शब्दों की भीड में
चुनता हूं
कुछ शब्दों को
आगे-पीछे
ऊपर-नीचे
रख-रखकर
तय करता हूं
भावों को
शब्दों की तरह ही
'भाव' भी होते हैं आतुर
लडने-झगडने को
कभी सुनता हूं
कभी नहीं सुनता
क्यॊं ! क्योंकि करना होता है
सृजन
एक 'रचना' का
शब्द, भाव, मंथन
मंथन से ही
संभव है
सृजन
एक "रचना" का !
चुनता हूं
कुछ शब्दों को
आगे-पीछे
ऊपर-नीचे
रख-रखकर
तय करता हूं
भावों को
शब्दों की तरह ही
'भाव' भी होते हैं आतुर
लडने-झगडने को
कभी सुनता हूं
कभी नहीं सुनता
क्यॊं ! क्योंकि करना होता है
सृजन
एक 'रचना' का
शब्द, भाव, मंथन
मंथन से ही
संभव है
सृजन
एक "रचना" का !
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