Saturday, January 29, 2011

ए वतन मेरे वतन !

वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन

सर जमीं से आसमां तक
तुझको है मेरा नमन
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन

भूख से, मंहगाई से
जीना हुआ दुश्वार है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन

क्या वतन का हाल है
भ्रष्ट हैं, भ्रष्टाचार है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन

मद है,मदमस्त हैं
खौफ है, दहशत भी है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन

भूख है गरीबी है
सेठ हैं, साहूकार हैं
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन

अफसरों की शान है
मंत्रियों का मान है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन

आज गम के साए में
चल रहा मेरा वतन
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन

वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

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