Saturday, January 29, 2011

आग का शोला !

है पवित्र मन उसका
दिलों में शंख बजते हैं
तन है रेशमी कोमल
हंसे तो फ़ूल झडते हैं
है हालात से मजबूरखडी बाजार में है वो !
करे तो क्या करे
है हालात से मजबूर !
किया नहीं सौदा
हंसकर कभी तन का
पर है गर्व उसको
कि वो तन बेचती है !

नहीं बेचा कभी मन
किया ईमान का सौदा
रुह कचोटती है
मन को नौंचती है
बदन को आग का
शोला बनाकर बेचती है !

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