीं आती, सीधे शब्दों में कहूं तो वर्त्तमान समय में मुझे ऐसा कोई लेखक नजर नहीं आता जो आपकी कलम के सामने खडा भी होता हो अर्थात खडा हो सके ... जिज्ञासु पाठक को चुप कराते हुए युवा लेखक ने कहा - ऐसी कोई बात नहीं है आज के समय में भी ऐसे अनेकों लेखक हैं जो बहुत अच्छा लिख रहे हैं शायद मुझसे कई गुना ज्यादा बेहतर ... नहीं सर, मैं नहीं मान सकता, शायद यह आपका बड़प्पन है जो आप स्वयं को एक छोटा लेखक मान कर चल रहे हैं किन्तु जहां तक मेरा आंकलन है अर्थात एक पाठक के नजरिये से, मुझे आपसे बेहतर कोई और नजर नहीं आता, मुझे बेहद अफसोस होता है जब किसी भी साहित्यिक पुरुष्कार की घोषणा में न तो आपका नाम होता है और न ही आप पुरुष्कृत किये जाते हैं, पता नहीं ऐसा क्यों होता है, यही जानने के लिए मैं आज आपके पास ३०० किलोमीटर की यात्रा तय कर आया हूँ ... अरे, इतने दूर से आए हो, क्या जरुरत थी आने की, फोन कर लेते या चिट्ठी-पत्री भेज कर पूंछ लेते ... ( पैर छूते हुए ) सर आपसे मिलने की जिज्ञासा भी थी इसलिए स्वयं चला आया, सर आपसे मिलकर मैं धन्य हो गया ... ( युवा लेखक ने जिज्ञासु पाठक को गले लगाते हुए कहा ) ये तो तुम्हारा प्रेम है मेरे प्रति जो तुम्हें मेरे पास खींच लाया है, खैर कोई बात नहीं, तुम सिर्फ मुझे ही तल्लीनता से पढ़ते होगे, शायद इसलिए ही तुम्हें मेरे लेखन ने प्रभावित किया है कोशिश करो अन्य लेखकों को पढ़ने की, सचमुच वे मुझसे बेहतर लिखते हैं तब ही तो पुरुष्कृत हो रहे हैं ... सर, प्लीज, मुझे माफ़ करें, मैं आपकी इस बात से सहमत नहीं हो सकता, क्योंकि मैं एक पाठक हूँ और आप एक लेखक हैं, बेहतर, और बेहतर से बेहतर लेखन को एक पाठक ही महसूस कर सकता है मुझे यकीन है कि वर्त्तमान समय के आप सर्वश्रेष्ठ लेखक हैं, पता नहीं आपको पुरुष्कृत क्यों नहीं किया जाता ... सुनो मित्र, श्रेष्ठता व पुरुष्कार की बातें छोडो, वैसे भी लिखने के पीछे पुरुष्कार प्राप्त करना मेरा मकसद कभी नहीं रहा है और आज तुमने इतनी दूर से आकर मुझे स्वमेव पुरुष्कृत कर दिया है, तुम्हारा आना ही मेरा पुरुष्कार है !!

No comments: