Friday, January 28, 2011

राह !

क्या मैं हूँ , क्या नहीं
अब कोई मुझे समझाए !

किस पथ पर, किन राहों पर
चलना है राह दिखाए !

उंच-नीच की डगर पकड़ ली
जीवन डग-मग जाए !

क्या जीवन, क्या लीला है
अब कोई मुझे समझाए !

हार-जीत का खेल हुआ, क्या हारूं
क्या जीतूं, ये समझ आये !

कालचक्र और समयचक्र
दोनों मिलकर खूब सताएं !

अब क्या बोलूँ, अब क्या सोचूँ
जब कदम मेरे बढ़ आए !

कठिन डगर है, जीवन है
अब राह कोई दिखलाए !!

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