Monday, January 24, 2011

हर किसी का अपना जहां, अपना-अपना आसमां है !

अंधेरे उजालों से कहीं बेहतर हैं
वहाँ हैं तो सभी, पर दिखते नहीं हैं !
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भीड़ में चैन नहीं मिलता
सुकून की चाह में तनहा हूँ !
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क्यों खो रहे हो, रातों का सुकून
हाय-तौबा जिंदगी भर अच्छी नहीं यारा !
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‘उदय’ कहता है , जख्मों को छिपा कर रखना यारो
जो भी देखेगा, कुरेद के चला जाएगा !
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चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए
तुम झुकते नहीं, और मै चौखटें ऊंची कर नही पाता !
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सुकूं से बैठकर, क्या गुल खिला लेंगे
चलो दो-चार हाँथ, आजमा लें हम ।
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अगर है तो, बहुत कुछ है
नहीं तो, कुछ नहीं यारा ।
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अब नहीं लिखता किताबें, तेरे इरादे भाँप कर
है कहाँ फुर्सत तुझे, पुस्तक उठा के देख ले ।
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अब भी क्यों रोते हो मुफलिसी का रोना
हम जानते हैं, दौलतें चैन से तुम्हें सोने नहीं देतीं।
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चलो आए, किसी के काम तो आए
किसी दिन फिर, किसी के काम आएंगे ।
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फूल समझ हमने, उन्हें छुआ तक नहीं
वे काँटे समझ हमको, सहम कर गुजर गये।
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चलो उमड जाएँ, बादलों की तरह
सूखी है जमीं, कहीं तो बारिस होगी ।
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‘रब’ भी मेरी खताएँ माफ कर देता
गर मैने झुककर सजदा किया होता।
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मेरी रातें भी दिन जैसी ही हैं
फर्क है तो , तनिक अंधेरा है ।
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कैसे बना दूँ गैर तुझे, एक शुक्रिया अदा कर
तेरा ही शुक्रिया है, हमें जीना सिखा दिया।
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तेरे हम-कदमों से, मंजिलें आसां हैं
तेरे साथ होने से, जिंदगी खुशनुमा है।
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‘उदय’ तेरी ही दोस्ती है, जो हमें जिंदा रखे है
मरने को, तो हम, कब के मर चुके हैं ।
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वक्त ने न जाने क्यूं, बदल दिया हमको
वरना हम थे ऎसे, कि खुद के भी न थे ।
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‘उदय’ कहता है मत पूछो, क्या आलम है बस्ती का
हर किसी का अपना जहां, अपना-अपना आसमां है।
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कभी राहें नहीं मिलतीं, कभी मंजिल नहीं मिलती
ये जिंदगी के सफर हैं, कभी हमसफर नहीं मिलते ।
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तुम्हे हम चाहते हैं, न जाने क्यों ये चाहत है
पर हमको है खबर, मिटटी पे पानी की इबारत है।
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जब चंद लम्हों में, मिट जाए सदियों की थकान
फिर रात के ठहरने का, इंतजार किसको है।
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मोहब्बतें हैं या रंजिशें हैं, कोई समझाये हमें
जब भी उठती है नजर, अंदाज कातिलाना है ।
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जमीं से आसमां तक, नजारे-ही-नजारे हैं
तुम देखो तो क्या देखो, हम देखें तो क्या देखें।
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मंजिलें हैं जुदा-जुदा, तो क्या हुआ
कम-से-कम ‘दुआ-सलाम’ तो करते चलो ।
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मिले हैं राह में, सुकूं से देख लो हमको
‘उदय’ जाने, कहाँ लिक्खीं हैं फिर मुलाकातें।
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अब फिजाएं भी कह रही हैं उड निकल
क्यूँ खडा खामोश है, तू जमीं को देखकर।

1 comment:

Kailash Sharma said...

अब भी क्यों रोते हो मुफलिसी का रोना
हम जानते हैं, दौलतें चैन से तुम्हें सोने नहीं देतीं।
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सभी शेर बहुत सुन्दर..