जीवन में हर क्षण
उतार-चढ़ाव भरे हैंकभी खुशी-कभी गम
कभी खुद-कभी अपने
इन सब के बीच
जीवन चलता रहता है
पर कभी कभी मन
कुछ नया सोचता है
तय भी करता है
पर चलने की कोशिश
दो कदम चलकर
ठहर जाती है
न जाने क्यों !
मन आगे बढ़ने से
रोकता सा लगता है
आज चिंतन करते हुए
मुझे महसूस हुआ
ये मन नहीं करता
मन में बसे अपने हैं
जो छिटकने से रोकते हैं
पकडे रखना चाहते हैं
खुद से, खुद के लिए
शायद ! वो सही हों !!
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